भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक और पंजाब के पहले मुख्यमंत्री डॉ गोपी चंद भार्गव का जीवन संघर्ष, साहस और राष्ट्रसेवा की अद्वितीय मिसाल है। 8 मार्च, 1889 को सिरसा (अब हरियाणा) में जन्मे डॉ भार्गव ने चिकित्सा क्षेत्र में करियर की शुरुआत की, लेकिन जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उन्हें इतनी गहराई से झकझोर दिया कि उन्होंने डॉक्टर की पेशा छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कदम रखा।
जलियांवाला बाग की घटना ने बदला जीवन का मार्ग
डॉ भार्गव ने किंग एडवर्ड मेडिकल कॉलेज, लाहौर से 1912 में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की और एक सफल चिकित्सक के रूप में कार्यरत हुए। लेकिन 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। इस घटना से आहत होकर उन्होंने अपनी डॉक्टरी छोड़ दी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाने लगे।
महात्मा गांधी और लाला लाजपत राय से मिली प्रेरणा
डॉ भार्गव महात्मा गांधी और लाला लाजपत राय के विचारों से अत्यधिक प्रेरित थे। कांग्रेस नेता डॉ निहाल चंद सीकरी ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा। बाद में जब लाला लाजपत राय लाहौर पहुंचे, तो डॉ भार्गव उनके घनिष्ठ अनुयायी बन गए। उन्होंने असहयोग आंदोलन का समर्थन करते हुए अपनी चिकित्सा सेवा छोड़ दी, जिसके चलते उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा चार महीने की जेल और जुर्माने की सजा दी गई।
सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका
डॉ भार्गव ने 1930 और 1933 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया। 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी वे सक्रिय रूप से शामिल रहे और उन्हें ढाई साल की जेल की सजा भुगतनी पड़ी।
महिलाओं की समानता के प्रबल समर्थक
डॉ भार्गव सामाजिक सुधारों में भी अग्रणी थे। वे जाति-पाति के भेदभाव से परे सभी को समान दृष्टि से देखते थे और महिलाओं की समानता के पक्षधर थे। वे कांग्रेस संगठन में विभिन्न पदों पर रहे और 1946 में पंजाब विधानसभा के सदस्य चुने गए।
संयुक्त पंजाब के पहले मुख्यमंत्री के रूप में नेतृत्व
देश की आजादी के बाद, सरदार वल्लभभाई पटेल के आग्रह पर डॉ भार्गव ने 15 अगस्त, 1947 को संयुक्त पंजाब के पहले मुख्यमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण किया। उन्होंने विभाजन के कारण उपजे सांप्रदायिक तनाव और प्रशासनिक चुनौतियों का समाधान निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे तीन बार पंजाब के मुख्यमंत्री बने – पहली बार 1947 से 1949 तक, फिर 1949 से 1951 तक और अंततः 1964 में।
गांधी स्मारक निधि के प्रथम अध्यक्ष
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने के साथ-साथ डॉ भार्गव सामाजिक कल्याण और गांधीवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए भी प्रतिबद्ध थे। वे 'गांधी स्मारक निधि' के पहले अध्यक्ष बने और गांधीजी की रचनात्मक गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए अनेक प्रयास किए।
26 दिसंबर, 1966 को कहा अलविदा
अपने संपूर्ण जीवन को समाज और राष्ट्र की सेवा में समर्पित करने वाले डॉ गोपी चंद भार्गव ने 26 दिसंबर, 1966 को अंतिम सांस ली। उनका जीवन न केवल पंजाब बल्कि पूरे भारत के लिए प्रेरणा का स्रोत है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर प्रशासनिक नेतृत्व तक, उन्होंने अपने विचारों और कर्मों से देश के विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया।