Rishikesh News: गंगा के किनारे 52 फीट ऊंचा कचरे का पहाड़, ऋषिकेश में बढ़ता कचरा संकट पर्यावरण और संस्कृति के लिए गंभीर खतरा

Rishikesh News: गंगा के किनारे 52 फीट ऊंचा कचरे का पहाड़, ऋषिकेश में बढ़ता कचरा संकट पर्यावरण और संस्कृति के लिए गंभीर खतरा
Last Updated: 16 घंटा पहले

ऋषिकेश, जो अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है, अब एक गंभीर पर्यावरणीय संकट से जूझ रहा है। गंगा नदी के किनारे, मात्र 70 मीटर की दूरी पर स्थित 52 फीट ऊंचा कचरे का पहाड़, स्थानीय निवासियों और पर्यटकों के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। यह कचरा न केवल गंगा नदी की पवित्रता को प्रभावित कर रहा है, बल्कि पूरे शहर की प्राकृतिक और सांस्कृतिक छवि को भी संकट में डाल रहा हैं।

कचरे का पहाड़ ऋषिकेश की पहचान पर संकट

गंगा के किनारे स्थित यह विशाल कचरा ढेर पिछले कई वर्षों से लगातार बढ़ रहा है, और अब सैकड़ों टन कचरा एकत्र हो चुका है। इस कचरे के कारण जल प्रदूषण, गंगा की पवित्रता का हनन और शहर की प्राकृतिक सुंदरता पर बुरा असर पड़ रहा है। यह समस्या पिछले 22 वर्षों से बढ़ती जा रही है, लेकिन इसके समाधान के प्रयास अब तक न के बराबर रहे हैं।

शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि विकराल होती समस्या

ऋषिकेश में तेजी से बढ़ते शहरीकरण और जनसंख्या की वृद्धि ने इस कचरा संकट को और विकराल बना दिया है। स्थानीय प्रशासन और नगर निगम की कचरा प्रबंधन योजनाओं की कमी के कारण कचरे का सही तरीके से निस्तारण नहीं हो पा रहा है। जबकि गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्य कचरा प्रबंधन में सफलता हासिल कर चुके हैं, उत्तराखंड इस दिशा में अभी भी पीछे हैं।

पर्यटन और कचरे की बढ़ती समस्या

ऋषिकेश में आने वाले पर्यटकों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, जो राफ्टिंग, कैंपिंग और अन्य पर्यटक गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं। हालांकि, इन गतिविधियों के दौरान उत्पन्न कचरे का ठीक से निस्तारण नहीं हो पाता। पर्यटक अक्सर प्लास्टिक, पैकेजिंग सामग्री और अन्य कचरा छोड़ जाते हैं, जिससे कचरा और बढ़ता जा रहा है। इससे न केवल पर्यावरणीय संकट पैदा हो रहा है, बल्कि शहर की छवि भी धूमिल हो रही हैं।

कचरा प्रबंधन के प्रयास समाधान की दिशा

केंद्र सरकार ने कचरा प्रबंधन के लिए 3,000 करोड़ रुपये की योजना शुरू की थी, लेकिन उत्तराखंड में इसका क्रियान्वयन धीमी गति से हो रहा है। ऋषिकेश में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट बनाने की प्रक्रिया जारी है, लेकिन इसके पूरे होने का कोई ठोस समय नहीं दिया गया है। अगर इस पर जल्द काम नहीं किया गया, तो कचरे का संकट और बढ़ सकता हैं।

भारत में कचरे का संकट एक राष्ट्रीय चुनौती

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में प्रतिदिन लगभग 5 लाख टन कचरा उत्पन्न होता है, और अधिकांश कचरे का प्रबंधन ठीक से नहीं किया जाता। भारत में लगभग 15,000 एकड़ भूमि कचरे के पहाड़ों से घिरी हुई है, और अगर इस समस्या का समाधान जल्द नहीं किया गया, तो यह जल, भूमि और वायु प्रदूषण को बढ़ावा देगा।

ऋषिकेश की जिम्मेदारी पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक

ऋषिकेश न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारतीय संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक भी है। यहां की पवित्र गंगा और शिवालिक की प्राकृतिक सुंदरता पर्यटकों को आकर्षित करती है। लेकिन बढ़ते कचरे के ढेर से इस शहर की छवि प्रभावित हो रही है, जो पर्यावरण और संस्कृति दोनों के लिए खतरे का संकेत हैं।

समाधान की दिशा

•    स्थानीय प्रशासन की भूमिका: कचरे के उचित प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य हैं।
•    पुनर्चक्रण (Recycling): प्लास्टिक और अन्य नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरे के पुनर्चक्रण के लिए प्रभावी योजना बनानी चाहिए।
•    पर्यटकों की जिम्मेदारी: पर्यटकों को कचरे के प्रबंधन और स्वच्छता के प्रति जागरूक करना आवश्यक हैं।
•    सामुदायिक भागीदारी: इस समस्या के समाधान में स्थानीय नागरिकों और एनजीओ को सक्रिय रूप से शामिल करना चाहिए।
•    सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन: केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं को समयबद्ध तरीके से लागू करना चाहिए।

गुजरात और तमिलनाडु के उदाहरण

गुजरात और तमिलनाडु ने कचरा प्रबंधन में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। गुजरात ने तीन वर्षों में दिल्ली जितना कचरा समाप्त कर दिया। उत्तराखंड को इन राज्यों से प्रेरणा लेकर ठोस कार्य योजना बनानी चाहिए, ताकि कचरा प्रबंधन की दिशा में प्रभावी कदम उठाए जा सकें।

पर्यावरणीय चेतावनी ऋषिकेश के कचरे का संकट

ऋषिकेश में कचरे का यह पहाड़ केवल एक स्थानीय समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे हिमालय क्षेत्र और पर्यावरण संरक्षण के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यदि इस समस्या का शीघ्र समाधान नहीं किया गया, तो यह भविष्य में और विकराल रूप ले सकता है। यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम ऋषिकेश को इस कचरे के संकट से बचाएं, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी गंगा की पवित्रता और हिमालय की सुंदरता का अनुभव कर सकें।

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