Maharastra elections result latest updates: शरद पवार की 'आखिरी बाजी' में करारी शिकस्त, 64 साल की राजनीति में पहली बार अपमानजनक हार

Maharastra elections result latest updates: शरद पवार की 'आखिरी बाजी' में करारी शिकस्त, 64 साल की राजनीति में पहली बार अपमानजनक हार
Last Updated: 5 घंटा पहले

शरद पवार ने छह दशक तक महाराष्ट्र से लेकर केंद्र तक राजनीति में प्रभावी भूमिका निभाई, लेकिन इस बार महाराष्ट्र चुनाव में उनकी पार्टी और महाविकास अघाड़ी को करारी हार झेलनी पड़ी। उनकी हार की वजहें अब चर्चा में हैं।

Maharastra elections result latest updates: महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों ने शरद पवार की राजनीति को एक बड़ा झटका दिया है। 64 सालों के सियासी करियर के बाद 84 साल के शरद पवार और उनकी पार्टी को जनता ने सिरे से नकार दिया। NCP (शरद पवार गुट) सिर्फ 12 सीटों पर सिमट गई। महाविकास अघाड़ी, जिसमें कांग्रेस और उद्धव गुट की शिवसेना शामिल थी, भी जनता का विश्वास जीतने में नाकाम रही। इस चुनावी हार के बाद सवाल उठने लगा है कि क्या यह पवार का आखिरी चुनाव साबित होगा?

चुनाव से पहले संन्यास के दिए थे संकेत

चुनाव प्रचार के दौरान शरद पवार ने खुद चुनावी राजनीति से संन्यास लेने के संकेत दिए थे। उन्होंने कहा था कि अब वे चुनाव नहीं लड़ेंगे और पार्टी संगठन पर ध्यान देंगे। पवार ने बारामती में कहा, "मैंने 14 बार चुनाव लड़ा है। अब सत्ता की चाहत नहीं है। नए लोगों को आगे आना चाहिए।" लेकिन चुनावी नतीजों के बाद उनकी पार्टी को मिली करारी हार ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह उनका आखिरी चुनाव था?

64 साल का सियासी सफर और केंद्र में मजबूत पकड़

शरद पवार ने 1960 में कांग्रेस से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की। वे 4 बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और केंद्र में रक्षा और कृषि मंत्री रह चुके हैं। 14 चुनाव जीतने वाले पवार ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ से महाराष्ट्र में एक मजबूत पहचान बनाई थी। लेकिन हालिया चुनाव में उनकी पार्टी और गठबंधन को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी, जिससे उनकी सियासी ताकत पर सवाल उठने लगे हैं।

भतीजे अजित पवार की बगावत ने किया कमजोर

पिछले साल अजित पवार ने 8 विधायकों के साथ शरद पवार की पार्टी से बगावत कर दी और बीजेपी-शिवसेना के महायुति गठबंधन में शामिल हो गए। चुनाव आयोग ने अजित गुट को असली NCP और ‘घड़ी’ का चुनाव चिन्ह दिया। पार्टी विभाजन ने NCP (शरद पवार गुट) की ताकत को कमजोर कर दिया। अजित पवार के महायुति में शामिल होने के कारण शरद पवार की पार्टी को अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका नहीं मिला।

महिलाओं को साधने में सफल रही महायुति

महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने ‘मुख्यमंत्री-मेरी लाडली बहन योजना’ के जरिए महिलाओं को हर महीने ₹1500 देने का वादा किया था। इस योजना ने ग्रामीण और शहरी इलाकों की महिलाओं के बीच बीजेपी के लिए एक मजबूत वोट बैंक तैयार किया। यह योजना विपक्ष के महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को कमजोर करने में सफल रही। नतीजतन, शरद पवार का गठबंधन इन मुद्दों के जरिए जनता को प्रभावित नहीं कर पाया।

ध्रुवीकरण की राजनीति का जवाब नहीं दे सके पवार

बीजेपी ने चुनाव प्रचार में ध्रुवीकरण की राजनीति का पूरा फायदा उठाया। पीएम मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ की रैलियों ने बड़ा असर डाला। पवार महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर ही फोकस करते रहे, जबकि बीजेपी ने विकास और महिला सशक्तिकरण को आगे रखा। शरद पवार की रणनीति जनता के मिजाज को समझने में नाकाम रही, जिससे उनकी पार्टी और गठबंधन को बुरी हार का सामना करना पड़ा।

क्या राजनीति से संन्यास लेंगे शरद पवार?

अपमानजनक हार के बाद यह सवाल तेज हो गया है कि क्या शरद पवार अब राजनीति से संन्यास लेंगे। भले ही उन्होंने चुनाव से पहले यह इशारा किया था कि वह अब चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन उनकी पार्टी की इस दुर्गति ने उनके राजनीतिक भविष्य को अनिश्चितता में डाल दिया है। 64 साल के सियासी सफर का यह अंत उनकी प्रतिष्ठा के लिए बड़ा झटका है।

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