एक समय की बात है, झील के किनारे एक छोटा सा गांव था। यह गांव चारों ओर से हरियाली और खुशहाली से घिरा हुआ था। गांव के लोग मेहनत से खेती करते थे, भेड़ें पालते थे और अन्य छोटे-छोटे काम करते थे। यहां का हर व्यक्ति एक-दूसरे के सुख-दुःख में भागीदार था। खुशी, दुख, उत्सव या कोई संकट, सब कुछ मिलकर ही होते थे।
पर एक दिन, एक विचित्र घटना घटी। सुबह का समय था, गांव के लोग अपनी दिनचर्या में व्यस्त थे। किसान अपने हल लेकर खेतों में गए, महिलाएं घर के कामों में लगी थीं, बच्चे खेल रहे थे, और भेड़ें भी चरने चली गई थीं। तभी अचानक आकाश में काले बादल घेर आए, और तेज तूफान आ गया। कुछ ही देर में मूसलधार बारिश शुरू हो गई और गांव के ऊपर गहरा अंधेरा छा गया। बारिश का पानी झील में एकत्र हो गया, लेकिन सूरज ने अपना चेहरा नहीं दिखाया।
बारिश कुछ समय में रुक गई, लेकिन सूरज के बिना गांव का जीवन ठंड और अंधेरे में डूब गया। पेड़-पौधे मुरझा गए, भेड़ें और अन्य जानवर ठंड से मरने लगे, और लोगों की खेती भी बर्बाद हो गई। धीरे-धीरे गांव का सारा जीवन रुक गया। लोग घबराए हुए थे, क्योंकि सूरज के बिना उनके पास जीवन की कोई उम्मीद नहीं थी।
गांव के लोग दुखी होकर पहाड़ी पर रहने वाले एक बुजुर्ग के पास गए। बुजुर्ग ने उनकी बातें ध्यान से सुनीं और कहा, "तुम लोगों की खुशियों पर बहुत समय से दैत्यों के राजा की नजर थी। सूरज की रोशनी में दैत्य तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे। अब वह सूरज को बंदी बना कर ले गया है। जब तक सूरज बाहर नहीं आएगा, तुम सबकी ज़िन्दगी अंधेरे में डूबी रहेगी।"
गांव के लोग चिंतित हो गए, क्योंकि सूरज के बिना उनका जीवन बर्बादी की ओर बढ़ रहा था। लेकिन, तभी गांव में वीर सिंह नामक एक बहादुर युवक सामने आया। उसने कहा, "मैं सूरज को वापस लाऊंगा। मैं इस गांव को भूख से मरने नहीं दूंगा। सूरज को वापस लाकर ही दम लूंगा।"
उसकी बात सुनकर गांव के सभी लोग हताश थे, लेकिन वीर सिंह ने ठान लिया था कि वह सूरज को वापस लाएगा। गांव की महिलाओं ने उसके लिए गर्म कपड़े बुने, युवतियों ने उसे भोजन दिया, और कारीगरों ने उसे छड़ी, छतरी और जूते उपहार में दिए। वीर सिंह सूरज को वापस लाने के लिए निकल पड़ा।
सारा गांव उसे विदा करने आया। रास्ते में, एक सोने के पंखों वाली चिड़ीया वीर सिंह के पास आई और बोली, "दैत्यों के राजा ने सूरज को बंदी बना लिया है, और अब वह तुम्हारे गांव पर कब्जा करना चाहता है। मैं तुम्हारे साथ चलूंगी और रास्ते में तुम्हारी मदद करूंगी।" वीर सिंह और चिड़ीया सूरज की खोज में चल पड़े।
काफी समय बाद, वीर सिं की पत्नी और उनका बेटा, नवीन, रोज पहाड़ी पर चढ़कर दूर तक देखते थे, लेकिन वीर सिंह का कहीं पता नहीं था। एक दिन, चिड़ीया ने एक अंगूठी दी जो वीर सिंह की थी। पत्नी ने पहचान लिया और दुखी हो गई, लेकिन नवीन ने कहा, "मां, पिताजी ने जो संकल्प लिया था, उसे मुझे पूरा करना होगा। सूरज को वापस लाना ही होगा।"
नवीन ने वीर सिंह के रास्ते पर चलने का निश्चय किया। गांव के लोग फिर से उसकी मदद के लिए आगे आए। बूढ़ी औरतों ने उसे कपड़े दिए, युवतियों ने भोजन तैयार किया और बुजुर्गों ने उसे उपहार दिए। सोने के पंखों वाली चिड़ीया नवीन के साथ चल पड़ी।
नवीन का रास्ता लंबा था, और हर गांव में लोग उसकी मदद कर रहे थे, लेकिन एक दिन वह एक गांव में पहुंचा, जहां रोशनी थी। दावत का आयोजन हो रहा था, और वहां एक व्यक्ति ने वीर सिंह का कोट और बूट पहने हुए थे। वह व्यक्ति वही था जिसने सूरज को बंदी बनाया था और वीर सिंह की हत्या की थी।
नवीन समझ गया कि उसे सूरज को छीनने और दैत्यों के राजा से सामना करने का वक्त आ गया है। वह ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो, वह सूरज को वापस लाकर ही दम लेगा।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि
जब किसी समस्या का सामना करें, तो न हार मानें। चाहे कितनी भी कठिनाई क्यों न हो, सही संकल्प और साहस से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। सूरज को वापस लाने के लिए वीर सिंह और उसके बेटे ने यह साबित किया कि यदि इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो कोई भी संकट हमें रोक नहीं सकता।