केरल की राजनीति में 2026 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए एक बड़ी परीक्षा साबित होने वाला है। राज्य में पारंपरिक रूप से मजबूत स्थिति रखने वाली कांग्रेस को इस बार माकपा और भाजपा दोनों से कड़ी चुनौती मिल रही हैं।
नई दिल्ली: केरल की राजनीति में 2026 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए एक बड़ी परीक्षा साबित होने वाला है। राज्य में पारंपरिक रूप से मजबूत स्थिति रखने वाली कांग्रेस को इस बार माकपा और भाजपा दोनों से कड़ी चुनौती मिल रही है। हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों ने यह संकेत दिया है कि कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिशें तेज हो गई हैं।
भाजपा और माकपा का दोहरा हमला
केरल में भाजपा और माकपा ने कांग्रेस को कमजोर करने के लिए अलग-अलग रणनीतियां अपनाई हैं। जहां भाजपा हिंदू और ईसाई वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रही है, वहीं माकपा कांग्रेस के अल्पसंख्यक समर्थकों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटी है। 2021 में लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव जीतकर माकपा ने केरल में चुनावी चक्र को तोड़ दिया था।
अब पार्टी ने अपनी रणनीति बदलते हुए हिंदू वोट बैंक को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। माकपा की कोशिश है कि वह भाजपा के प्रभाव को कम करते हुए अपने परंपरागत समर्थकों को कांग्रेस के पक्ष में जाने से रोके। इसके लिए माकपा ने हिंदू वोट बैंक, खासकर एझावा समुदाय को साधने की मुहिम तेज कर दी हैं।
भाजपा की बढ़ती पैठ
2024 के लोकसभा चुनावों में त्रिशूर सीट जीतकर भाजपा ने संकेत दिया कि वह केरल की राजनीति में बड़ी ताकत बनने की ओर बढ़ रही है। भाजपा अब ईसाई समुदाय को अपने पाले में लाने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रही है। हाल ही में पार्टी ने तीन ईसाई नेताओं को जिला अध्यक्ष बनाकर यह संदेश दिया कि भाजपा अब ईसाई समुदाय के बीच भी अपनी पकड़ बना रही है। इसके अलावा, भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे के खिलाफ दलित और पिछड़े समुदायों को लामबंद करने की माकपा की कोशिशें भी कांग्रेस के लिए चुनौती बन सकती हैं।
कांग्रेस के लिए संगठनात्मक मजबूती की जरूरत
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने आंतरिक कलह को दूर करना और अपने पारंपरिक वोट बैंक को बनाए रखना है। 2021 के चुनावों में हार के बाद कांग्रेस को आत्ममंथन करने की जरूरत थी, लेकिन पार्टी अभी भी संगठनात्मक स्तर पर मजबूत होती नहीं दिख रही है। केरल में कांग्रेस को एक और झटका तब लगा जब उसकी पारंपरिक सहयोगी केरल कांग्रेस (M) ने वाम मोर्चे के साथ गठबंधन कर लिया।
इससे कांग्रेस के ईसाई वोट बैंक पर असर पड़ा है। भाजपा भी इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। ऐसे में कांग्रेस को इस समुदाय के विश्वास को बनाए रखने के लिए नए रणनीतिक कदम उठाने होंगे। कांग्रेस की सहयोगी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) भी अब नई राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रही हैं।
माकपा ने मुस्लिम समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कई प्रयास किए हैं, जिससे IUML की स्थिति कमजोर हो सकती है। यदि माकपा इसमें सफल रहती है, तो यह कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका होगा।
2026 विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए अग्निपरीक्षा
2026 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए केवल एक चुनावी लड़ाई नहीं बल्कि अस्तित्व की लड़ाई होगी। यदि पार्टी अपने पारंपरिक मतदाताओं को संगठित नहीं रख पाई तो उसे केरल में अपनी मजबूत पकड़ खोने का खतरा हो सकता है। कांग्रेस को आंतरिक गुटबाजी को खत्म कर संगठित रूप से चुनावी मैदान में उतरना होगा। इसके अलावा, पार्टी को अपना सामाजिक आधार मजबूत करने के लिए ठोस नीति बनानी होगी।
केरल में कांग्रेस के पास अब ज्यादा समय नहीं बचा है। यदि पार्टी सही रणनीति नहीं अपनाती, तो उसे 2026 के विधानसभा चुनाव में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। भाजपा और माकपा की दोहरी रणनीति ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, और अब पार्टी को अपने जनाधार को बचाने के लिए ठोस रणनीति पर काम करना होगा।