हिन्दी फिल्मों के आंरभिक दौर के नायकों में अशोक कुमार एक ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने प्रचलित पारसी थिएटर के संस्कारों को ताक पर रखते हुए अपने सहज अभिनय के दम पर स्टारडम खड़ा किया और कभी अपने को किसी छवि से बंधने नहीं दिया। अपनी खास छवि के कारण वह लोगों के दिलों पर छा गए।अल्हड़ स्वभाव और कोई भी किरदार करने की क्षमता ने उन्हें असल मायनों में सुपरस्टार बना दिया था।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
अभिनेता अशोक कुमार (Ashok Kumar) का जन्म बिहार के भागलपुर शहर के आदमपुर मोहल्ले में 13 अक्टूबर, 1911 को हुआ था।इनके पिता का नाम कुंजलाल गांगुली तथा माता का नाम गौरी देवी था। उनके पिता मध्य प्रदेश के खंडवा में वकील थे और माँ एक सम्पन्न परिवार से थी। उनके बचपन का नाम कुमुदलाल गांगुली था। यह गांगुली परिवार ब्राह्मण परिवार मध्यप्रदेश में खंडवा स्थान में बस गया था। अशोक कुमार के दो भाई अनूप कुमार तथा किशोर कुमार थे तथा एक बहन थी सती देवी थी।उनके दोनों भाई भी फिल्मो में अभिनय करते थे तथा गीत गाते थे।गायक एवं अभिनेता किशोर कुमार एवं अभिनेता अनूप कुमार उनके छोटे भाई थे। दरअसल इन दोनों को फिल्मों में आने की प्रेरणा भी अशोक कुमार से ही मिली।तीनों भाई “चलती का नाम गाड़ी” और “बढ़ती का नाम दाढ़ी” जैसी फिल्मों में एक साथ काम करके दर्शकों को खूब हंसा चुके हैं। आज भी “चलती का नाम गाड़ी” को बेहतरीन हास्य फिल्मों में गिना जाता है।
प्रारंभिक शिक्षा
अशोक कुमार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मध्यप्रदेश के खंडवा शहर से की थी, उसके बाद उन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की। कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से पढाई की। उसके बाद अशोक कुमार वर्ष 1934 में न्यू थिएटर मे बतौर लेबोरेट्री असिस्टेंट पद पर काम करने लगे, बाद में उनके बहनोई शशधर मुखर्जी ने उन्हें बाम्बे टॉकीज में अपने पास बुला लिया था वहीँ से इन्होंने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत की।
वैवाहिक जीवन
अशोक कुमार ने 20 अप्रैल 1936 को ‘शोभा देवी’ से शादी की थी। अशोक और शोभा का एक बेटा है और तीन बेटियां हैं। बेटे का नाम ‘अरूप कुमार गांगुली’ है और बेटियों के नाम ‘प्रीती गांगुली’, ‘भारती जफ्फेरी’ और ‘रूपा गांगुली’ हैं।
उनकी बेटी प्रीटी गांगुली ने भी कई फिल्मो में अभिनय किया। प्रीटी गांगुली ने ही 1993 में अकादमी ऑफ़ ड्रामेटिक आर्ट्स की स्थापना की।अशोक कुमार को प्यार से दादा मोनी पुकारा जाता था।
अशोक कुमार का कॅरियर
अशोक कुमार ने कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कालेज से पढ़ाई की थी। अशोक कुमार ने अभिनय की प्रचलित शैलियों को दरकिनार कर दिया और अपनी स्वाभाविक शैली विकसित की। सिनेमा जगत में तमाम पुरस्कार जीत चुके और कई बेहतरीन फिल्में दे चुके अशोक कुमार सिनेमा जगत में बड़े बुझे दिल से आए थे।
दरअसल अशोक कुमार की रूचि फिल्म के तकनीकी पक्ष में थी और वह इसी में सफलता हासिल करना चाहते थे। किसी काम को हाथ में लेने के बाद उसे पूरी तल्लीनता से करना अशोक कुमार की फितरत थी। इसी वजह से जब उन पर अभिनय की जिम्मेदारी आई तो उन्होंने इसे भी पूरी गंभीरता से लिया। वह अभिनय में इतनी जल्दी रच बस गए कि लगा मानों यह उनका जन्मजात पेशा था।
1936 में बांबे टाकीज स्टूडियो की फिल्म जीवन नैया के हीरो अचानक बीमार हो गए और कंपनी को नए कलाकार की तलाश थी। ऐसी स्थिति में स्टूडियो के मालिक हिमांशु राय की नजर आकर्षक व्यक्तित्व के धनी लैबोरेटरी असिस्टेंट अशोक कुमार पर पड़ी और उनसे अभिनय करने की पेशकश की।यहीं से उनके अभिनय का सफर शुरू हो गया।
अशोक कुमार की हिट फिल्में
उनकी अगली फिल्म "अछूत कन्या" थी। 1937 में प्रदर्शित यह फिल्म अछूत समस्या पर आधारित थी और देविका रानी उनकी नायिका थीं। यह फिल्म कामयाब रही और उसने दादामुनि को बड़े सितारों की श्रेणी में स्थापित कर दिया।
एक स्टार के रूप में अशोक कुमार की छवि 1943 में आई “किस्मत” फिल्म से बनी। पर्दे पर सिगरेट का धुंआ उड़ाते अशोक कुमार ने राम की छवि वाले नायक के उस दौर में इस फिल्म के जरिए एंटी हीरो के पात्र को निभाने का जोखिम उठाया। यह जोखिम उनके लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ और इस फिल्म ने सफलता के कई कीर्तिमान बनाए। इसके बाद 1949 में मधुबाला के साथ आई “महल” भी काफी सफल साबित हुई।
बाद के दिनों में जब हिंदी सिनेमा में दिलीप, देव और राज की तिकड़ी की लोकप्रियता चरम पर थी, उस समय भी उनका अभिनय लोगों के सर चढ़कर बोलता रहा और उनकी फिल्में कामयाब होती रहीं।
साल 1959 और साल 1960 में अशोक को फिल्म ‘बाप बेटे’, ‘नई राहें’, ‘ढाका’, ‘धुल का फूल’, ‘कल्पना’, ‘हॉस्पिटल’, ‘आँचल’, ‘मोनसून, ‘काला आदमी’ और ‘कानून’ में अभिनय किया था। साल 1961 की शुरुआत अशोक ने फिल्म ‘डार्क स्ट्रीट’ के साथ किया था। इसके बाद उन्हें फिल्म ‘फ्लैट न. 9’, ‘वारंट’, ‘धर्मपुत्र’ और ‘करोड़पति’ में भी देखा गया था।
उम्र बढ़ने के साथ ही उन्होंने सहायक और चरित्र अभिनेता का किरदार निभाना शुरू कर दिया लेकिन उनके अभिनय की ताजगी कायम रही। ऐसी फिल्मों में कानून, चलती का नाम गाड़ी, विक्टोरिया नंबर 203, छोटी सी बात, शौकीन, मिली खूबसूरत बहू, बेगम, पाकीजा, गुमराह, एक ही रास्ता, बंदिनी, ममता आदि शामिल हैं. उन्होंने विलेन की भी भूमिका की।
फिल्म ही नहीं अशोक कुमार ने टीवी में भी काम किया। भारत के पहले सोप ओपेरा हम लोग में उन्होंने सूत्रधार की भूमिका निभाई। सूत्रधार के रूप में अशोक कुमार हम लोग के एक अभिन्न अंग बन गए। दर्शक आखिर में की जाने वाली उनकी टिप्पणी का इंतजार करते थे क्योंकि वह टिप्पणी को हर बार अलग तरीके से दोहराते थे। उन्होंने बहादुरशाह जफर सीरियल में भी अविस्मरणीय भूमिका निभाई थी।
अशोक कुमार के अभिनय की चर्चा उनकी आशीर्वाद फिल्म के बिना अधूरी ही रहेगी। इस फिल्म में उन्होंने एकदम नए तरह के पात्र को निभाया। इस फिल्म में उनका गाया गीत रेलगाड़ी रेलगाड़ी.. काफी लोकप्रिय हुआ था। इस फिल्म के लिए उन्हें श्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था।
अशोक कुमार को मिले पुरस्कार
साल 1959 में ‘संगीत नाटक अकैडमी अवार्ड’ से सम्मानित किया गया था।
साल 1962 में फिल्म ‘राखी’ के लिए ‘बेस्ट एक्टर’ का अवार्ड मिला था।
साल 1963 में फिल्म ‘गुमराह’ के लिए ‘बेस्ट एक्टर’ का अवार्ड मिला था।
साल 1969 में फिल्म ‘आशीर्वाद’ के लिए ‘बेस्ट एक्टर’ का अवार्ड मिला था।
साल 1988 में ‘दादासाहेब फाल्के अवार्ड’ से सम्मानित किया गया था।
साल 1994 में ‘स्टार स्क्रीन’ की तरफ से ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित किया गया था।
साल 1999 में ‘पद्मा भूषण’ अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
साल 2007 में ‘स्पेशल अवार्ड’ से सम्मानित किया गया था।
निधन
लगभग छह दशक तक अपने बेमिसाल अभिनय से दर्शकों के दिलों पर राज करने वाले अशोक कुमार ने
करियर के आखिरी 30 बरसों में अस्थमा से पीड़ित रहे। 10 दिसंबर 2001 को उनका हार्ट फेल होने से निधन हो गया।आज भी दादा मुनि नए सितारों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत हैं।
उनकी चर्चित फिल्मों में पाकीजा, बहू बेगम, आरती, बंदिनी, आशीर्वाद, चलती का नाम गाड़ी आदि शामिल हैं।
किशोर कुमार के अनमोल वचन
दुनिया की हर जगह को अगर प्यार की नज़र से देखो तो वह बहुत ही ज्यादा खुबसूरत लगती है।
कभी कभी इंसान का भाग्य उसे धोखा दे सकता है। लेकिन भगवान उसे कभी भी धोखा नहीं दे सकते।
प्रेम या प्यार एक ऐसा अहसास है जो लोगों को बलिदान, त्याग करना सिखाता है।
यदि आप किसी चीज को पाना चाहते है जो आपका पहले कभी नहीं था। उसके लिए आपको कुछ नया करना पड़ेगा जो पहले आपने कभी नहीं किया है इस तरह से शायद आप उस चीज को पा लें।
गरीबी और अमीरी में अंतर कभी भी उसके स्थिति को देख कर नहीं लगाना चाहिए। बहुत लोग अमीर होते हुए भी दिल के बहुत छोटे होते है।
इस तरह गरीबी और अमीरी का अंतर स्थिति से ही नहीं दिल से भी तय होता है।
ज्यादात्तर हम उसी चीज को पाना चाहते है जो महंगी है और उसी में हम अपनी खुशी को ढूढते है लेकिन सच्चाई यह है कि जीवन में जिन चीजों से वास्तव में हम सन्तुष्ट होते है वह है प्रेम, ख़ुशी और हँसी।
जब तक आप जीवन में कुछ बन नहीं जाते, तब तक आपके प्रिय जन भी आप से अजनबियों जैसा बर्ताव करते है।
एक सच्चा मित्र वही है जो,पूरी दुनिया आपके खिलाफ हो, सभी आपसे दुरी बना ले लेकिन ऐसी परिस्थिति में भी वो आपके साथ खड़ा हो। वो किसी भी हालात में आपसे दुरी नहीं रखना चाहता है और आपका हमेशा साथ देता है।
हर रोज, हर सुबह आपके लिए एक नई शुरुआत लेकर आता है। आप हर दिन अपने आप को बेहतर से और बेहतर बनाने का मौका दे और उसका इस्तेमाल करे। आप अपने आप को साबित करने के लिए दुनिया में कुछ अच्छा करने के लिए दृढ निश्चयी बने।