दारुल उलूम में परीक्षाओं के चलते महिलाओं के प्रवेश पर फिर रोक लगी। मोहतमिम ने कहा, आने-जाने से छात्रों की पढ़ाई में बाधा पहुंचती है, इसलिए एंट्री सीमित रहेगी।
UP News: देश की प्रतिष्ठित इस्लामिक शिक्षण संस्था दारुल उलूम देवबंद ने एक बार फिर अपने परिसर में महिलाओं और बच्चों के प्रवेश पर अस्थायी रोक लगा दी है। संस्था के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी द्वारा रविवार को जारी बयान में कहा गया कि इस समय entrance examinations चल रही हैं, जिनमें देशभर से हजारों छात्र हिस्सा ले रहे हैं। ऐसे में परिसर में घूमने के इरादे से आने वाले लोगों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की मौजूदगी से पढ़ाई में disturbance हो सकता है।
दारुल उलूम ने की लोगों से अपील
नोमानी ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय सिर्फ परीक्षाओं के चलते लिया गया है और सभी लोगों से अनुरोध किया गया है कि वे संस्था में प्रवेश के दौरान महिलाओं और बच्चों को साथ न लाएं, ताकि परीक्षा का माहौल शांतिपूर्ण और एकाग्र बना रहे।
पहले भी लग चुकी है पाबंदी
गौरतलब है कि मई 2024 में भी इसी तरह की पाबंदी लगाई गई थी, जब संस्था ने आरोप लगाया था कि कुछ महिलाएं बेपर्दा होकर वीडियो शूट कर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रही थीं, जिससे संस्था की छवि को नुकसान हुआ। हालांकि, बाद में अक्टूबर 2024 में सशर्त महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी गई थी।
वक्फ संशोधन कानून पर जमीअत उलमा-ए-हिंद सुप्रीम कोर्ट पहुंची
इसी बीच जमीअत उलमा-ए-हिंद ने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए वक्फ संशोधन अधिनियम-2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिका में इस कानून को असंवैधानिक बताते हुए कहा गया है कि यह वक्फ संपत्तियों और उनके प्रबंधन के लिए विनाशकारी है।
जमीअत के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने बताया कि उनकी संस्था ने लोकतांत्रिक और धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए legal battle शुरू कर दी है। उन्होंने कहा कि जमीअत की राज्य इकाइयां भी हाई कोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दाखिल करेंगी।
'संविधान की आत्मा को भुला दिया गया' – मदनी
मदनी ने इस कानून को समर्थन देने वाले तथाकथित सेक्युलर दलों पर भी तीखा हमला किया। उन्होंने कहा कि सत्ता के लालच में इन दलों ने संविधान की आत्मा तक को नजरअंदाज कर दिया है। उन्होंने बताया कि जमीअत ने इस कानून के विरोध में कई संविधान रक्षा सम्मेलन आयोजित किए ताकि जन जागरूकता बढ़ाई जा सके।