बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण में अनियमितताओं और पेपर लीक के खिलाफ हजारों छात्र सड़कों पर उतर हंगामा कर रहे हैं। प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने आरोप लगाते हुए कहां कि शेख हसीना सरकार मेरिट के आधार पर नौकरियां नहीं दे रही हैं।
ढाका: बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण में अनियमितताओं और पेपर लीक जैसी समस्या के खिलाफ छात्रों के विरोध प्रदर्शन ने हिंसक रूप धारण कर लिया है। इस हिंसा में अब तक 40 लोगों की मौत की सूचना मिली हैं। शेख हसीना के एक बयां के बाद ढाका में लाठियों और पत्थरों से लैस हजारों छात्र सशस्त्र पुलिस बलों से भिड़ गए। इस दौरान 2530 से अधिक लोग बुरी तरह से जख्मी हो गए।
बता दें इस प्रदर्शन को दबाने के लिए प्रशासन की ओर से कई स्थानों पर मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं। जानकारी के मुताबिक चटगांव में राजमार्ग को अवरुद्ध करने वाले छात्रों पर पुलिस ने आंसू गैस के गोले और लाठिया बरसाई। बता दें इस बढ़ती हिंसा को देखते हुए अधिकारियों ने गुरुवार दोपहर से ही ढाका आने-जाने वाली सभी रेलवे सेवाओं के साथ-साथ मेट्रो रेल सेवा को भी पूर्णतः बंद कर दिया हैं।
क्यों बढ़ रही है हिंसा?
जानकारी के मुताबिक मीडिया के सामने सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर छात्रों का हिंसा करने के पीछे क्या मकसद हैं? और वे सरकार से क्या चाहते हैं?बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों को लेकर आरक्षण का क्या कानून बनाया गया है? इन सवालों का सवाल देते हुए एक प्रदर्शनकारी ने बताया कि बांग्लादेश में आरक्षण प्रणाली के तहत 56 प्रतिशत सरकारी नौकरियां आरक्षित वर्ग के लिए हैं। इनमें से 30 प्रतिशत आरक्षण 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान स्वतंत्र हुए सेनानियों के वंशजों के लिए रिजर्व किया गया है। इसके अलावा 10 प्रतिशत आरक्षण पिछड़े प्रशासनिक जिलों के लिए और 10 प्रतिशत महिलाओं के लिए रिजर्व किया है। इसके अलावा पांच प्रतिशत आरक्षण जातीय अल्पसंख्यक समूहों के लिए तथा एक प्रतिशत दिव्यांग लोगों के लिए आरक्षित हैं।
बता दें प्रदर्शनकारियों का विवाद साल 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान स्वतंत्र हुए सेनानियों के वंशजों को दिए जाने वाले 30 प्रतिशत आरक्षण को लेकर है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक छात्रों का कहना है कि सरकार उन्ही लोगों को आरक्षण देने के पक्ष में है, जो केवल शेख हसीना की सरकार का समर्थन करते हैं। छात्रों का यह भी आरोप है कि मेरिट के आधार पर सरकारी नौकरियां नहीं मिल रही हैं।
शेख हसीना के संबोधन के बाद तेज हुई हिंसा
प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने बुधवार को राष्ट्र के नाम एक संबोधन पेश किया था. सभी लोगों की निगाहें और कान उनके शब्दों को सुनने के लिए स्थिर थे. लोगों को इस बात की उम्मीद थी कि सरकार मौजूदा परिस्थिति को समझकर सही रह में आगे बढ़ेगी। लेकिन प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री के भाषण को खारिज़ करते हुए विरोध करने लगे. आंदोलनकारियों ने आगे राज्यों को 'पूर्ण बंद' का आह्वान किया। एक ओर आरक्षण का विरोध करने वाले वहीं दूसरी ओर सत्तारूढ़ पार्टी के विभिन्न संगठन सड़कों पर उतरकर एक दूसरे से भीड़ गए. मौजूदा हालात को देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि प्रधानमंत्री हसीना के भाषण के बाद हिंसा और ज्यादा भड़का गई हैं।
सरकार नहीं सुन रही छात्रों की बात
कानून मंत्री अनीस-उल हक ने छात्रों के कड़े विरोध के बीच गुरुवार (18) शाम को कहां कि आरक्षण में सुधार करने के लिए सरकार में सैद्धांतिक रूप से आम सहमति बन गई है. सरकार इसके लिए आंदोलनकारियों के साथ बातचीत करने के लिए भी तैयार हैं. आरक्षण सुधार आंदोलन के प्रमुख संयोजक नाहिद खान इस्लाम ने कहां कि "सरकार हिंसा का सहारा लेकर मौजूदा स्थिति को दबाने के पक्ष में है. क्योकि सरकार ने बातचीत की कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ी है. सरकार को होने वाले नुकसान की पूरी जिम्मेदारी लेनी होगी।
उन्होंने कहां की पहले सरकार ने सुरक्षाबलों और पार्टी के काडरों की सहायता से आंदोलन करने वाले को कुचलने का प्रयास किया और अब बातचीत करने का नया नाटक कर रही हैं. हम न्यायिक जांच समिति के नाम पर किसी भी प्रकार का नाटक स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने कहां जबतक सरकार हमारी बात नहीं मान लेती ये हिंसा नहीं रुकेगी।
हिंसा से बचने के लिए विदेशी छात्रों ने भारत में ली शरण
बांग्लादेश में हिंसा लगातार बढ़ रही हैं. इसलिए इससे बचने के लिए 300 से अधिक भारतीय, नेपाली और भूटानी नागरिक मेघालय में आ गए हैं, जिनमे अधिकांश पढ़ने वाले छात्र हैं। गृह विभाग के अधिकारी ने बताया कि बांग्लादेश में हिंसा के बीच फंसे 312 भारतीय, नेपाली और भूटानी छात्र डाउकी इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट के जरिए भारत लौट आये हैं। इनमें 205 भारतीय, 98 नेपाली और सात भूटानी नागरिक शामिल हैं।