माँ चंद्रघंटा: नवरात्रि की तीसरी देवी

माँ चंद्रघंटा: नवरात्रि की तीसरी देवी
Last Updated: 27 सितंबर 2024

 

नवरात्रि के तीसरे दिन, भक्त माँ चंद्रघंटा की पूजा करते हैं। माँ चंद्रघंटा, देवी पार्वती का विवाहित रूप हैं, जिन्होंने भगवान शिव से विवाह के बाद अपने माथे पर अर्ध चंद्रमा धारण करना प्रारंभ किया। यही कारण है कि उन्हें "चंद्रघंटा" के नाम से जाना जाता है।

स्वरूप और प्रतीक

माँ चंद्रघंटा के माथे पर अर्ध-गोलाकार चंद्रमा स्थित है, जो घंटा के समान प्रतीत होता है। यह उनके रूप का एक विशेष चिन्ह है और उन्हें शक्ति, सौम्यता और शांति का प्रतीक बनाता है। उनकी शांतिपूर्ण मुद्रा भक्तों के कल्याण की ओर संकेत करती है।

पूजा और उपासना

माँ चंद्रघंटा की पूजा का दिन चैत्र या अश्विन शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और माता से अपने जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

सवारी: माँ चंद्रघंटा की सवारी बाघिन है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है।

अत्र-शस्त्र: माँ के दस हाथ होते हैं, जिनमें विभिन्न अस्त्र हैं, जो उनके शक्ति और साहस को दर्शाते हैं।  फूल, तीर, धनुष और जप माला है, जबकि पाँचवें बाएं हाथ में अभय मुद्रा है।

ग्रह: माँ का संबंध शुक्र ग्रह से है, जो प्रेम, समर्पण और सौंदर्य का प्रतीक है।

शुभ रंग: माँ का शुभ रंग पीला है, जो ऊर्जा और सकारात्मकता का प्रतीक है।

समापन

माँ चंद्रघंटा की आराधना करने से भक्तों को साहस, शक्ति और सकारात्मकता की प्राप्ति होती है।

नवरात्रि के इस पावन पर्व पर सभी भक्तों से निवेदन है कि वे माँ चंद्रघंटा की पूजा करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन में सुख और समृद्धि लाने का प्रयास करें।

 

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