Dutee Chand Birthday: दूती चंद  भारतीय धावक जिन्होंने संघर्ष और समर्पण से अपनी पहचान बनाई, जानिए उनका करियर

Dutee Chand Birthday: दूती चंद  भारतीय धावक जिन्होंने संघर्ष और समर्पण से अपनी पहचान बनाई, जानिए उनका करियर
अंतिम अपडेट: 7 घंटा पहले

Dutee Chand Birthday: दूती चंद हर साल 3 फरवरी को अपना जन्मदिन मनाती हैं। दूती चंद, जो 3 फरवरी 1996 को ओडिशा के जाजपुर जिले के एक छोटे से गाँव चाकागोपालपुर में जन्मी थीं, आज भारतीय एथलेटिक्स में एक महत्वपूर्ण नाम बन चुकी हैं। उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और संघर्ष से न सिर्फ राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी देश का नाम रोशन किया है। हम जानते हैं कि उनकी सफलता आसान नहीं रही। उन्हें न सिर्फ खेलों के मैदान में मुकाबला करना पड़ा बल्कि व्यक्तिगत जीवन और समाज की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा।

शुरुआत और बचपन की कठिनाईयाँ

दूती का परिवार एक गरीब बुनकर परिवार से था, और सात भाई-बहनों में वे तीसरी संतान हैं। बचपन में ही उनके माता-पिता ने अपनी दोनों बेटियों, दूती और उनकी बड़ी बहन सरस्वती को सरकारी खेल छात्रावास में दाखिल करवा दिया। इस निर्णय ने दूती की ज़िंदगी बदल दी और उन्हें खेलों में अपना भविष्य बनाने का मौका मिला।

समलैंगिकता पर खुलासा और परिवार का विरोध

2019 में, दूती चंद ने एक साहसिक कदम उठाते हुए अपनी समलैंगिकता को सार्वजनिक किया। यह कदम उनके लिए व्यक्तिगत और पारिवारिक रूप से कठिन था, क्योंकि उन्हें अपने ही परिवार से विरोध का सामना करना पड़ा। उनकी बड़ी बहन ने तो उन्हें परिवार से निकाल देने की धमकी तक दी थी। बावजूद इसके, दूती ने इस स्थिति का सामना किया और अपने सत्य के प्रति अपने समर्पण को साबित किया।

व्यवसायिक जीवन में उत्थान

दूती चंद की यात्रा 2012 में तब शुरू हुई जब उन्होंने अंडर-18 नेशनल चैंपियनशिप में 100 मीटर दौड़ में जीत हासिल की और नया रिकॉर्ड बनाया। इसके बाद, उनका करियर लगातार गति पकड़ने लगा। 2013 में, उन्होंने पुणे में आयोजित एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 200 मीटर में कांस्य पदक जीता और राष्ट्रीय सीनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी 100 और 200 मीटर में जीत दर्ज की।

हालांकि, 2014 में उन्हें एक कठिन दौर से गुजरना पड़ा। एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने उन्हें हार्मोन टेस्ट में विफल पाए जाने के कारण प्रतिबंधित कर दिया। लेकिन, दूती ने हार नहीं मानी। 2015 में कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ऑफ स्पोर्ट्स (CAS) ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया और वे फिर से अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के योग्य हो गईं।

अंतर्राष्ट्रीय सफलता की नई ऊँचाइयाँ

दूती ने 2016 में एशियाई इंडोर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता। इसके बाद, उन्होंने कज़ाकिस्तान में जी कोसानोव मेमोरियल में 100 मीटर में 11.24 सेकंड का समय निकाला और 2016 रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया। हालांकि रियो ओलंपिक में वे हीट स्टेज से आगे नहीं जा सकीं, लेकिन उनका संघर्ष और मेहनत उनकी कड़ी के रूप में सामने आई।

2018 में, दूती ने एशियाई खेलों में 100 मीटर में रजत पदक और 200 मीटर में भी रजत पदक जीते, जो भारत के लिए एक ऐतिहासिक पल था। यह भारत के लिए 1986 के बाद पहला 100 मीटर रजत पदक था, जब पीटी उषा ने रजत जीता था।

2019 में ऐतिहासिक जीत

2019 में, दूती चंद ने नापोली में समर यूनिवर्सियाड में 100 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। वे किसी भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की एथलेटिक चैंपियनशिप में पोडियम पर स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला धावक बनीं। इसके बाद उन्होंने 59वीं नेशनल ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ते हुए 100 मीटर में स्वर्ण पदक जीता।

अवार्ड्स और सम्मान

दूती चंद की उपलब्धियों की लंबी सूची है। उन्होंने कई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत का नाम रोशन किया है। उनके पास 2019 यूनिवर्सियाड में 100 मीटर में स्वर्ण, एशियाई जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 200 मीटर और 4x400 मीटर रिले में स्वर्ण, एशियाई खेलों में 100 और 200 मीटर में रजत, और 2016 के साउथ एशियाई खेलों में कांस्य जैसे प्रमुख पदक हैं।

दूती चंद की संघर्ष और सफलता 

दूती चंद की यात्रा हमें यह सिखाती है कि सफलता पाने के लिए सिर्फ मेहनत और समर्पण की जरूरत होती है, न कि परिस्थितियों या सामाजिक धारणाओं की। उनके जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ और संघर्ष न केवल उन्हें एक बेहतर एथलीट बनाते हैं, बल्कि एक प्रेरणा भी देते हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चाई के प्रति खड़ा रहना और खुद पर विश्वास रखना किसी भी खेल के मुकाबले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं।

दूती चंद की कहानी ने भारतीय एथलेटिक्स को एक नई दिशा दी है, और उनकी मेहनत और समर्पण आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे।

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