भारतीय राजनीति में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले, लेकिन 6 मार्च 1991 का दिन इतिहास में अलग ही दर्ज है। यही वो दिन था जब चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया। महज सात महीने तक देश की कमान संभालने के बाद उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने नई सरकार बनने तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में जिम्मेदारी निभाई।
सत्ता संभाली, लेकिन ज्यादा दिन नहीं टिक सकी सरकार
चंद्रशेखर ने 10 नवंबर 1990 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। लेकिन उनकी सरकार कांग्रेस के समर्थन पर टिकी थी और जब कांग्रेस ने अचानक समर्थन वापस लिया, तो उनके पास इस्तीफा देने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। 6 मार्च 1991 को उन्होंने अपना पद छोड़ दिया, हालांकि, 21 जून 1991 तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में काम करते रहे।
बेबाक नेता, जो सत्ता से समझौता नहीं करता था
चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि वह सत्ता के लिए कभी समझौता नहीं करते थे। बेबाकी और निर्भीकता उनकी पहचान थी। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्मे चंद्रशेखर ने छात्र जीवन से ही राजनीति में कदम रख दिया था। समाजवादी विचारधारा से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई और जनता पार्टी के अध्यक्ष भी बने।
आखिरी सफर और एक यादगार विरासत
8 जुलाई 2007 को दिल्ली में लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया। खास बात यह रही कि उनके जाने से ठीक एक हफ्ते पहले, 1 जुलाई को उन्होंने अपना 80वां जन्मदिन मनाया था। उनकी राजनीति भले ही सत्ता में लंबे समय तक ना रही हो, लेकिन उनके विचार और फैसले आज भी याद किए जाते हैं।
एक नेता, जो विचारों से बड़ा था
चंद्रशेखर ने यह साबित किया कि कुर्सी से बड़ा इंसान के विचार होते हैं। उन्होंने सत्ता को सेवा का माध्यम माना और अपने समाजवादी सिद्धांतों से राजनीति को दिशा देने का काम किया। आज के दिन भारतीय राजनीति को उनका वह फैसला हमेशा याद रहेगा, जब उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता करने के बजाय कुर्सी छोड़ना बेहतर समझा।