Anti Defection Law: क्या है एंटी डिफेक्शन लॉ? जानिए कब और कहा लागू होता है एंटी डिफेक्शन लॉ

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भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची (1985) में एंटी डिफेक्शन कानून को शामिल किया गया था, ताकि विधायकों के दल बदलने पर रोक लगाई जा सके। हालांकि, कुछ परिस्थितियों में यह कानून लागू नहीं होता हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए 70 में से 48 सीटों पर कब्जा जमाया है, जबकि आम आदमी पार्टी के खाते में केवल 22 सीटें आई हैं। अन्य किसी भी पार्टी का खाता नहीं खुला। इस चुनाव परिणाम के बाद दिल्ली की राजनीति में बड़े बदलावों की संभावनाएं भी देखी जा रही हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि किसी भी पार्टी के कितने विधायक मिलकर पार्टी को तोड़ सकते हैं? 

भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची के अनुसार, यदि किसी पार्टी के कम से कम दो-तिहाई विधायक पार्टी छोड़कर किसी अन्य दल में शामिल होते हैं या नया दल बनाते हैं, तो यह एंटी डिफेक्शन कानून के तहत नहीं आएगा। दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी के 22 विधायक हैं, इसलिए कम से कम 15 विधायकों को पार्टी छोड़ने पर यह विलय माना जाएगा। अन्यथा, दल-बदल का दोषी मानते हुए उनकी सदस्यता रद्द हो सकती हैं।

क्या है एंटी डिफेक्शन लॉ?

एंटी डिफेक्शन लॉ भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण कानून है, जिसका उद्देश्य दल-बदल की प्रवृत्ति को रोकना है। 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने संविधान में 52वां संशोधन करके इस कानून को लागू किया था। इसे संविधान की 10वीं अनुसूची में शामिल किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य सियासी लाभ के लिए नेताओं के दल बदलने और हॉर्स ट्रेडिंग जैसी अनैतिक राजनीतिक गतिविधियों को रोकना था।

हॉर्स ट्रेडिंग का अर्थ होता है जब एक नेता किसी व्यक्तिगत लाभ के लिए दूसरी पार्टी का समर्थन करे या पार्टी बदल ले। इस कानून के तहत यदि कोई निर्वाचित प्रतिनिधि अपनी मूल पार्टी की अनुमति के बिना दूसरी पार्टी में शामिल होता है या पार्टी की व्हिप का उल्लंघन करता है, तो उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है। हालांकि, यदि किसी पार्टी के दो-तिहाई सदस्य सामूहिक रूप से पार्टी छोड़ते हैं या विलय करते हैं, तो यह एंटी डिफेक्शन कानून के तहत नहीं आएगा। यह कानून लोकतंत्र को स्थिरता प्रदान करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता हैं।

विधायक या सांसद कब बदल सकते हैं दल?

यदि कोई विधायक या सांसद अपनी मर्जी से पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है, तो इस स्थिति में उसकी विधानसभा या संसद की सदस्यता समाप्त हो सकती है। इसके अलावा, यदि कोई सदस्य जानबूझकर पार्टी द्वारा जारी निर्देश (व्हिप) के खिलाफ मतदान करता है या बिना अनुमति के मतदान से अनुपस्थित रहता है, तो भी उसकी सदस्यता रद्द हो सकती हैं।

निर्दलीय सांसद या विधायक के मामले में, यदि वे चुनाव जीतने के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाते हैं, तो उन्हें भी अयोग्य घोषित किया जा सकता है। हालांकि, किसी विधायक या सांसद को अयोग्य घोषित करने का अधिकार संबंधित विधानमंडल के सभापति या अध्यक्ष के पास होता है, जो मामले की समीक्षा के बाद अंतिम निर्णय लेते हैं।

एंटी डिफेक्शन लॉ के कुछ अपवाद 

एंटी डिफेक्शन लॉ के तहत कुछ अपवाद भी निर्धारित किए गए हैं। इस कानून के अनुसार, यदि किसी राजनीतिक दल के एक-तिहाई सांसद या विधायक सामूहिक रूप से इस्तीफा देते हैं, तो उन्हें दल-बदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ता। हालांकि 2003 में हुए संविधान संशोधन के बाद इस अपवाद को हटा दिया गया हैं। 

वर्तमान नियमों के तहत, यदि किसी पार्टी के दो-तिहाई सांसद या विधायक किसी अन्य पार्टी में विलय कर लेते हैं या एक नई पार्टी बना लेते हैं, तो इसे दलबदल नहीं माना जाएगा और वे अपनी सदस्यता बरकरार रख सकते हैं। इस स्थिति में विलय को वैध माना जाता है और उन्हें अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता हैं।

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