रेल गाड़ी का सफर - शेखचिल्ली की कहानी

रेल गाड़ी का सफर - शेखचिल्ली की कहानी
Last Updated: 07 मार्च 2024

रेल गाड़ी का सफर - शेखचिल्ली की कहानी

शेखचिल्ली काफी चंचल स्वभाव का था। वो किसी भी जगह ज्यादा वक्त तक नहीं टिकता था। ठीक ऐसा ही उसकी नौकरी के साथ भी था। काम पर जाने के कुछ दिनों बाद ही उसे कभी नादानी तो कभी किसी शैतानी और कभी कामचोरी के कारण नौकरी से निकाल दिया जाता था। बार-बार ऐसा होने पर शेख के मन में हुआ कि इन नौकरियों से मुझे वैसे भी कुछ मिलने वाला नहीं है। अब मैं सीधे मुंबई जाऊंगा और बड़ा कलाकार बनूंगा। इसी सोच के साथ उसने झट से मुंबई जाने के लिए रेल की टिकट करवा ली। शेखचिल्ली का यह पहला रेल सफर था। खुशी के मारे वो वक्त से पहले ही रेलवे स्टेशन पहुंच गया। जैसे ही ट्रेन आई तो वो फर्स्ट क्लास की बोगी में जाकर बैठा गया। उसे पता नहीं कि जिस बोगी की टिकट काटी है उसी में बैठना होता है। वो पहली श्रेणी की बोगी थी, इसलिए शानदार और एकदम खाली थी। ट्रेन ने चलना शुरू कर दिया। शेख के मन में हुआ कि हर कोई कहता है कि ट्रेन में भीड़ होती है, लेकिन यहां तो कोई नहीं है।

अकेले बैठे कुछ दर उसने खुद के चंचल मन को संभाल लिया, लेकिन जब काफी देर तक ट्रेन कहीं नहीं रुकी और न कोई बोगी में आया, तो वो परेशान होने लगा। उसने सोचा था कि बस की तरह ही कुछ देर बाद ट्रेन भी रूक जाएगी और फिर बाहर टलह आऊंगा। बदकिस्मती से न कोई स्टेशन आया और न ऐसा हुआ। अकेले सफर करते-करते शेख ऊब गया। वो इतना परेशान हो गया था कि बस की तरह ही रेल गाड़ी में भी ‘इसे रोको इसे रोको’ कहकर चिल्लाने लगा। काफी देर तक शोर मचाने के बाद भी जब रेल नहीं रुकी, तो वो मुंह बनाकर बैठ गया। काफी देर इंतजार करने के बाद एक स्टेशन पर ट्रेन रूक गई। शेख फुर्ती से उठा और ट्रेन के बाहर झांकने लगा। तभी उसकी नजर एक रेल कर्मी पर पड़ी। उसे आवाज देते हुए शेख ने अपने पास आने के लिए कहा। रेल कर्मी शेख के पास गया और पूछा कि क्या हुआ बताओ? शेख ने जवाब में शिकायत करते हुए कहा, “यह कैसी ट्रेन है कब से आवाज दे रहा हूं, लेकिन रूकने का नाम ही नहीं लेती है।

“यह कोई बस नहीं, बल्कि ट्रेन है। हर जगह रूकना इसका काम नहीं है। यह अपनी जगह पर ही रूकेगी। यहां बस की तरह नहीं होता कि ड्राइवर व कंडक्टर को रोकने के लिए कह दो और रूक गई।” शेख की शिकायत के जवाब में रेल कर्मी ने कहा। शेख ने अपनी गलती छुपाने के लिए रेल कर्मी से कह दिया कि हां-हां, मुझे सबकुछ मालूम है।” तेज आवाज में रेल कर्मी बोला, “जब सबकुछ पता है, तो ऐसे सवाल क्यों पूछ रहे हो?” शेखचिल्ली के पास इसका कोई उत्तर था नहीं। उसने बस ऐसे ही कह दिया कि मुझे जिससे जो पूछना होगा मैं पूछूंगा और बार-बार पूछूंगा। गुस्से में रेल कर्मी ने शेखचिल्ली को ‘नॉनसेंस’ कहते हुए आगे बढ़ गया। शेख को पूरा शब्द तो समझ नहीं आया। वो बस नून ही समझ पाया था। उसने रेलकर्मी को जवाब देते हुए कहा हम सिर्फ नून नहीं खाते, बल्कि पूरी दावत खाते हैं। फिर जोर-जोर से हंसने लगा। तबतक उधर रेल भी अपने रास्ते पर आगे चल पड़ी।

इस कहानी से यह सीख मिलती है कि – किसी भी नई तरह की गाड़ी से सफर करने से पहले उससे संबंधित पूरी जानकारी जुटा लेनी चाहिए।

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