बाबा गुरबख्श सिंह जी का शहीदी दिवस 1 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिन उस ऐतिहासिक लड़ाई की याद में है, जब 1 दिसंबर 1764 को उन्होंने और उनके 29 साथियों ने अमृतसर में अफगान और बलूच सेनाओं के खिलाफ आखिरी जंग लड़ी थी। इस जंग में बाबा गुरबख्श सिंह और उनके साथी शहीद हो गए थे। उनका बलिदान सिख इतिहास में अमर रहेगा, और हर साल 1 दिसंबर को उनकी शहादत को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इस दिन शहीदी दिवस मनाया जाता हैं।
बाबा गुरबख्श सिंह, जिन्हें गुरबक्श के नाम से भी जाना जाता है, 18वीं सदी के एक महान सिख योद्धा थे। उनका नाम सिख इतिहास में उस वीरता और बलिदान के प्रतीक के रूप में लिया जाता है, जिसने न केवल सिख धर्म को मजबूती दी बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव भी रखी। गुरबख्श सिंह ने 1 दिसंबर 1764 को अमृतसर में अफगान और बलूच सेनाओं के खिलाफ जो ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी, वह आज भी शहीदों के साहस और बलिदान का प्रतीक मानी जाती हैं।
प्रारंभिक जीवन और खालसा में दीक्षा
बाबा गुरबख्श सिंह का जन्म 10 अप्रैल 1688 को अमृतसर जिले के लील गाँव में हुआ था। वे दसौंधा और माई लच्छमी के पुत्र थे। उनका जीवन शुरू से ही संघर्ष और वीरता से भरा हुआ था। गुरबख्श सिंह ने 1699 में खालसा के रूप में गुरु गोबिंद सिंह से दीक्षा ली और सिख धर्म के सिद्धांतों को आत्मसात किया। उनकी धार्मिक शिक्षा भाई मणि सिंह से हुई थी और इसके बाद वे बाबा दीप सिंह के नेतृत्व में शहीदान मिस्ल में शामिल हो गए। सिख मिसल के तहत गुरबख्श सिंह ने अफगान और मुगलों के खिलाफ कई युद्धों में भाग लिया और अपनी वीरता का परचम लहराया।
अमृतसर में अंतिम लड़ाई 1 दिसंबर 1764
1763 से 1764 तक, सिख मिसल ने पंजाब के बड़े हिस्से पर अपना कब्जा जमा लिया था। लाहौर और मुल्तान जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर सिखों का कब्जा अफगान शासन के लिए खतरे की घंटी साबित हो रहा था। इस दौरान अहमद शाह अब्दाली, अफगान साम्राज्य के शासक, ने सातवां आक्रमण करने का निर्णय लिया। अफगान और बलूच सेना ने मिलकर लाहौर की ओर कूच किया, और अहमद शाह अब्दाली ने 1 दिसंबर 1764 को अमृतसर पर हमला किया।
जब अफगान सेना को यह सूचना मिली कि सिखों का जमावड़ा अमृतसर में एकत्रित हो चुका है, तो वे वहां पहुंचे। इस समय बाबा गुरबख्श सिंह, निहाल सिंह, बसंत सिंह, मान सिंह और 26 अन्य सिख योद्धाओं ने अफगान और बलूच सेनाओं के खिलाफ लड़ाई के लिए अपनी जान की बाजी लगाने का निर्णय लिया।
शहीदी और बलिदान
श्री हरमंदिर साहिब पर बाबा गुरबख्श सिंह के नेतृत्व में 30 सिखों ने अफगान और बलूच सेनाओं पर हमला कर दिया। यह लड़ाई कड़ी और भयंकर थी, लेकिन अंत में बाबा गुरबख्श सिंह और उनके सभी साथियों ने शहादत प्राप्त की। इस जंग में बाबा गुरबख्श सिंह और उनके 29 साथी शहीद हो गए। इस संघर्ष ने सिखों के साहस और उनके बलिदान की गाथा को अमर कर दिया।
शहीदगंज स्मारक और परंपरा
बाबा गुरबख्श सिंह और उनके साथियों की शहादत के बाद, उनके अवशेषों का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार किया गया और उनकी याद में अमृतसर में शहीदगंज नामक एक स्मारक स्थापित किया गया। यह स्मारक आज भी श्रद्धालुओं और इतिहास प्रेमियों के लिए एक पवित्र स्थल है। बाबा गुरबख्श सिंह की शहादत और उनका साहस सिख समुदाय के लिए हमेशा प्रेरणास्त्रोत बना रहेगा।
बाबा गुरबख्श सिंह का जीवन और उनकी शहादत सिख धर्म और संस्कृति के लिए एक अमूल्य धरोहर है। उनका बलिदान न केवल सिखों की पहचान को मजबूत करता है, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की भावना को भी प्रेरित करता है। आज भी, हम बाबा गुरबख्श सिंह के साहस और बलिदान को याद करते हैं और उनके आदर्शों को जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं। उनका नाम सिख इतिहास में हमेशा अमर रहेगा, और शहीदगंज स्मारक उनकी वीरता और बलिदान को हमेशा याद दिलाता रहेगा।