Tirupati Laddu History: क्या है तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर के प्रसाद का इतिहास? जानें सबसे पहले किसने लगाया था बालाजी को भोग?

Tirupati Laddu History: क्या है तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर के प्रसाद का इतिहास? जानें सबसे पहले किसने लगाया था बालाजी को भोग?
Last Updated: 21 सितंबर 2024

तिरुपति बालाजी मंदिर, जिसे तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर भी कहा जाता है, देश के सबसे प्रमुख और पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश के तिरुपति में स्थित है और भगवान वेंकटेश्वर, जिन्हें भगवान बालाजी या श्रीनिवास के नाम से भी जाना जाता है, को समर्पित है। यहां के प्रमुख प्रसाद के रूप में मिलने वाला तिरुपति लड्डू लाखों भक्तों के बीच अत्यधिक प्रसिद्ध है। इस लड्डू का विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है।

Tirupati Temple: देशभर में कई मंदिर ऐसे हैं जो चमत्कारी और रहस्यमय माने जाते हैं। इनमें से एक प्रसिद्ध मंदिर आंध्र प्रदेश का तिरुपति बालाजी मंदिर है, जहाँ श्रीहरि भगवान वेंकटेश्वर रूप में विराजमान हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान वेंकटेश्वर ने कलयुग में मानव समाज के कल्याण और उत्थान के लिए अवतार लिया है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश के तिरुमला में स्थित होने के कारण तिरुपति बालाजी मंदिर के नाम से जाना जाता है। हर दिन यहाँ हजारों श्रद्धालु प्रभु के दर्शन के लिए आते हैं। आइए, जानते हैं भगवान वेंकटेश्वर को भोग लगाने वाले लड्डू का इतिहास।

तिरुपति बालाजी लड्डू प्रसाद का इतिहास

तिरुपति बालाजी मंदिर का लड्डू प्रसाद केवल भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे एक अद्भुत और प्रेरणादायक कहानी भी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब तिरुपति बालाजी की प्रतिमा को स्थापित किया जा रहा था, तब यह असमंजस की स्थिति उत्पन्न हुई कि भगवान वेंकटेश्वर को किस भोग के रूप में अर्पित किया जाए।

बुजुर्ग महिला का योगदान

इस स्थिति में एक बुजुर्ग महिला मंदिर में आई और उन्होंने लड्डू को भोग के रूप में अर्पित करने का सुझाव दिया। पुजारियों ने उनकी बात स्वीकार की और भगवान वेंकटेश्वर को लड्डू का भोग अर्पित किया। लड्डू का स्वाद इतना अच्छा था कि सभी भक्तों ने इसकी सराहना की।

भक्तों ने बुजुर्ग महिला से लड्डू बनाने की विधि के बारे में पूछा। उन्होंने विधि बताई, लेकिन उसके बाद वह अचानक गायब हो गई। इस घटना के बाद, मंदिर में लड्डू बनाने की परंपरा शुरू हुई, और तभी से तिरुपति बालाजी मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर को लड्डू का भोग अर्पित किया जाने लगा।

लड्डू की विशिष्टता और महत्व

तिरुपति लड्डू की सामग्री में शुद्ध घी, बेसन (चने का आटा), चीनी, काजू, किशमिश और इलायची का प्रयोग किया जाता है। इस लड्डू का स्वाद और बनावट विशेष होती है, और इसे बनाने की प्रक्रिया मंदिर के पुजारी और विशिष्ट रसोइयों द्वारा की जाती है। इसे तैयार करने के दौरान उसकी पवित्रता और धार्मिक अनुशासन का खास ख्याल रखा जाता है।

तिरुपति लड्डू का धार्मिक महत्व बेहद गहरा है। ऐसा माना जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर को अर्पित किया गया यह प्रसाद भक्तों के लिए सौभाग्य, समृद्धि और शांति लाता है। इसे प्राप्त करना एक बड़े आशीर्वाद के रूप में देखा जाता है, और श्रद्धालु इसे अपने परिवार और मित्रों के साथ साझा करते हैं।

तिरुपति लड्डू और GI टैग

तिरुपति लड्डू को उसकी विशिष्टता और धार्मिक महत्व की मान्यता के रूप में 2009 में भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्रदान किया गया। यह टैग तिरुपति लड्डू को उसकी विशिष्ट पहचान और गुणवत्ता की रक्षा के लिए दिया गया, ताकि इस लड्डू को अन्यत्र बनाया जा सके और इसकी पवित्रता और प्रतिष्ठा कायम रह सके।

लड्डू प्रसाद की मात्रा और वितरण

तिरुपति बालाजी मंदिर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु प्रतिदिन दर्शन करने आते हैं, और बड़ी संख्या में लड्डू प्रसाद का वितरण किया जाता है। मंदिर प्रशासन, जिसे तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) कहा जाता है, प्रतिदिन हजारों लड्डू बनाकर भक्तों में बांटता है। मंदिर के रसोई घर (जिसे "पोटू" कहा जाता है) में लड्डू बनाने की प्रक्रिया पूरी होती है, जहां विशेष रसोइए बड़े भक्ति भाव से इसे तैयार करते हैं।

तिरुपति मंदिर से जुड़ी विशेष बातें

- तिरुपति बालाजी मंदिर लगभग 1,500 साल पुराना माना जाता है और यह दक्षिण भारतीय संस्कृति और आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।

- मंदिर में प्रवेश करने के लिए श्रद्धालुओं को एक विशेष ड्रेस कोड का पालन करना होता है। यह नियम सुनिश्चित करता है कि सभी भक्त एक समान आस्था और श्रद्धा के साथ मंदिर में प्रवेश करें। आमतौर पर पुरुषों को धोती पहनने और महिलाओं को साड़ी या सलवार-कुर्ता पहनने की सलाह दी जाती है।

- भगवान वेंकटेश्वर की आंखें हमेशा बंद रहती हैं। ऐसा माना जाता है कि उनकी आंखों में अद्भुत और ब्रह्मांडीय ऊर्जा है, जिससे भक्त सीधे उनकी आंखों में नहीं देख सकते। इसलिए, उनकी आंखों को सफेद मुखौटे से ढक दिया जाता है। यह मुखौटा विशेष रूप से गुरुवार के दिन बदला जाता है, जिससे भक्तों को उनकी उपासना में सहायता मिलती है।

- मंदिर में भोग और प्रसाद का अर्पण करने की एक विशेष विधि है। यह प्रसाद केवल भक्तों के लिए आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसे धार्मिक आस्था के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है।

- मंदिर में नियमित रूप से विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और भक्ति संगीत का आयोजन होता है, जो भक्तों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है।

- मंदिर के विकास और रखरखाव में कई भक्तों का योगदान होता है, जो आर्थिक रूप से सहायता करते हैं। यह श्रद्धा का प्रतीक है और मंदिर को अपने धार्मिक कर्तव्यों को निभाने में मदद करता है।

- मंदिर में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी होती है, ताकि श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। यहां सीसीटीवी कैमरे और सुरक्षा कर्मी मौजूद रहते हैं।

- यह विशेष दिन भगवान वेंकटेश्वर की पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन बड़े स्तर पर समारोह आयोजित किए जाते हैं, जिसमें भक्तों की भारी भीड़ होती है।

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