मृणाल कुलकर्णी की फिल्म 'ढाई अक्षर' जल्द ही सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है। यदि आप इस फिल्म को देखने का मन बना रहे हैं, तो पहले इसका रिव्यू जरूर पढ़ लें।
इन दिनों कुछ ऐसी फिल्में होती हैं जिन्हें हम नजरअंदाज कर देते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि ये फिल्में अक्सर कम बजट की होती हैं और उनकी मार्केटिंग भी कम होती है, जिसके कारण ये हम तक नहीं पहुंच पातीं। दूसरी ओर, बड़े सितारों की महंगी फिल्मों को हम देखते हैं, भले ही वे हमें निराश ही क्यों न करें। इस तरह की फिल्मों की मार्केटिंग इस तरह से की जाती है कि कभी-कभी हम सिर्फ इसलिए उन्हें देखने जाते हैं, क्योंकि लोग पूछते हैं, "क्या, तुमने ये फिल्म नहीं देखी?" और फिर हमें लगता है कि मीडिया में उसकी तारीफें हो रही हैं। हालांकि, ऐसी फिल्में अक्सर निराश करती हैं। ऐसे में, कुछ फिल्में बहुत जरूरी होती हैं जो सिनेमा की आत्मा को जीवित रखती हैं। 'ढाई अक्षर' ऐसी ही एक फिल्म है।
कहानी
फिल्म की कहानी हर्षिता नाम की महिला की है, जो अपने जीवन के अधिकांश समय अपने पति के अत्याचारों का सामना करती रही। जब उसके बच्चे बड़े हो गए और उसकी शादी हो गई, और हर्षिता के पति का एक हादसे में निधन हो गया, तो उसकी जिंदगी में एक नया मोड़ आता है। वह एक लेखक श्रीधर के साथ चिट्ठियों के माध्यम से बातचीत करने लगती है। जैसे-जैसे उनकी बातचीत बढ़ती है, श्रीधर हर्षिता के दर्द को समझने लगता है, और उनके बीच प्यार पनपने लगता है। फिर एक दिन, हर्षिता श्रीधर से मिलने के लिए तीर्थ यात्रा का बहाना बनाती है, लेकिन इस मुलाकात की खबर उसके परिवार को लग जाती है, जिससे घर में हंगामा मच जाता है। उसके बेटे मां पर हाथ उठाने तक को तैयार हो जाते हैं। इसके बाद क्या हुआ, ये जानने के लिए आपको थिएटर में जाना होगा। हर्षिता और श्रीधर के बीच जो रिश्ता विकसित होता है, वह बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है।
कैसी है फिल्म
यह फिल्म उस विचार को प्रस्तुत करती है कि समाज ने विवाह को स्थापित किया है, जबकि प्यार को प्रकृति ने। एक संवाद में कहा गया है कि जब इंसान असभ्य होने लगा, तब उसने विवाह जैसी संस्था की स्थापना की। फिल्म घरेलू हिंसा के मुद्दे पर भी बात करती है। हालांकि कुछ दिन पहले "दो पत्ती" जैसी फिल्म ने भी इस विषय पर बात की थी, 'ढाई अक्षर' इसे दिल से दर्शाती है। हर्षिता और श्रीधर के बीच का रिश्ता यह दर्शाता है कि जीवन में सम्मान और प्यार कितना आवश्यक है, और किसी भी उम्र में हर व्यक्ति को अपनी जिंदगी जीने और प्यार करने का हक है। यह फिल्म उन लोगों के लिए खास तौर पर रिलेटेबल है, जो मजबूरी में रिश्तों को निभा रहे हैं। यह एक छोटे बजट की फिल्म है, लेकिन इसकी बातें बहुत गहरी और प्रभावशाली हैं।
एक्टिंग
हर्षिता के किरदार में मृणाल कुलकर्णी ने शानदार प्रदर्शन किया है। उनके अभिनय से कई महिलाएं खुद को जोड़ पाएंगी, क्योंकि उन्होंने अपनी भावनाओं को इतने सुंदर तरीके से व्यक्त किया है, जो समाज की कई महिलाओं की जिंदगी का सच्चा चित्रण है। श्रीधर के किरदार में हरीश खन्ना ने बेहतरीन काम किया है, और उनका अभिनय कई लोगों को हिम्मत देगा। हर्षिता के पति के किरदार में रोहित कोकाटे ने अत्याचारी पति का रोल बहुत प्रभावशाली तरीके से निभाया है। प्रसन्ना बिष्ट ने बेला का किरदार निभाया है, जो हर्षिता की बहू है और उसे पूरा समर्थन देती है। बेला के किरदार में प्रसन्ना ने बहुत अच्छा काम किया है, जो एक युवा अभिनेत्री के लिए प्रेरणादायक है। बाकी सभी कलाकारों का अभिनय भी सराहनीय है।
डायरेक्शन और राइटिंग
अमरीक सिंह दीप और असगर वजाहत की बेहतरीन लेखनी ने फिल्म को गहरी भावनाओं और सही संवेदनाओं से जोड़ा है, जबकि प्रवीण अरोड़ा का निर्देशन फिल्म को सहज और प्रभावशाली बनाता है। हर्षिता और श्रीधर के बीच के संवाद और सीन खास तौर पर दिल को छूने वाले हैं। फिल्म सिर्फ 1 घंटे 38 मिनट है, जो न तो खिंचती है, न ही बोरियत का एहसास कराती है। कुल मिलाकर, यह फिल्म देखने योग्य है, और अगर ऐसी अच्छी फिल्मों को दर्शकों का समर्थन मिलेगा, तो सिनेमा और भी बेहतर होगा।