राजस्थान के दौसा जिले में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के दीनदयाल बैरवा ने जीत हासिल की, जबकि बीजेपी के प्रत्याशी जगमोहन मीणा को हार का सामना करना पड़ा। दौसा सीट पर कांग्रेस नेता सचिन पायलट का खासा प्रभाव रहा, जिसका फायदा कांग्रेस को मिला।
दौसा: राजस्थान के दौसा उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार दीनदयाल बैरवा ने बीजेपी के जगमोहन मीणा को 2300 वोटों के अंतर से हराकर जीत दर्ज की। जगमोहन मीणा, जो कि राजस्थान सरकार में मंत्री किरोड़ीलाल मीणा के भाई हैं, को इस हार के बाद एक बड़ी झटका लगा है, क्योंकि मंत्री ने उन्हें टिकट दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस परिणाम से यह संकेत मिलता है कि बीजेपी की रणनीति, जिसमें किरोड़ीलाल मीणा को मनाने की कोशिश की गई थी, सफल नहीं हो पाई।
नहीं चला बाबा किरोड़ीलाल मीणा का जादू
दौसा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस की जीत ने बीजेपी की रणनीतियों को नाकाम कर दिया है। बीजेपी ने उम्मीद जताई थी कि मंत्री किरोड़ीलाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को टिकट देने से वे अपने भाई की नाराजगी को दूर कर पाएंगे और दौसा सीट पर जीत हासिल करेंगे। दौसा सीट पर किरोड़ीलाल मीणा का काफी दबदबा माना जाता है, क्योंकि वे खुद, उनके पिता राजेश पायलट और माँ रमा पायलट इस क्षेत्र से सांसद रह चुके हैं।
बीजेपी ने जगमोहन मीणा को टिकट देकर यह कोशिश की थी कि मीणा समाज के वोट बीजेपी की तरफ आ जाएं और किरोड़ीलाल मीणा की नाराजगी भी समाप्त हो जाए। हालांकि, इस रणनीति के बावजूद कांग्रेस उम्मीदवार दीनदयाल बैरवा ने बीजेपी को हराकर 2300 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की, जिससे बीजेपी की उम्मीदों को बड़ा धक्का लगा हैं।
क्या है बीजेपी की हार का बड़ा कारण?
राजस्थान के दौसा उपचुनाव में कांग्रेस की जीत और बीजेपी की हार के कई कारण बताए जा रहे हैं। बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत मंत्री किरोड़ीलाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को टिकट दिया था, ताकि मीणा समाज के वोट बीजेपी की तरफ आकर्षित किए जा सकें और किरोड़ीलाल मीणा की नाराजगी को दूर किया जा सके। हालांकि, यह रणनीति उलट साबित हुई और कांग्रेस उम्मीदवार दीनदयाल बैरवा ने जगमोहन मीणा को 2300 वोटों से हरा दिया।
इस हार के पीछे कुछ लोग बीजेपी में अंदरूनी कलह को जिम्मेदार मानते हैं, जबकि कुछ का कहना है कि किरोड़ीलाल मीणा को मनाने के लिए उनके भाई को टिकट देना पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हुआ। हार के बाद बीजेपी के लिए यह चुनौती होगी कि वह किरोड़ीलाल मीणा को कैसे मनाती है या फिर नए सिरे से अपनी रणनीति बनाती हैं।