Ram Barat Agra: आगरा की शान है 45 साल पुराना रजत रथ, इस बार रामलीला में बिखेरेगा अपनी अनूठी छटा, अद्भुत है इसकी कलाकारी

Ram Barat Agra: आगरा की शान है 45 साल पुराना रजत रथ, इस बार रामलीला में बिखेरेगा अपनी अनूठी छटा, अद्भुत है इसकी कलाकारी
Last Updated: 09 सितंबर 2024

उत्तर भारत के पारंपरिक श्रीरामलीला महोत्सव में इस वर्ष विशेष रूप से 45 वर्ष पुराना रजत रथ नए सिरे से तैयार किया जा रहा है। यह रथ, जिस पर प्रभु श्रीराम अपनी बरात में शामिल होंगे, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। रथ को विशेष रूप से चांदी की पर्तों से सजाया जा रहा है, जिससे उसकी आभा और अधिक भव्य हो जाएगी।

आगरा: उत्तर भारत का पारंपरिक श्रीरामलीला महोत्सव 17 सितंबर को शुरू होने जा रहा है, जबकि प्रभु श्रीराम की भव्य बरात 28 सितंबर को निकाली जाएगी। इस बार प्रभु श्रीराम रजत (चांदी) के 45 वर्ष पुराने रथ पर सवार होंगे। नए सिरे से रथ को तैयार किया जा रहा है। सर्राफा व्यापारी दीनदयाल उपाध्याय एंड संस द्वारा नए रथ पर चांदी की परत चढ़ाने का काम तेजी से चल रहा है। श्रीरामलीला कमेटी के महासचिव राजीव अग्रवाल ने कहा कि प्रभु श्रीराम जिस रजत रथ पर अपनी बरात में सवार होंगे, वह 45 वर्ष पुराना होने के कारण थोड़ा क्षीण हो गया था।

इसलिए इस वर्ष रथ को नए सिरे से तैयार किया जा रहा है। नए लकड़ी के रथ पर चांदी की परतें चढ़ाई जा रही हैं। इस काम में लगभग एक महीने का समय लगेगा। दीनदयाल उपाध्याय एंड संस को यह रथ 20 सितंबर तक वापस करने का लक्ष्य दिया गया है, जिसके चलते कारीगर पूरी मेहनत से काम कर रहे हैं। इस वर्ष का रथ विशेष चमक बिखेरने वाला होगा।

क्या है रथ की विशेषता?

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का स्वरूप जिस प्राचीन रजत रथ पर सवार होता है, उसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्वता अत्यधिक है। इस रथ का निर्माण बनारस के कारीगरों द्वारा किया गया था, जिन्होंने इसे रावतपाड़ा स्थित श्री विट्ठलनाथ महाराज मंदिर में छह वर्षों में तैयार किया था। वर्ष 1978 की रामलीला में पहली बार प्रभु श्रीराम के स्वरूप को इस भव्य चांदी के सिंहासन और रथ पर विराजमान किया गया था। तब इसकी लागत करीब 3.50 लाख रुपये थी। आज, इस रथ की कीमत में भारी वृद्धि हो चुकी है और इसका मूल्य लगभग 200 गुना बढ़कर साढ़े आठ करोड़ रुपये के करीब हो गया हैं।

आगरा के श्रीरामलीला महोत्सव में यह रथ हर वर्ष प्रमुख आकर्षण का केंद्र होता है, जिसमें प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी के स्वरूप इस पर विराजमान होते हैं। इस रथ की भव्यता और ऐतिहासिक महत्व इसे विशेष बनाती है, और यह रथ महोत्सव की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को जीवंत करता है। यह रथ भारतीय संस्कृति और श्रीरामलीला की पुरानी परंपराओं का प्रतीक है, जो भक्तों के बीच विशेष श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र बना हुआ हैं।

रथ को तैयार करवाने की क्या है वजह?

जानकारी के मुताबिक साल 1955 तक भरतपुर राजघराने से श्रीराम की बारात के लिए हाथी और चांदी का हौद (सवारी) आता था, जिसमें श्रीराम के स्वरूप सवार होकर अपनी बारात में शामिल होते थे। लेकिन जब यह व्यवस्था समाप्त हो गई, तो 1971 में आगरा के समाजसेवियों ने मिलकर श्रीराम के लिए भव्य रजत रथ और अन्य वस्त्रों का निर्माण कराया। लाला कोकामल, तुलसी राम, सीता राम और अन्य 64 व्यक्तियों के सहयोग से इस रथ के साथ चांदी का सिंहासन, कुर्सियां, गदा और धनुष-बाण तैयार कराए गए।

उस समय रजत रथ की निर्माण लागत 3.50 लाख रुपये आंकी गई थी, जब चांदी का मूल्य मात्र 285 रुपये प्रति किलो था। समाज के लोगों ने इस कार्य के लिए बड़ी श्रद्धा और उत्साह से दान दिया, जिससे यह रजत रथ बनकर तैयार हुआ और तब से यह श्रीराम की बारात का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। रामलीला का आयोजन भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं की समृद्धता और समाज की एकजुटता का प्रतीक है, जिसे लोग हर वर्ष बड़ी श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाते हैं।

अद्भुत है इस रथ की कलाकारी

श्रीराम की बारात में उपयोग होने वाले रजत रथ पर की गई नक्काशी बेहद दुर्लभ और कलात्मक है। इस रथ पर की गई हर डिज़ाइन अपने आप में एक विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है:

* शीर्ष पर: कमल पुष्प पर गणपति की प्रतिमा स्थापित है, जो शुभता और मंगल कार्यों की प्रतीक है।

* वैष्णव संप्रदाय के प्रतीक: रथ पर रामानंदी तिलक, धनुष, शंख, और चक्र की आकृतियाँ उकेरी गई हैं, जो प्रभु श्रीराम और वैष्णव संप्रदाय के प्रतीक चिन्हों का प्रतिनिधित्व करती हैं।

* गुलाब और पत्तियों की डिज़ाइन: रथ के मध्य भाग में गुलाब पुष्प और पत्तियों की सुंदर डिजाइन उभरी हुई है, जो रथ को और भी भव्यता प्रदान करती है।

* हाथी और मोर की आकृति: रथ के दोनों ओर हाथी का सिर और मोर की आकृति बनाई गई है, जो शौर्य और सौंदर्य के प्रतीक हैं।

* महिला की आकृति: रथ पर महिला की आकृति भी उकेरी गई है, जो स्त्री शक्ति और सौंदर्य का प्रतिनिधित्व करती है।

* सिंहासन के हत्थों पर: दोनों हत्थों पर दहाड़ते हुए सिंह की आकृति है, जो शक्ति और पराक्रम का प्रतीक है।

 

 

 

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