करतार सिंह सराभा की पुण्य तिथि 16 नवंबर मनाया जाता है। करतार सिंह सराभा ने 16 नवंबर 1915 को अपनी शहादत दी थी। उन्हें अंग्रेज़ी हुकूमत द्वारा लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर लटका दिया गया था। उनकी शहादत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। वे ग़दर पार्टी के एक प्रमुख सदस्य थे और ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष के लिए पूरी तरह से समर्पित थे। उनकी शहादत का दिन, 16 नवंबर, हर साल उनकी वीरता और बलिदान को याद करने
करतार सिंह सराभा का प्रारंभिक जीवन
करतार सिंह सराभा का जन्म 24 मई 1896 को पंजाब के लुधियाना जिले के सराभा गाँव में हुआ था। वे एक जाट सिख परिवार से थे, जिनके पिता का नाम मंगल सिंह ग्रेवाल और माता का नाम साहिब कौर था। उनके पिता की मृत्यु जब वह बहुत छोटे थे, तो उनका पालन-पोषण उनके दादा ने किया।
शिक्षा और विदेश यात्रा
करतार सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव के स्कूल से प्राप्त की। इसके बाद, वे लुधियाना के मालवा खालसा हाई स्कूल में पढ़ाई करने गए, जहाँ उन्होंने 8वीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की। 1912 में, जब उनकी उम्र केवल 16 साल थी, वे कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के लिए सैन फ्रांसिस्को गए, हालांकि इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि वे विश्वविद्यालय में पढ़ाई नहीं कर पाए। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, वे विश्वविद्यालय के बजाय एक मिल में काम करने लगे थे।
ग़दर पार्टी में प्रवेश
कैलिफोर्निया में रहते हुए, करतार सिंह ने ग़दर पार्टी के संस्थापकों से संपर्क किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का निश्चय किया। उन्होंने सोहन सिंह भकना जैसे क्रांतिकारी नेताओं से प्रेरणा ली और उनका मार्गदर्शन प्राप्त किया। ग़दर पार्टी का उद्देश्य भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष के जरिए स्वतंत्रता प्राप्त करना था।
करतार सिंह ने ग़दर पार्टी के संस्थापक सोहन सिंह भकना से बंदूक चलाने और विस्फोटक बनाने की कला सीखी, और इसके साथ ही उन्होंने हवाई जहाज़ उड़ाने का भी प्रशिक्षण लिया। उनकी देशभक्ति भावना ने उन्हें भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।
इस प्रकार, उनके प्रारंभिक जीवन में ही उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए अपनी राह चुन ली थी और ग़दर पार्टी के साथ मिलकर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ जंग में कूद पड़े।
पंजाब में विद्रोह
करतार सिंह सराभा और ग़दर पार्टी के अन्य सदस्य जब प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हुए, तो उन्होंने पंजाब में एक बड़ा विद्रोह करने की योजना बनाई। उनका उद्देश्य ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना और भारत को स्वतंत्रता दिलाना था।
विद्रोह की योजना
1914 में, जब ब्रिटिश साम्राज्य मित्र राष्ट्रों के पक्ष में युद्ध में शामिल हुआ, तो ग़दर पार्टी के नेताओं ने इसे एक अच्छा अवसर समझा। उन्होंने सोचा कि यदि भारत में विद्रोह किया जाए, तो ब्रिटिश साम्राज्य की ताकत कमजोर हो सकती है, क्योंकि ब्रिटिश सेना का एक बड़ा हिस्सा भारतीय सैनिकों से बना था।
5 अगस्त 1914 को ग़दर पार्टी ने अपने समाचार पत्र ग़दर में एक अंक प्रकाशित किया, जिसमें ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ "युद्ध की घोषणा" की बात की गई थी। इसके बाद, ग़दर पार्टी ने पंजाब में एक सशस्त्र विद्रोह की योजना बनाई।
विद्रोह का प्रारंभ
करतार सिंह सराभा और ग़दर पार्टी के अन्य क्रांतिकारियों ने भारत लौटने का निर्णय लिया। अक्टूबर 1914 में करतार सिंह एक समूह के साथ एसएस सलामिन जहाज से कोलंबो होते हुए कलकत्ता पहुंचे। उनके साथ अन्य क्रांतिकारी जैसे सत्येन सेन, विष्णु गणेश पिंगले और ग़दर पार्टी के कई सदस्य भी थे। उनके उद्देश्य पंजाब में विद्रोह की शुरुआत करना था और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष को फैलाना था।
ग़दर पार्टी और भारत में विद्रोह की योजना
करतार सिंह और उनके साथियों ने रास बिहारी बोस से संपर्क किया और उन्हें इस विद्रोह की जानकारी दी। रास बिहारी बोस भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता थे और वे जापान से भारत की स्वतंत्रता के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे थे।
21 फरवरी 1915 को पंजाब के विभिन्न स्थानों पर एक बड़ी सशस्त्र विद्रोह की योजना बनाई गई। योजना के अनुसार, मियां मीर, फिरोजपुर, अंबाला, और दिल्ली में विद्रोह शुरू किया जाना था। इन स्थानों पर ब्रिटिश छावनियों पर हमला करना था, और फिर सेना को हथियारों से लैस करके एक बड़ा विद्रोह शुरू किया जाना था।
विश्वासघात और गिरफ्तारी
हालांकि, ग़दर पार्टी के एक सदस्य कृपाल सिंह ने ब्रिटिश अधिकारियों को इस विद्रोह की जानकारी दे दी। इसके कारण, भारतीय सैनिकों को निरस्त्र कर दिया गया और कई ग़दर पार्टी के सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस विश्वासघात के कारण, विद्रोह की योजना विफल हो गई।
19 फरवरी 1915 को कृपाल सिंह ने ब्रिटिश पुलिस को ग़दर पार्टी के अन्य नेताओं के बारे में सूचना दी, जिससे भारी गिरफ्तारियां हुईं। इसके बावजूद, कुछ ग़दर पार्टी के सदस्य भागने में सफल रहे और वे अफगानिस्तान की ओर निकल गए।
विद्रोह के विफल होने के बाद
ग़दर पार्टी का यह विद्रोह असफल होने के बाद, करतार सिंह और उनके साथी अफगानिस्तान भाग गए, जहां से वे फिर से भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों को बढ़ाने की योजना बना रहे थे।
अंततः, 2 मार्च 1915 को करतार सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें लाहौर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया।
नतीजा
करतार सिंह सराभा और ग़दर पार्टी के अन्य सदस्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपना बलिदान देने वाले शहीद बने। 17 नवंबर 1915 को, लाहौर सेंट्रल जेल में करतार सिंह सराभा सहित कई अन्य क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई।
करतार सिंह सराभा का पंजाब में विद्रोह में योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण था, और उनकी शहादत ने लाखों भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।