बाल कृष्ण शर्मा (नवीन) की जयंती 8 दिसंबर को मनाई जाती है। उनका जन्म 8 दिसंबर 1897 को मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के भ्याना गाँव में हुआ था। उनका जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, पत्रकारिता और साहित्य में उनके योगदान के लिए सदैव याद किया जाएगा।
बाल कृष्ण शर्मा नवीन एक महान स्वतंत्रता सेनानी, कवि और पत्रकार की प्रेरक यात्रा
भारत के स्वतंत्रता संग्राम और हिंदी साहित्य के आकाश में एक अद्वितीय स्थान रखने वाले बाल कृष्ण शर्मा (नवीन) का योगदान आज भी हर भारतीय को प्रेरित करता है। उनका जीवन केवल एक स्वतंत्रता सेनानी का नहीं था, बल्कि एक काव्यात्मा, पत्रकार, और समाजसेवी का भी था। 8 दिसंबर 1897 को मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के भ्याना गाँव में जन्मे बाल कृष्ण शर्मा की यात्रा संघर्षों और समर्पण से भरी हुई थी। उनकी कहानी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गाथाओं में शामिल है, और उनकी साहित्यिक कृतियाँ आज भी साहित्य प्रेमियों के दिलों में जीवित हैं।
जीवन और शिक्षा
बाल कृष्ण शर्मा का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता जमनादास शर्मा और माता राधाबाई के पास पर्याप्त संसाधन नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। बाल कृष्ण शर्मा की प्रारंभिक शिक्षा शाजापुर के स्थानीय स्कूल से हुई, और फिर उन्होंने उज्जैन में शिक्षा प्राप्त की। इस दौरान उनकी मुलाकात प्रसिद्ध कवि माखनलाल चतुर्वेदी से हुई, जिन्होंने उन्हें गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलवाया। यही संबंध उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, क्योंकि इसी के बाद उनका नाम हिंदी पत्रकारिता और साहित्य में जुड़ा।
स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी
बाल कृष्ण शर्मा का जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रति उनके समर्पण का प्रतीक बन गया। 1921 से 1944 के बीच, ब्रिटिश सरकार ने उन्हें छह बार जेल में डाला और उन्हें खतरनाक कैदी घोषित कर दिया। उनकी पत्रकारिता ने हमेशा स्वतंत्रता संग्राम की लहर को मजबूत किया। 1931 में गणेश शंकर विद्यार्थी की मृत्यु के बाद, उन्होंने दैनिक 'प्रताप' के संपादक के रूप में कार्य किया। उनके संपादन में यह अखबार और भी प्रभावशाली बन गया और स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका निभाता रहा।
साहित्यिक योगदान
बाल कृष्ण शर्मा नवीन के साहित्यिक कार्यों ने उन्हें एक विशिष्ट पहचान दी। उनका साहित्यिक दृष्टिकोण न केवल देशभक्ति से प्रेरित था, बल्कि उसमें समाज की सच्चाई और मानवता की गहरी समझ भी थी। उन्होंने 'कुमकुम', 'रश्मिरेखा', 'अपलक', 'क्वासी', 'विनोबा स्तवन', और 'उर्मिला' जैसे कई काव्य संकलन प्रकाशित किए। उनकी कविताओं में देश की आज़ादी की भावना और मानवता के प्रति प्रेम झलकता था।
राजनैतिक जीवन
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, बाल कृष्ण शर्मा ने कांग्रेस पार्टी में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया और भारतीय राजनीति में भी अपना स्थान बनाया। उन्होंने 1951-52 में पहले लोकसभा चुनाव में भाग लिया और कानपुर से जीत हासिल की। 1955 में उन्हें भारत सरकार द्वारा राजभाषा आयोग का सदस्य चुना गया, जहाँ उन्होंने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए।
सम्मान और पुरस्कार
उनके अद्वितीय योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें 1960 में पद्म भूषण से सम्मानित किया। इसके अतिरिक्त, उनकी रचनाओं को आज भी साहित्य जगत में विशेष स्थान प्राप्त है। उनकी कुछ कविताओं को उनके निधन के बाद ज्ञानपीठ द्वारा संकलित कर 'हम विश्वपे जन्म के' नाम से प्रकाशित किया गया। 1989 में भारत सरकार ने उनकी याद में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया।
बाल कृष्ण शर्मा का जीवन एक प्रेरणा है, जो हमें बताता है कि संघर्षों के बावजूद, अगर हमारा उद्देश्य सही हो, तो हम समाज में बदलाव ला सकते हैं। उनकी लेखनी, उनके संघर्ष और उनके योगदान को हम कभी नहीं भूल सकते। उनका जीवन और उनके कार्य भारतीय साहित्य, पत्रकारिता और राजनीति के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में हमेशा जीवित रहेंगे।