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चीन पर टैरिफ की मार, क्या वैश्विक मंच पर अलग पड़ जाएगा ड्रैगन? जानें पूरी जानकारी

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चीन की तेज रफ्तार मैन्युफैक्चरिंग और वैश्विक बाजार में उसकी आक्रामक उपस्थिति अब उसी पर भारी पड़ती नजर आ रही है। कई देशों ने सस्ते चीनी माल की बाढ़ से अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए कड़े सीमा शुल्क लगाने शुरू कर दिए हैं। 

US Tariffs on China: चीन की ओर से लगभग 1.9 ट्रिलियन डॉलर के प्रोडक्शन बढ़ोतरी अभियान ने वैश्विक उद्योग जगत में हलचल मचा दी है। इसका असर अमेरिकी बाजार पर भी स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है। चीन से सस्ते सामानों की भारी आमद के चलते अमेरिकी मैन्युफैक्चरर्स पर दबाव बढ़ता जा रहा था। इसी पृष्ठभूमि में अमेरिका ने अब अपने उद्योगों को बचाने के लिए सख्त कदम उठाया है। 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को घोषणा करते हुए कहा कि चीन से आयातित सभी वस्तुओं पर 125 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा। ट्रंप ने इस निर्णय को अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की रक्षा के लिए आवश्यक और निर्णायक कदम करार दिया।

अमेरिका की सबसे बड़ी कार्रवाई: 125% टैरिफ का ऐलान

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में चीन से आयात होने वाले सभी उत्पादों पर 125% टैरिफ लगाने का निर्णय लिया है। यह अब तक की सबसे आक्रामक व्यापार नीति मानी जा रही है, जिसे ट्रंप ने अमेरिकी मैन्युफैक्चरर्स को बचाने का 'अत्यावश्यक कदम' करार दिया है। इसके साथ ही, अमेरिका ने अन्य देशों को 90 दिनों की छूट देते हुए सिर्फ 10% टैरिफ लागू किया है, लेकिन चीन इस छूट से पूरी तरह बाहर है। इसका सीधा संकेत यह है कि अमेरिका अब चीन की ओवरप्रोडक्शन नीति के खिलाफ खुला मोर्चा खोल चुका है।

चीन की रणनीति: भारी निवेश से फैक्ट्रियों की बाढ़

चीन ने बीते चार वर्षों में रियल एस्टेट और हाउसिंग क्षेत्र से हटाकर करीब 2 ट्रिलियन डॉलर की राशि उद्योगों में झोंक दी है। इसके अलावा, हाल ही में 1.9 ट्रिलियन डॉलर का एक और निवेश कर ग्लोबल बाजार में अत्यधिक उत्पादन को नई ऊंचाई दी है। परिणामस्वरूप, BYD जैसी कंपनियां नई फैक्ट्रियों की स्थापना में जुट गई हैं और इलेक्ट्रिक वाहनों से लेकर फर्टिलाइजर्स तक की सप्लाई दुनिया भर में बढ़ा दी गई है।

वैश्विक प्रतिक्रिया: चीन के खिलाफ एकजुटता

यूरोपीय यूनियन ने चीन के इलेक्ट्रिक वाहनों पर 45.3% का टैरिफ लगाया है।
ब्राजील ने मेटल और फाइबर ऑप्टिक केबल्स पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है।
मैक्सिको और थाईलैंड भी चीन से आयात पर कठोर टैरिफ लगाने पर विचार कर रहे हैं।
यह घटनाक्रम यह संकेत देता है कि अब केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि दुनिया के अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्था वाले देश भी चीन की ‘डंपिंग रणनीति’ से परेशान हैं।

असर: व्यापार घाटा बढ़ा, अमेरिका सतर्क

2023 और 2024 में चीन का निर्यात क्रमशः 13% और 17% बढ़ा है, जिससे उसकी GDP का 20% हिस्सा केवल निर्यात से बन रहा है। इसके विपरीत, अमेरिका का निर्यात GDP का सिर्फ 11% रह गया है, जो 2012 के आंकड़ों से भी कम है। अमेरिका का चीन के साथ व्यापार घाटा 295 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है, जिससे अमेरिकी नीति-निर्माताओं में चिंता गहराई है।

चीन ने जिस आक्रामक रणनीति के सहारे वैश्विक बाजार पर कब्जा करने की कोशिश की, अब वही रणनीति उसके लिए ग्लोबल बैकलैश बनती नजर आ रही है। यदि देशों ने मिलकर इसी तरह कड़े आयात शुल्क जारी रखे, तो चीन की ओवरकैपेसिटी और डंपिंग नीति खुद चीन की आर्थिक नींव को हिला सकती है।

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