Pandit Bhimsen Joshi: हर साल 4 फरवरी को पंडित भीमसेन जोशी की जयंती मनाई जाती हैं, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान उस्ताद और हिंदुस्तानी गायन की दुनिया के सितारे थे। पंडित भीमसेन जोशी का संगीत आज भी भारतीय संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित है। उनका योगदान न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में अनमोल था, बल्कि भक्ति संगीत, फिल्मी गायन और देशभक्ति गीतों में भी उन्होंने अपनी विशेष छाप छोड़ी।
पंडित भीमसेन जोशी का नाम भारतीय शास्त्रीय संगीत के आकाश में सदैव चमकता रहेगा। 4 फरवरी 1922 को कर्नाटक के धारवाड़ जिले में जन्मे पंडित जोशी का संगीत की दुनिया में योगदान अनुपम है। वह हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के किराना घराने के प्रमुख कलाकार थे, जिन्होंने अपनी गायकी से न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर में भारतीय संगीत को प्रतिष्ठित किया।
प्रारंभिक जीवन और संगीत की ओर कदम
भीमसेन जोशी का जन्म एक माधव ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता, गुरुराज जोशी, एक शिक्षक थे और उनकी माता का नाम गोदावरीबाई था। बचपन में ही जोशी को संगीत के प्रति गहरी रुचि थी। हारमोनियम और तानपुरा जैसे वाद्ययंत्रों के प्रति उनकी असीम श्रद्धा ने उन्हें संगीत की दुनिया में कदम रखने के लिए प्रेरित किया। हालांकि, उन्होंने अपनी मां को बहुत कम उम्र में खो दिया था, लेकिन उनके संगीत की राह पर चलते हुए उन्होंने न केवल अपने परिवार का, बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया।
संगीत प्रशिक्षण और गुरु की तलाश
भीमसेन जोशी के संगीत यात्रा की शुरुआत उनके पहले गुरु, धोबी समुदाय के चन्नप्पा से हुई। उन्होंने राग भैरव और भीमपलासी जैसे रागों का अभ्यास किया। इसके बाद जोशी ने अपने गुरु की खोज शुरू की और 1936 में सवाई गंधर्व के शिष्य बने। सवाई गंधर्व के साथ रहते हुए जोशी ने अपने गायन के हुनर को और निखारा। सवाई गंधर्व की विशेषताएँ और उनकी शिक्षाएं पंडित जोशी की गायकी में गहरी रचनात्मकता और भावनात्मक अभिव्यक्ति लाने का कारण बनीं।
आजीविका और प्रसिद्धि का मार्ग
भीमसेन जोशी ने 19 साल की उम्र में पहली बार सार्वजनिक मंच पर गायन किया। 1942 में उनका पहला एल्बम रिलीज़ हुआ, जिसमें भक्ति गीत शामिल थे। जोशी का गायन न केवल शास्त्रीय संगीत के प्रेमियों में प्रिय था, बल्कि उनका नाम पूरी दुनिया में फैलने लगा। 1964 से लेकर 1982 तक उन्होंने दुनिया के विभिन्न देशों में संगीत प्रस्तुत किया। भारत के पहले गायक के रूप में, जिनके कार्यक्रमों का विज्ञापन न्यूयॉर्क शहर में किया गया था, पंडित जोशी का संगीत कला में योगदान अनमोल हैं।
संगीत और भक्ति संगीत में योगदान
पंडित जोशी के गायन का विशेष पहलू उनकी अद्भुत श्वास-नियंत्रण और लयबद्धता थी। उनकी गायकी में रागों का एक अनूठा मिश्रण देखने को मिलता था। शुद्ध कल्याण, मियाँ की तोड़ी, भीमपलासी, यमन, दरबारी, मालकौंस, मुल्तानी, और रामकली जैसे रागों में उनकी आवाज़ ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
उन्होंने न केवल हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा दिया, बल्कि भक्ति संगीत में भी अपनी गहरी छाप छोड़ी। हिंदी, मराठी और कन्नड़ में उन्होंने भजन और अभंग गाए, जो आज भी भक्तों के दिलों में बसी हुई हैं। उनके भक्ति गीतों ने धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभवों को नया आयाम दिया।
सम्मान और पुरस्कार
पंडित भीमसेन जोशी को उनके अद्वितीय संगीत योगदान के लिए कई पुरस्कारों से नवाजा गया। 1998 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप से सम्मानित किया गया। इसके बाद 2009 में उन्हें भारत रत्न जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा गया। पंडित जोशी का संगीत ना केवल भारत में, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया।
व्यक्तिगत जीवन और संघर्ष
भीमसेन जोशी का जीवन संगीत के साथ-साथ व्यक्तिगत संघर्षों से भी भरा हुआ था। उन्होंने दो बार शादी की थी और उनके परिवार में सात बच्चे थे। उनका जीवन हमेशा से ही बहुत साधारण और तपस्वी था। शराब की लत से जूझते हुए उन्होंने अंततः अपने इस संकट पर काबू पाया और अपने जीवन के अंतिम वर्षों में शांति की खोज की।
मृत्यु और विरासत
पंडित भीमसेन जोशी का निधन 24 जनवरी 2011 को हुआ। उनका अंतिम संस्कार पुणे के वैकुंठ श्मशान घाट पर राजकीय सम्मान के साथ किया गया। पंडित जोशी की गायकी का प्रभाव उनकी विरासत के रूप में हमेशा जीवित रहेगा। उनकी गायकी और योगदान ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनका संगीत न केवल भारतीयों, बल्कि समूचे विश्व के संगीत प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।
जोशी की स्मृति में एक सांस्कृतिक धरोहर
पंडित भीमसेन जोशी और उनके मित्र नानासाहेब देशपांडे ने 1953 में "सवाई गंधर्व महोत्सव" की शुरुआत की थी, जो आज भी प्रतिवर्ष पुणे में आयोजित होता है। यह महोत्सव भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रेमियों के लिए एक तीर्थस्थल बन चुका है, जहां पंडित जोशी की संगीत परंपरा को जीवित रखा जाता हैं।
पंडित भीमसेन जोशी के योगदान को याद करते हुए हम यह कह सकते हैं कि वह न केवल एक महान संगीतज्ञ थे, बल्कि भारतीय संगीत के प्रति उनके प्रेम और समर्पण ने उनकी पहचान को अमर कर दिया। उनकी गायकी और योगदान हमेशा भारतीय संगीत के आकाश में एक चमकते सितारे के रूप में चमकते रहेंगे।