तीन करोड़ साल पुरानी खोपड़ी से उठा रहस्य, वैज्ञानिकों ने खोजा प्राचीन काल का सबसे भयानक शिकारी

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काहिरा, मिस्र के रेगिस्तान के नीचे दबी धूल हटाते ही वैज्ञानिकों के सामने इतिहास का एक नया पन्ना खुल गया। खुदाई के दौरान तीन करोड़ साल पुरानी एक खोपड़ी मिली, जो एक रहस्यमय और भयानक शिकारी की थी। इस विलुप्त प्राणी को "बेस्टेटोडॉन सिरटॉस" नाम दिया गया है, और इसे अब तक का सबसे खतरनाक मांसाहारी माना जा रहा है।

यह खोज सिर्फ एक विलुप्त जीव के बारे में नहीं है, बल्कि यह हमारे ग्रह के प्राचीन शिकारी जीवों के विकास, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और आधुनिक मांसाहारी जीवों के उद्भव की गुत्थी को सुलझाने में भी मदद कर सकती है।

कैसा था यह आदिम शिकारी?

किसी भी शिकारी की पहचान उसके दांत और जबड़े से होती है, और बेस्टेटोडॉन इन दोनों मामलों में बेजोड़ था। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह एक तेंदुए के आकार का मांसाहारी था, जिसके धारदार दांत और शक्तिशाली जबड़े इसे बेहद घातक बनाते थे। इसकी काटने की ताकत इतनी अधिक थी कि यह अपने शिकार की हड्डियों तक को चीर सकता था। इस शिकारी का शरीर शिकार को जकड़ने और तेजी से हमला करने के लिए पूरी तरह से अनुकूलित था।

कौन था इसका शिकार?

उस दौर में जब हमारे पूर्वज, बंदरों जैसी प्राचीन प्रजातियां विकसित हो रही थीं, तब यह शिकारी भोजन श्रृंखला के शीर्ष पर था। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह प्राचीन हाथियों, दरियाई घोड़ों और हाईरेक्स जैसे बड़े स्तनधारियों का शिकार करता था। इसका मतलब है कि यह अपने समय के जंगलों का बेताज बादशाह था।

रेगिस्तान जो कभी था हरा-भरा जंगल

आज मिस्र का फायुम डिप्रेशन एक बंजर रेगिस्तान है, लेकिन तीन करोड़ साल पहले यह हरियाली से घिरा घना जंगल था। यह क्षेत्र विशाल झीलों और नदियों से समृद्ध था, जहां बेस्टेटोडॉन जैसे शिकारी स्वतंत्र रूप से घूमते थे। उस समय, हाइनोडॉन्ट प्रजाति के शिकारी इस इलाके में राज करते थे, जिसमें बेस्टेटोडॉन सबसे घातक था। ये शिकारी डायनासोरों के विलुप्त होने के बाद अफ्रीकी पारिस्थितिकी तंत्र के नए शासक बने।

क्या कहती है वैज्ञानिकों की रिपोर्ट?

• बेस्टेटोडॉन जैसे शिकारी कैसे विकसित हुए?
• क्या जलवायु परिवर्तन इनके विलुप्त होने का कारण था?
• क्या इन प्राचीन शिकारी जीवों का कोई संबंध आज के आधुनिक मांसाहारी जीवों से है?

अंतरराष्ट्रीय शोध में शामिल वैज्ञानिक

यह अध्ययन प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका "Journal of Vertebrate Palaeontology" में प्रकाशित किया गया है। इस रिसर्च टीम में दुनिया भर के जीवाश्म वैज्ञानिक शामिल हैं, जिन्होंने इस खोज को भूगर्भीय इतिहास की एक बड़ी उपलब्धि बताया है। यह खोज साबित करती है कि अतीत के रहस्य अभी भी जमीन के नीचे दफन हैं, जिन्हें उजागर करना बाकी है। क्या यह खोज भविष्य में प्राचीन पारिस्थितिकी तंत्र को समझने में क्रांतिकारी बदलाव लाएगी? यह आने वाले शोध ही बताएंगे।

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