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स्तनपान केवल शिशु नहीं, मां के लिए भी है अमृत समान: 9 गंभीर बीमारियों से मिलता है बचाव

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मां बनना हर महिला के जीवन का सबसे अनमोल अनुभव होता है। इस सफर में कई शारीरिक और मानसिक चुनौतियां आती हैं, लेकिन बच्चे के जन्म के बाद मां की सबसे पहली ज़िम्मेदारी होती है—स्तनपान कराना। अक्सर लोग मानते हैं कि स्तनपान केवल शिशु के लिए जरूरी है, लेकिन बहुत कम लोग इस बात से अवगत हैं कि यह मां के लिए भी जीवनरक्षक हो सकता है।

हाल के शोध और विशेषज्ञों की राय बताती है कि स्तनपान न सिर्फ शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए जरूरी है, बल्कि मां को भी कई जानलेवा बीमारियों से सुरक्षित रखता है। इस रिपोर्ट में हम विस्तार से जानेंगे कि किस तरह स्तनपान शिशु और मां दोनों के लिए वरदान है, और कैसे यह एक सरल प्रक्रिया अनेक जटिल रोगों को मात दे सकती है।

स्तनपान: शिशु के लिए पहला और सबसे महत्वपूर्ण टीका

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान शुरू करना शिशु की इम्युनिटी को मजबूत बनाने में बेहद असरदार होता है। मां का पहला दूध, जिसे 'कोलोस्ट्रम' कहा जाता है, एंटीबॉडीज से भरपूर होता है। यह बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है और कई गंभीर बीमारियों से रक्षा करता है।

शिशु को स्तनपान कराने से मिलने वाले लाभ

  • इम्युन सिस्टम मजबूत होता है: स्तनपान शिशु को संक्रमण, दस्‍त, उल्टी, निमोनिया और काली खांसी जैसी बीमारियों से बचाता है।
  • शारीरिक और मानसिक विकास: दूध में मौजूद फैटी एसिड और पोषक तत्व मस्तिष्क के विकास में मदद करते हैं।
  • मोटापा और डायबिटीज से सुरक्षा: स्तनपान करने वाले बच्चों में मोटापा और टाइप 2 डायबिटीज की संभावना कम होती है।
  • लीकिमिया और एक्जिमा से बचाव: कई शोधों में यह सामने आया है कि ब्रेस्टफीडिंग ल्यूकेमिया जैसे कैंसर और त्वचा रोगों के जोखिम को कम करता है।
  • कम होती है अस्पताल जाने की जरूरत: ब्रेस्टफीडिंग करने वाले शिशुओं को अस्पताल में भर्ती होने की नौबत कम आती है, जिससे मेडिकल खर्च भी घटता है।

मां के लिए भी 'जीवन रक्षक' है स्तनपान 

जहां एक ओर शिशु को स्तनपान से अनेक लाभ मिलते हैं, वहीं मां के लिए भी यह प्रक्रिया कई प्रकार की शारीरिक और मानसिक राहत लाती है।

स्तनपान कराने से मां को होने वाले फायदे

  • पोस्टपार्टम डिप्रेशन से राहत: स्तनपान कराने से ऑक्सीटोसिन हार्मोन का स्त्राव बढ़ता है, जो मूड को बेहतर करने और तनाव को कम करने में मदद करता है। इससे पोस्टपार्टम डिप्रेशन की संभावना कम होती है।
  • गर्भाशय के आकार में वापसी: ऑक्सीटोसिन के कारण गर्भाशय जल्दी अपने सामान्य आकार में लौट आता है, जिससे ब्लीडिंग भी कम होती है।
  • कैंसर से सुरक्षा: जो महिलाएं स्तनपान कराती हैं, उनमें ब्रेस्ट कैंसर, ओवेरियन कैंसर, थायरॉइड और एंडोमेट्रियल कैंसर का खतरा काफी कम हो जाता है।
  • हड्डियों को मजबूती: स्तनपान करने वाली महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा कम होता है।
  • मेटाबोलिक स्वास्थ्य बेहतर: ब्रेस्टफीडिंग से टाइप 2 डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों का खतरा घटता है।
  • दिल की बीमारियों से राहत: कार्डियोवैस्कुलर डिजीज का खतरा भी स्तनपान कराने से कम होता है।

मां-बच्चे के बीच अनोखा जुड़ाव

स्तनपान केवल पोषण देने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि मां और बच्चे के बीच एक भावनात्मक पुल है। जब मां अपने शिशु को दूध पिलाती है, तो एक शारीरिक और मानसिक संबंध बनता है जो बच्चे की मानसिक स्थिरता और मां के आत्मविश्वास को बढ़ाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, स्तनपान कराने वाली मां अपने बच्चे की ज़रूरतों को जल्दी समझने लगती हैं। इससे माता-पिता के रूप में मां की आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण भी होता है।

कब तक कराना चाहिए स्तनपान?

WHO और यूनिसेफ की सलाह है कि जन्म के पहले छह महीने तक शिशु को केवल मां का दूध दिया जाए, बिना किसी पानी, शहद या फार्मूला मिल्क के। छह महीने के बाद अर्ध-ठोस आहार के साथ स्तनपान को कम से कम 2 वर्ष तक जारी रखना चाहिए। दुर्भाग्यवश आज भी कई समुदायों में स्तनपान को लेकर गलत धारणाएं और शर्म की भावना जुड़ी होती है। सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान को लेकर असहजता, जानकारी की कमी और पारिवारिक दबाव स्तनपान को बाधित करते हैं। ऐसे में जरूरी है कि समाज में ब्रेस्टफीडिंग को सामान्य और ज़रूरी प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जाए।

सरकार और स्वास्थ्य संगठनों की भूमिका

भारत सरकार और विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों ने स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए कई अभियान चलाए हैं, जैसे 'स्तनपान सप्ताह' (1 से 7 अगस्त) और 'पोषण अभियान'। इसके तहत स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा मां को स्तनपान की अहमियत समझाई जाती है और उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है। स्तनपान एक प्राकृतिक, मुफ्त और पूर्ण पोषण प्रणाली है जो शिशु और मां दोनों को जीवनभर फायदे देती है। यह न केवल शिशु की प्रारंभिक विकास यात्रा को मजबूत बनाता है, बल्कि मां को कई जानलेवा बीमारियों से सुरक्षित भी रखता है।

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