मिलेनियल्स को कोलोन कैंसर का खतरा बचपन में बैक्टेरियल टॉक्सिंस के संपर्क में आने से बढ़ सकता है। हालिया शोध के अनुसार, यह जोखिम युवा पीढ़ी में तेजी से बढ़ रहा है, और इससे बचाव के उपाय अपनाना जरूरी है।
कोलोन कैंसर, जिसे आमतौर पर वृद्धों की बीमारी माना जाता था, अब मिलेनियल्स (25 से 40 साल के युवा) में भी तेजी से बढ़ रहा है। हाल ही में एक शोध में यह सामने आया है कि बचपन में बैक्टीरिया के संपर्क में आने से भविष्य में कोलोन कैंसर का जोखिम बढ़ सकता है। यह जानकारी इस बात को समझने में मदद करती है कि पिछले कुछ दशकों में 50 साल से कम उम्र के लोगों में इस बीमारी के मामले क्यों बढ़ रहे हैं।
कोलोन कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी: क्या है कारण?
कोलोन कैंसर अब सिर्फ वृद्धों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह अब युवाओं में भी बढ़ता जा रहा है। पिछले 20 सालों में 50 साल से कम उम्र के व्यक्तियों में कोलोरेक्टल कैंसर के मामले लगातार बढ़े हैं। खासकर हर दशक में यह मामले दोगुने हो गए हैं। पहले यह बीमारी ज्यादातर वृद्धों में देखी जाती थी, लेकिन अब यह युवा लोगों को भी प्रभावित कर रही है।
यह स्थिति स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चिंता का कारण बन चुकी है, क्योंकि इस बीमारी का तेजी से बढ़ना हमारे समाज में किसी नए खतरे की ओर इशारा कर रहा है। इस बदलाव का कारण क्या है, यह जानना और समझना बहुत जरूरी है ताकि हम इसे रोकने के लिए सही कदम उठा सकें और आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित रखा जा सके।
कोलोन कैंसर पर रिसर्च
इस अध्ययन में 11 देशों के 981 कोलोरेक्टल कैंसर ट्यूमर्स के जीन का विश्लेषण किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों को 40 साल की उम्र से पहले कोलोन कैंसर हुआ, उनके डीएनए में कुछ खास बदलाव पाए गए थे। यह बदलाव एस्चेरिचिया कोलाई (Escherichia coli) बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न कोलीबैक्टिन (Colibactin) नामक टॉक्सिन के कारण होते हैं।
इस टॉक्सिन के संपर्क में आने से बचपन में कोलोन कैंसर का खतरा बढ़ सकता है, खासतौर पर उन बच्चों में जिन्होंने 10 साल की उम्र से पहले इस बैक्टीरिया का संपर्क किया।
कोलीबैक्टिन और कोलोन कैंसर: जीन में बदलाव और स्वास्थ्य पर प्रभाव
कोलीबैक्टिन एक टॉक्सिन है जो एस्चेरिचिया कोलाई (E. coli) बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न होता है। यह टॉक्सिन जीन में बदलाव ला सकता है, जो शरीर में लंबे समय तक रह सकते हैं। इस बदलाव के कारण भविष्य में कोलोन कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, अगर बच्चों को 10 साल की उम्र से पहले इस बैक्टीरिया के संपर्क में आता है, तो यह जीन में बदलाव कर सकता है।
यह बदलाव युवाओं में कोलोन कैंसर के रूप में दिख सकता है। लुडमिल अलेक्जेंड्रोव ने बताया कि यह प्रभाव बचपन में बैक्टीरिया के संपर्क से शुरू होकर आगे बढ़ सकता है, जिससे भविष्य में कैंसर का जोखिम बढ़ सकता है। इस शोध से यह साफ है कि कोलीबैक्टिन जैसे टॉक्सिन का प्रभाव हमारे जीनोम पर स्थायी असर डाल सकता है, जो हमें कैंसर जैसे गंभीर रोगों का सामना करवा सकता है।
कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी: किस-किस देश में है असर?
हाल के शोध में यह पाया गया है कि कुछ देशों में कोलोरेक्टल कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इन देशों में अर्जेंटीना, ब्राजील, कोलंबिया, रूस और थाईलैंड प्रमुख हैं। इन देशों में कैंसर के मामलों में वृद्धि के साथ-साथ कुछ खास प्रकार के जीन म्यूटेशन भी पाए गए हैं। इसका मतलब यह है कि इन देशों के स्थानीय पर्यावरणीय कारक, जैसे प्रदूषण, खानपान, और जीवनशैली, इस बीमारी के बढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
शोध से यह भी पता चलता है कि इन देशों में रहने वाले लोगों को खास तरह के वातावरण का सामना करना पड़ रहा है, जो कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है। इसलिए, इन देशों में कोलोरेक्टल कैंसर के बढ़ते मामलों को समझने के लिए और ज्यादा शोध की आवश्यकता है।
रिसर्चर्स की राय: क्या हो सकता है समाधान?
स्पेनिश नेशनल कैंसर रिसर्च सेंटर के शोधकर्ता, मार्कोस डियाज-गे के अनुसार, विभिन्न देशों में कोलोरेक्टल कैंसर के बढ़ते मामलों के पीछे अलग-अलग कारण हो सकते हैं। यह संभव है कि हर देश या क्षेत्र में खास पर्यावरणीय या जीवनशैली से जुड़े तत्व इस बीमारी को बढ़ावा दे रहे हों। इसी वजह से, शोधकर्ताओं का मानना है कि एक सामान्य समाधान की बजाय हर क्षेत्र के लिए विशिष्ट और लक्षित (टारगेटेड) प्रिवेंशन रणनीतियाँ अपनाई जानी चाहिए।
उदाहरण के लिए, कुछ क्षेत्रों में विशेष रूप से खानपान, प्रदूषण या किसी अन्य कारक से जुड़ी समस्याएँ हो सकती हैं, जिनका ध्यान रखना जरूरी होगा। ऐसे में, हर इलाके के लिए अनुकूलित तरीके से इस कैंसर से बचने की कोशिश की जा सकती है, जिससे इस बीमारी से लोगों को बचाया जा सके और इसके खतरे को कम किया जा सके।
कोलोरेक्टल कैंसर से बचने के उपाय
कोलोरेक्टल कैंसर के खतरे से बचने के लिए बचपन में बच्चों को बैक्टीरिया से बचाना बेहद ज़रूरी है। इसके लिए स्वच्छता बनाए रखना, हेल्दी आहार लेना और नियमित स्वास्थ्य जांच करवाना जरूरी है। सही समय पर किए गए इन कदमों से हम इस बीमारी के जोखिम को कम कर सकते हैं। विशेष रूप से, यदि बच्चों को बचपन में बैक्टीरिया से दूर रखा जाए और उनकी सेहत पर ध्यान दिया जाए, तो यह भविष्य में इस बीमारी से बचने का अच्छा तरीका हो सकता है। इसलिए, बच्चों की देखभाल और उनका सही तरीके से पालन-पोषण इस खतरनाक बीमारी से बचने में मददगार हो सकता है।