डोनाल्ड ट्रंप की ओर से गाजा पर पूर्ण नियंत्रण की घोषणा ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी है। ट्रंप के इस बयान के बाद अरब देश सतर्क हो गए हैं और अब उनकी योजना को नाकाम करने के लिए रणनीति बनाने में जुट गए हैं। शुक्रवार को सऊदी अरब की राजधानी रियाद में खाड़ी अरब देशों, मिस्र और जॉर्डन के बड़े नेता बैठक करने जा रहे हैं। इस बैठक में ऐसा बड़ा फैसला लिया जा सकता है, जो अमेरिका के लिए सिरदर्द बन सकता है।
ट्रंप के बयान से क्यों घबराए अरब देश?
ट्रंप की गाजा पर नियंत्रण की मंशा के ऐलान के बाद अरब देशों में खलबली मच गई है। खासतौर पर मिस्र और जॉर्डन इस योजना से सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति की इस योजना के पीछे क्या मकसद है? क्या अमेरिका किसी बड़े गेम प्लान पर काम कर रहा है? इन सवालों के जवाब खोजना और ट्रंप की रणनीति को ध्वस्त करना अरब देशों की इस बैठक का मुख्य एजेंडा होगा।
गाजा को लेकर क्या बनी अरब देशों की रणनीति?
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अरब देश गाजा पट्टी में फिलिस्तीनियों को मजबूती देने और अमेरिका की योजना को विफल करने के लिए एक ठोस कूटनीतिक विकल्प पर सहमति बनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन, इसके लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि गाजा के पुनर्निर्माण का खर्च कौन उठाएगा और इसका प्रशासन कैसे चलेगा? ये ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब के बिना कोई भी ठोस रणनीति बनाना मुश्किल होगा।
सऊदी अरब ने क्या कहा?
सऊदी अरब ने इस बैठक को "घनिष्ठ भाईचारे के संबंधों" के तहत एक अनौपचारिक मुलाकात बताया है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि असली मुद्दा गाजा ही है। इस बैठक से पहले मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी रियाद पहुंच चुके हैं और उन्होंने इस मुद्दे पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया भी दी है।
क्या गाजा से फिलिस्तीनियों को निकाला जाएगा?
सूत्रों के अनुसार, इस बैठक का एक अहम मुद्दा ट्रंप की उस योजना पर चर्चा करना है, जिसमें गाजा से फिलिस्तीनियों को हटाकर उन्हें जॉर्डन और मिस्र में बसाने की बात कही गई है। यह योजना क्षेत्र में अस्थिरता को जन्म दे सकती है, जिससे अरब देश बिल्कुल भी सहमत नहीं हैं।
ट्रंप की योजना को रोक पाएंगे अरब देश?
4 मार्च को काहिरा में अरब लीग की आपात बैठक होनी है, जिसमें यह तय किया जाएगा कि ट्रंप की योजना के खिलाफ संयुक्त मोर्चा कैसे तैयार किया जाए। हालांकि, इस बैठक से पहले ही सऊदी अरब, मिस्र और अन्य अरब देश अमेरिका के इस कदम को विफल करने के लिए ठोस रणनीति बना सकते हैं।
फिलिस्तीनी क्यों डरे हुए हैं?
फिलिस्तीनियों को डर है कि ट्रंप की योजना उनके लिए एक नई "नकबा" (तबाही) साबित होगी। 1948 में जब इजरायल बना था, तब करीब 8 लाख फिलिस्तीनी अपने घरों से बेघर हो गए थे। वे जॉर्डन, लेबनान, सीरिया और अन्य जगहों पर शरण लेने को मजबूर हुए थे। अगर ट्रंप की योजना लागू होती है, तो यह इतिहास दोबारा खुद को दोहरा सकता है।
अमेरिका के खिलाफ बड़ा कूटनीतिक मोर्चा तैयार?
अब सवाल यह है कि अरब देश इस संकट से निपटने के लिए कितने एकजुट हैं? क्या वे ट्रंप की इस योजना के खिलाफ एक सशक्त कूटनीतिक मोर्चा तैयार कर पाएंगे? या फिर अमेरिका की योजना पर अरब देशों की प्रतिक्रिया केवल बयानबाजी तक ही सीमित रह जाएगी? यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में मध्य पूर्व की राजनीति किस करवट बैठती है।
इस बैठक के नतीजे पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हैं। क्या अरब देश ट्रंप के इस बड़े प्लान को रोक पाएंगे? या फिर अमेरिका अपनी योजना को आगे बढ़ाने में कामयाब रहेगा? आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर भूचाल मचने वाला है।