एकनाथ शिंदे की पार्टी के नेता रामदास कदम ने अपने बयानों में कहा है कि अजित पवार ने सीएम पद के लिए देवेंद्र फडणवीस के नाम पर सहमति जताकर शिवसेना की दावेदारी को कमजोर किया है, जिससे उनकी ताकत कम हो गई है।
Maharashtra Election: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में महायुति की शानदार जीत के बाद मुख्यमंत्री के नाम पर सस्पेंस बना हुआ है। महायुति गठबंधन में भारतीय जनता पार्टी (BJP), एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) प्रमुख पार्टियां हैं। इन पार्टियों के बीच सीएम पद का जश्न और विवाद दोनों है। इस समय बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना के एकनाथ शिंदे सीएम पद के प्रमुख दावेदार हैं।
महायुति गठबंधन और सीटों की स्थिति
महायुति गठबंधन को कुल 235 सीटें मिली हैं, जिसमें बीजेपी ने 132, शिवसेना ने 57, और एनसीपी ने 41 सीटें जीतीं। इन आंकड़ों को देखते हुए सीएम पद के लिए किसी एक पार्टी का समर्थन महत्वपूर्ण है। महायुति गठबंधन में बीजेपी और एनसीपी के बिना सरकार नहीं बन सकती। जबकि शिवसेना और एनसीपी मिलकर भी 98 सीटों तक ही सीमित रह जाएंगे, जो बहुमत के लिए पर्याप्त नहीं है।
अजित पवार की भूमिका
अजित पवार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनते हैं तो उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी। इसके बाद शिवसेना खासी नाराज हो गई है, क्योंकि इससे शिवसेना की मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी कमजोर हो रही है। शिवसेना के नेता रामदास कदम ने कहा कि अजित पवार ने देवेंद्र फडणवीस के नाम पर सहमति जताकर शिवसेना की दावेदारी को कमजोर कर दिया है। उन्होंने कहा कि एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनना चाहिए, लेकिन महायुति में इस मुद्दे पर कोई विवाद नहीं होगा।
सीटों के अंतर और संभावनाएं
बीजेपी के 132 सीटों के मुकाबले शिवसेना और एनसीपी गठबंधन के पास केवल 98 सीटें हैं, जिससे यह साफ है कि अगर देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनते हैं, तो एनसीपी और शिवसेना का कद समान होगा। इस स्थिति को देखते हुए अजित पवार को एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने पर भी अपना कद बढ़ाने का मौका मिल सकता है। इसके बावजूद, महायुति में कोई बड़ा विवाद उत्पन्न नहीं होने की उम्मीद है।
अजित पवार का डिप्टी सीएम बनने का संकेत
महायुति में हालिया बैठक के बाद यह प्रतीत होता है कि अजित पवार देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में एक बार फिर डिप्टी सीएम पद लेने के लिए तैयार हैं। हालांकि, 2019 में ऐसा प्रयास असफल रहा था, और बीजेपी की सरकार मात्र 80 घंटे में गिर गई थी। इसके बावजूद, अजित पवार के लिए यह एक रणनीतिक कदम हो सकता है, ताकि वह एनसीपी के लिए बीजेपी के समान पद की मांग कर सकें।