प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने सरना धर्मकोड के मुद्दे पर भाजपा सांसदों से समर्थन की अपील की है। उनका कहना है कि अगर भाजपा इस मुद्दे पर सहयोग नहीं करती है, तो कांग्रेस जनता के बीच जाकर इस विषय को प्रमुखता से उठाएगी।
रांची: झारखंड की राजनीति में इन दिनों एक बेहद संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दा गरमा गया है, सरना धर्मकोड की मांग। जहां एक ओर कांग्रेस इसे आदिवासी अस्मिता और पारंपरिक धार्मिक पहचान से जोड़कर समर्थन जुटा रही है, वहीं भाजपा असमंजस की स्थिति में फंसी नजर आ रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष केशव महतो कमलेश के एक पत्र ने सियासी हलकों में खलबली मचा दी है। इस पत्र में उन्होंने राज्य के सभी सांसदों से सरना धर्मकोड के समर्थन में साथ आने की अपील की है, विशेष रूप से भाजपा सांसदों से।
आदिवासी पहचान की लड़ाई और राजनीति
सरना धर्म को मानने वाले आदिवासी समुदाय लंबे समय से जनगणना में "सरना" के लिए एक अलग कॉलम की मांग कर रहे हैं। उनकी यह मांग न केवल धार्मिक पहचान की रक्षा से जुड़ी है, बल्कि यह आदिवासी संस्कृति, परंपरा और उनकी जीवनशैली को आधिकारिक मान्यता दिलाने की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है।
वर्ष 2020 में झारखंड विधानसभा ने इस संबंध में एक विधेयक पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था, लेकिन अब तक उस पर कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ है। इस बीच, कांग्रेस ने इस मुद्दे को फिर से धार दे दी है और इसे जनआंदोलन में तब्दील करने की तैयारी में है।
भाजपा की मुश्किलें और राजनीतिक धर्मसंकट
झारखंड में भाजपा के पास सबसे अधिक सांसद हैं। ऐसे में कांग्रेस का यह पत्र सीधे-सीधे भाजपा को कटघरे में खड़ा करने की रणनीति के तहत देखा जा रहा है। भाजपा इस मुद्दे पर न खुलकर समर्थन कर पा रही है और न ही विरोध। अगर वह समर्थन करती है, तो उसकी पारंपरिक वोट बैंक की धार्मिक राजनीति पर असर पड़ सकता है। वहीं, अगर वह समर्थन नहीं करती, तो कांग्रेस को आदिवासी समुदाय में उसे विरोधी के तौर पर स्थापित करने का अवसर मिल जाएगा।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने भाजपा सांसदों से कहा है कि "यह केवल धर्म या जनगणना का मसला नहीं, बल्कि यह आदिवासी अस्मिता और प्रकृति की पूजा करने वाली संस्कृति की पहचान का प्रश्न है।
कांग्रेस की रणनीति
कांग्रेस इस मुद्दे को जमीन से जोड़ने में लगी है। रैलियों, प्रदर्शन और जनसभाओं के जरिए वह सरना धर्म मानने वाले लोगों के बीच यह संदेश दे रही है कि वह उनकी धार्मिक पहचान के लिए संघर्ष कर रही है। अब भाजपा सांसदों को लिखे गए पत्र ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस आने वाले दिनों में 'भाजपा बनाम आदिवासी' की सियासी लाइन खींचने की तैयारी में है।
प्रदेश कांग्रेस का यह भी कहना है कि जब पूरी दुनिया जलवायु संकट और पर्यावरण की रक्षा को लेकर चिंतित है, तब सरना धर्म जैसी जीवनशैली जो प्रकृति के संरक्षण पर आधारित है, उसकी पहचान को सरकारी मान्यता देना एक वैश्विक जिम्मेदारी जैसी है।
भाजपा की खामोशी: रणनीति या उलझन?
अब तक कांग्रेस के पत्र पर किसी भी भाजपा सांसद ने कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। इससे यह संकेत मिलता है कि भाजपा फिलहाल इस संवेदनशील मुद्दे पर सतर्कता बरत रही है। हालांकि अंदरखाने में पार्टी इस मामले की राजनीतिक और सामाजिक कीमत का आकलन कर रही होगी। झारखंड की राजनीति में आदिवासी समुदाय की भूमिका अहम है।
राज्य के कई विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह आदिवासी मतदाताओं पर निर्भर हैं। ऐसे में सरना धर्मकोड जैसे मुद्दे पर भाजपा की चुप्पी लंबे समय तक बनी रही, तो उसे आदिवासी क्षेत्रों में राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।