डॉ. ज़ाकिर हुसैन भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद और राजनीतिज्ञ थे। उनका जन्म 8 फरवरी 1897 को हैदराबाद, तेलंगाना में एक पठान परिवार में हुआ। कम उम्र में ही उनका परिवार उत्तर प्रदेश आ गया। शिक्षा के प्रति उनकी रुचि और योगदान अद्वितीय था। केवल 23 वर्ष की आयु में वे जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की स्थापना दल का हिस्सा बने और बाद में इसके उपकुलपति भी बने। उनके नेतृत्व में विश्वविद्यालय ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शिक्षा
डॉ. हुसैन ने बर्लिन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की और शिक्षा के क्षेत्र में कई प्रमुख भूमिकाओं में रहे। स्वतंत्रता के बाद वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के उपकुलपति बने और विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की अध्यक्षता भी की। शिक्षा, प्रेस आयोग, यूनेस्को और माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से उनका गहरा जुड़ाव रहा।
1962 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बने और 13 मई 1967 को भारत के राष्ट्रपति पद की शपथ ली। वे देश के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति थे। उनके नेतृत्व और शिक्षा के प्रति समर्पण के लिए उन्हें 1963 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। डॉ. ज़ाकिर हुसैन का कार्यकाल 3 मई 1969 को उनके असामयिक निधन के कारण अधूरा रह गया। उनका योगदान शिक्षा और राष्ट्र निर्माण के क्षेत्र में अद्वितीय हैं।
डॉ. ज़ाकिर हुसैन का जीवन परिचय
डॉ. जाकिर हुसैन एक प्रख्यात शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी और कुशल प्रशासक थे जिन्होंने भारत के शैक्षिक एवं राजनीतिक इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उच्च शिक्षा के लिए वे जर्मनी गए, लेकिन जल्द ही भारत लौटकर जामिया मिलिया इस्लामिया को शैक्षणिक और प्रशासनिक नेतृत्व प्रदान किया। विश्वविद्यालय जब 1927 में बंद होने की स्थिति में था, तब डॉ. हुसैन के अथक प्रयासों ने उसे पुनर्जीवित किया। उन्होंने 21 वर्षों तक संस्थान का कुशल प्रबंधन किया और इसे ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रभावी मंच बनाया।
एक शिक्षक के रूप में डॉ. हुसैन ने महात्मा गांधी और हकीम अजमल खान के आदर्शों को प्रचारित किया। 1930 के दशक में वे कई शैक्षिक सुधार आंदोलनों में सक्रिय रूप से शामिल रहे। स्वतंत्रता के बाद उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया। इस दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय के भीतर पाकिस्तान के समर्थन में उठने वाली मांगों को सफलतापूर्वक रोका। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें 1954 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
डॉ. जाकिर हुसैन को राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया और बाद में बिहार के राज्यपाल बनाए गए। वे 1957 से 1962 तक इस पद पर रहे। उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के कारण उन्हें 1963 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। इसके बाद उन्होंने देश के दूसरे उपराष्ट्रपति के रूप में कार्य किया।
13 मई 1967 को डॉ. जाकिर हुसैन ने भारत के तीसरे और पहले मुस्लिम राष्ट्रपति के रूप में पद ग्रहण किया। उनकी प्रगतिशील सोच और शिक्षा के प्रति समर्पण ने उन्हें एक आदर्श नेता के रूप में स्थापित किया। उनका योगदान भारतीय शिक्षा और राजनीति में आज भी प्रेरणा स्रोत बना हुआ है।
डॉ. ज़ाकिर हुसैन का कार्यक्षेत्र
डॉ. ज़ाकिर हुसैन भारत के राष्ट्रपति बनने वाले पहले मुस्लिम थे, जिन्होंने शिक्षा, राजनीति और सामाजिक सुधारों के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया। महात्मा गांधी के "सरकारी संस्थानों के बहिष्कार" के आह्वान का पालन करते हुए उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अलीगढ़ में मुस्लिम नेशनल यूनिवर्सिटी की स्थापना में योगदान दिया, जो बाद में दिल्ली स्थानांतरित होकर जामिया मिलिया इस्लामिया बन गई। 1926 से 1948 तक वे इसके कुलपति रहे और संस्थान को शिक्षा और राष्ट्रवादी विचारधारा का केंद्र बनाने में अहम भूमिका निभाई।
महात्मा गांधी के निमंत्रण पर वे 1937 में प्राथमिक शिक्षा के राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष बने, जहां उन्होंने स्कूलों के लिए गांधीवादी पाठ्यक्रम तैयार करने में नेतृत्व प्रदान किया। 1948 में उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने विश्वविद्यालय के शैक्षणिक और प्रशासनिक सुधारों को प्रोत्साहित किया। चार वर्षों के बाद उन्होंने राज्यसभा में प्रवेश किया और 1956 से 1958 तक यूनेस्को की कार्यकारी समिति में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
1957 में उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया और 1962 में वे भारत के उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए। उनके कुशल नेतृत्व और शिक्षा के प्रति उनके समर्पण के कारण 1967 में उन्हें कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के रूप में भारत के राष्ट्रपति पद के लिए चुना गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने देश की सेवा की और 1969 में अपनी मृत्यु तक इस पद पर कार्यरत रहे। उनका जीवन भारतीय शिक्षा, राजनीति और समाज सुधार के प्रति उनके गहन समर्पण का प्रतीक है।