Supreme Court: रेप मामलों में IPC या पॉक्सो? सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कठोर सजा ही होगी लागू

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि किसी अपराधी को IPC और पॉक्सो (POCSO) ऐक्ट दोनों के तहत दोषी करार दिया जाता है, तो जिस कानून में कठोर सजा का प्रावधान होगा, वही लागू होगी। 

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई आरोपी पॉक्सो एक्ट और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत रेप मामले में दोषी करार दिया जाता है, तो उसे उस कानूनी प्रावधान के तहत सजा दी जाएगी जिसमें अधिकतम दंड का प्रावधान हो। अदालत ने कहा कि यदि कोई अपराध IPC और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) दोनों के तहत आता है, तो POCSO एक्ट की धारा-42 के अनुसार, अधिक कठोर सजा वाले कानून को प्राथमिकता दी जाएगी। 

चूंकि IPC के तहत रेप मामले में अधिक कठोर दंड का प्रावधान है, इसलिए वही लागू होगा। आरोपी की ओर से दलील दी गई थी कि POCSO एक विशेष कानून (Special Act) है और उसे अन्य कानूनी प्रावधानों पर वरीयता दी जानी चाहिए। 

क्या था पूरा मामला?

फतेहपुर जिले में एक व्यक्ति ने अपनी नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म किया था। इस जघन्य अपराध के लिए निचली अदालत ने उसे IPC की धारा 376 और POCSO अधिनियम की धारा 3/4 (गंभीर यौन हमला) के तहत दोषी करार दिया। आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस सजा को ताउम्र जेल में बदल दिया, यानी आरोपी को जीवनभर जेल में रहना होगा। इस फैसले को चुनौती देते हुए आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि IPC और POCSO ऐक्ट दोनों के तहत दोषसिद्धि सही थी। अदालत ने POCSO ऐक्ट की धारा 42 का हवाला देते हुए कहा कि जब कोई अपराध दोनों कानूनों के तहत दंडनीय हो, तो अपराधी को उसी प्रावधान के तहत सजा दी जाएगी, जिसमें अधिक कठोर दंड का प्रावधान है। इस मामले में IPC के तहत सजा अधिक कठोर थी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा। हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि अब से ऐसे मामलों में आरोपी को अधिकतम सजा ही दी जाएगी।

आरोपी की दलीलें खारिज

आरोपी की ओर से यह दलील दी गई कि POCSO ऐक्ट एक विशेष कानून (Special Act) है, इसलिए इसे IPC पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि सजा तय करने में यह देखा जाएगा कि किस कानून में अधिक कठोर दंड का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह साफ हो गया है कि यौन अपराधों में कोई नरमी नहीं बरती जाएगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों में अधिकतम सजा देना न्याय की दिशा में एक अहम कदम हैं।

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