चित्तरंजन दास की जयंती 5 नवंबर को मनाई जाती है। इस दिन उन्हें उनके योगदान और संघर्ष के लिए याद किया जाता है, विशेष रूप से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनके महत्वपूर्ण भूमिका के लिए। चित्तरंजन दास को ‘देशबंधु ‘ के नाम से भी जाना जाता है।
चित्तरंजन दास का करियर
1. वकालत में करियर
चित्तरंजन दास ने अपनी वकालत की पढ़ाई इंग्लैंड से की और लौटने के बाद कलकत्ता उच्च न्यायालय में प्रख्यात वकील बन गए। उनके कुशल वकील होने के कारण उन्हें कई उच्च-profile मामलों में काम करने का अवसर मिला। उन्होंने क्रांतिकारियों के मामलों का भी निःशुल्क बचाव किया, जिससे उनकी प्रतिष्ठा बढ़ी।
2. स्वतंत्रता संग्राम में सक्रियता
चित्तरंजन दास ने 1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। 1920 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन का समर्थन करते हुए, उन्होंने वकालत छोड़ दी और राजनीति में पूर्ण रूप से सक्रिय हो गए। उनकी राजनीति का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संगठित करना था।
3. स्वराज पार्टी की स्थापना
1923 में, चित्तरंजन दास ने मोतीलाल नेहरू के साथ मिलकर स्वराज पार्टी की स्थापना की। इस पार्टी ने विधान परिषदों में भारतीय प्रतिनिधित्व के लिए चुनाव लड़ा और भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव लाने का प्रयास किया।
4. साहित्यिक योगदान
चित्तरंजन दास एक प्रतिभाशाली लेखक थे। उनकी प्रमुख रचनाओं में India for Indians, Antaryami, और To My Countrymen शामिल हैं। उन्होंने कई लेख भी लिखे, जो राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित थे। उनकी साहित्यिक कृतियों ने लोगों में जागरूकता और प्रेरणा का संचार किया।
5. शिक्षा के क्षेत्र में योगदान
चित्तरंजन दास ने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई संस्थान स्थापित किए। उन्होंने ढाका में 'राष्ट्रीय विद्यालय' की स्थापना की, जिससे शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया गया।
6. समाज सेवा
उन्होंने समाज में सुधार लाने के लिए कई आंदोलनों में भाग लिया। उनके विचार और कार्य हमेशा समाज के कमजोर वर्गों के लिए समर्पित रहे, और उन्होंने उनकी आवाज को उठाने का कार्य किया।
7. समाप्ति और विरासत
चित्तरंजन दास का निधन 1925 में हुआ, लेकिन उनका योगदान आज भी भारतीय राजनीति, साहित्य और समाज में महत्वपूर्ण है। उन्हें एक महान विचारक और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किया जाता है, और उनकी जयंती 5 नवंबर को मनाई जाती है। उनका जीवन और कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।
अरबिंदो घोष का केस लड़ा
चित्तरंजन दास ने 1908 में अरबिंदो घोष का केस लड़ा, जो 'अलीपुर बम कांड' से संबंधित था। अरबिंदो घोष, जो एक प्रमुख क्रांतिकारी और अंग्रेजी अखबार 'वंदे मातरम' के संपादक थे, को ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार किया गया था। उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने इस कांड में भाग लिया।
केस का महत्व
बचाव कार्य: चित्तरंजन दास ने अरबिंदो घोष का बिना किसी फीस के बचाव किया, अपने व्यक्तिगत खर्च को भी वहन किया, जो उनकी निस्वार्थ भावना को दर्शाता है।
सार्वजनिक प्रभाव: इस केस ने चित्तरंजन दास को एक प्रमुख वकील और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में स्थापित किया। उनके तर्कों और वकालत ने जनता में क्रांतिकारियों के प्रति सहानुभूति और समर्थन बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राष्ट्रीयता का संदेश: इस मुकदमे ने स्वतंत्रता संग्राम के प्रति लोगों की जागरूकता को बढ़ाया। चित्तरंजन दास ने अपने भाषणों और लेखों के माध्यम से यह संदेश फैलाया कि ब्रिटिश सरकार के दमन के खिलाफ संघर्ष जारी रहना चाहिए।
परिणाम
अरबिंदो घोष का मामला चित्तरंजन दास की प्रतिष्ठा को बढ़ाने में मददगार साबित हुआ और उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व बना दिया। यह केस उस समय की राजनीतिक स्थिति को उजागर करता है, जिसमें स्वतंत्रता सेनानियों को न्याय दिलाने के लिए वकीलों की आवश्यकता थी, जो अपने जीवन को जोखिम में डालकर उनके अधिकारों की रक्षा कर सकें।
जेल में बने थे कांग्रेस अध्यक्ष
चित्तरंजन दास 1921 में जेल में रहते हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। यह घटना उस समय हुई जब वे अपनी पत्नी बसंती देवी के साथ गिरफ्तारी के बाद जेल में थे।
जेल में कांग्रेस अध्यक्ष बनने का महत्व
नेतृत्व का प्रतीक: उनकी अध्यक्षता का यह निर्णय उनके मजबूत नेतृत्व और प्रतिबद्धता को दर्शाता है, खासकर जब वे कठिनाइयों का सामना कर रहे थे।
कांग्रेस में विश्वास: जेल में रहते हुए उनकी चुनावी जीत ने कांग्रेस में उनके प्रति विश्वास और समर्थन को बढ़ाया। यह दिखाता है कि पार्टी के सदस्य उन्हें एक प्रभावी नेता के रूप में देखते थे, भले ही वे जेल में हों।
आंदोलन को प्रेरित करना: उनकी अध्यक्षता ने कांग्रेस के सदस्यों को प्रेरित किया, जिससे यह संदेश गया कि स्वतंत्रता संग्राम के लिए संघर्ष जारी रहना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।
बाद की घटनाएँ
जेल में रहते हुए, चित्तरंजन दास ने कांग्रेस की दिशा और नीति पर विचार करने के लिए महत्वपूर्ण चर्चाएँ कीं। 1922 में, उन्हें फिर से कांग्रेस के अधिवेशन का अध्यक्ष चुना गया। हालांकि, इसी वर्ष चौरी चौरा कांड के बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को स्थगित करने का निर्णय लिया, जिससे स्वतंत्रता सेनानियों में निराशा फैल गई।
स्वराज पार्टी की स्थापना
स्वराज पार्टी की स्थापना 1 जनवरी 1923 को चित्तरंजन दास और मोतीलाल नेहरू के नेतृत्व में की गई थी। यह पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में उभरी, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ अधिक प्रभावी तरीके से लड़ाई लड़ना था।
स्वराज पार्टी की स्थापना के प्रमुख बिंदु
उद्देश्य: स्वराज पार्टी का मुख्य उद्देश्य विधान परिषदों में भारतीयों का प्रतिनिधित्व बढ़ाना और ब्रिटिश नीतियों का विरोध करना था। यह पार्टी यह मानती थी कि संसद के अंदर रहकर ही भारतीय जनता के अधिकारों के लिए संघर्ष करना संभव है।
राजनीतिक रणनीति: स्वराज पार्टी ने कांग्रेस के भीतर सुधार लाने और संसद में प्रभावी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का प्रयास किया। इसके सदस्यों ने चुनावों में भाग लेकर भारतीय मुद्दों को उठाने का निर्णय लिया।
महत्वपूर्ण उपलब्धियां: स्वराज पार्टी ने 1923 के विधान परिषद चुनावों में अच्छी सफलता हासिल की, जिससे यह साबित हुआ कि भारतीय जनता राजनीतिक रूप से जागरूक और सक्रिय है। चित्तरंजन दास पार्टी के पहले अध्यक्ष बने, जबकि मोतीलाल नेहरू महासचिव बने।
विरोधी नीतियों का सामना: पार्टी ने ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों का खुलकर विरोध किया और अपने राजनीतिक कार्यक्रमों के माध्यम से जनता को संगठित करने का कार्य किया।
प्रभाव
स्वराज पार्टी ने भारतीय राजनीति में एक नया दिशा प्रदान किया और कांग्रेस को एक नई रणनीति अपनाने के लिए प्रेरित किया। इसने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रियता और जागरूकता को बढ़ावा दिया और भारतीय जनमानस को राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल किया। चित्तरंजन दास की नेतृत्व क्षमता ने स्वराज पार्टी को एक प्रभावशाली राजनीतिक ताकत बना दिया।
पत्रकार और साहित्यकार भी थे चित्तरंजन दास
हाँ, चित्तरंजन दास एक प्रतिभाशाली पत्रकार और साहित्यकार भी थे। उन्होंने पत्रकारिता और साहित्य के माध्यम से अपने विचारों और राजनीतिक दृष्टिकोण को प्रसारित किया।
पत्रकारिता:
वंदे मातरम: चित्तरंजन दास ने 'वंदे मातरम' नामक अंग्रेजी अखबार के संपादक के रूप में कार्य किया। इस अखबार ने स्वतंत्रता संग्राम की भावना को जगाने और ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनता में जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
संपादकीय लेख: उन्होंने विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर संपादकीय लेख लिखे, जो उस समय की परिस्थिति और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रेरणादायक थे।
साहित्य:
पुस्तकें: चित्तरंजन दास ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं, जिनमें India for Indians, Antaryami, और To My Countrymen शामिल हैं। उनकी रचनाएँ न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण को उजागर करती हैं, बल्कि समाज के विभिन्न पहलुओं पर भी रोशनी डालती हैं।
कविता और लेखन: वे एक कवि भी थे, और उनकी काव्य रचनाएँ समाज और राष्ट्र के प्रति उनकी भावनाओं को व्यक्त करती हैं। उनकी लेखनी में देशभक्ति और सामाजिक जागरूकता का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है।
प्रभाव:
चित्तरंजन दास की पत्रकारिता और साहित्य ने न केवल उन्हें एक प्रभावशाली विचारक के रूप में स्थापित किया, बल्कि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों को जागरूक और प्रेरित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और भारतीय समाज को प्रेरित करते हैं।