सोशल मीडिया के इस युग में, हम में से अधिकांश लोग दिनभर रील्स और शॉर्ट्स को स्क्रॉल करते रहते हैं। एक वीडियो से दूसरे वीडियो तक कूंदते हुए, हम न जाने कितने घंटे सोशल मीडिया पर बर्बाद कर देते हैं। यह आदत अब एक ऐसे शब्द से जुड़ी हुई है, जिसे हाल ही में ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने 2024 का "वर्ड ऑफ द ईयर" घोषित किया है—"ब्रेन रोट"।
क्या है ब्रेन रोट?
ब्रेन रोट (Brain Rot) शब्द का प्रयोग सोशल मीडिया पर लगातार स्क्रॉल करने की आदत को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। जब कोई व्यक्ति बिना किसी उद्देश्य के घंटों तक सोशल मीडिया की वीडियो और रील्स देखता रहता है, तो उसे ब्रेन रोट का शिकार माना जाता है। यह मानसिक सड़न की स्थिति को संदर्भित करता है, जिसमें लोग केवल वक्त बर्बाद करने के लिए नतीजे की परवाह किए बिना कंटेंट को देखना जारी रखते हैं।
230% बढ़ा इसका उपयोग
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने बताया कि इस शब्द का उपयोग पिछले एक साल में 230 प्रतिशत बढ़ा है। इसका मतलब है कि सोशल मीडिया पर बिताए जाने वाले समय और उसमें घुसते हुए कंटेंट के प्रकार में गंभीर वृद्धि हो रही है। लोग बिना किसी सोच या उद्देश्य के रील्स, शॉर्ट्स और वीडियो को स्क्रॉल करते जाते हैं, जिससे मानसिक थकान और शारीरिक जड़ता का अहसास होने लगता है।
यह आदत कैसे बनती है?
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब शॉर्ट्स, आदि में जो एल्गोरिदम होते हैं, वे ऐसे कंटेंट को दिखाते हैं जो आपकी पसंद या न पसंद के आधार पर होता है। यह एल्गोरिदम आपको वह कंटेंट दिखाने में माहिर होता है, जिसे आप न चाहते हुए भी अधिक समय तक देखते रहते हैं। बस "कई और रील्स" देखने की आदत में, आप बिना यह समझे कि आपको कौनसा कंटेंट चाहिए और कौन सा नहीं, उस सोशल मीडिया की जाल में फंस जाते हैं।
ब्रेन रोट: एक मानसिक बीमारी?
हम सब जानते हैं कि इंटरनेट के माध्यम से दुनिया भर की जानकारी हमारे हाथ में है, लेकिन क्या यह हमारी मानसिक स्थिति पर असर डाल रहा है? जब हम इस 'स्क्रॉलिंग' को अनियंत्रित रूप से करते हैं, तो हम यह देखे बिना अपना समय गंवा रहे होते हैं कि हम क्या देख रहे हैं और क्यों देख रहे हैं। यही है ब्रेन रोट। यह मानसिक सड़न को दर्शाता है, जिसमें लोग अत्यधिक बर्बादी कर रहे होते हैं, खासकर ऐसे कंटेंट में, जो न तो उनके लिए उपयोगी होता है और न ही कुछ नया सिखाता है।
ब्रेन रोट का इतिहास
ब्रेन रोट शब्द का सबसे पहला इस्तेमाल लगभग 170 साल पहले हुआ था। 1854 में, प्रसिद्ध लेखक हेनरी डेविड थॉरो ने अपनी किताब Walden में इस शब्द का उपयोग किया था। उन्होंने समाज के सतहीपन और मानसिक सड़न को दर्शाते हुए लिखा था कि जैसे आलू की सड़न से निपटने के उपाय खोजे जा रहे हैं, वैसे ही मानसिक सड़न पर भी विचार करना चाहिए।
ब्रेन रोट का असर और समाधान
हालांकि, सोशल मीडिया का उपयोग हमारे मनोरंजन और जानकारी के लिए फायदेमंद हो सकता है, लेकिन यदि हम इसे नियंत्रित नहीं करते, तो इसका मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। ब्रेन रोट का शिकार होने से व्यक्ति की सोचने-समझने की क्षमता पर असर पड़ सकता है। वह उत्तेजित और थका हुआ महसूस कर सकता है, क्योंकि उसने लगातार नीरस और अव्यवस्थित कंटेंट को देखा है।
इससे बचने के लिए विशेषज्ञों का सुझाव है कि हमें सोशल मीडिया का प्रयोग सीमित करना चाहिए। एक निश्चित समय सीमा तय करें, ताकि हम अपने समय का सही उपयोग कर सकें। इसके अलावा, जो भी कंटेंट हम देख रहे हैं, वह उद्देश्यपूर्ण और लाभकारी हो, ताकि हमारी मानसिक स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव पड़े।
आज के डिजिटल युग में, ब्रेन रोट एक ऐसी समस्या बनकर उभरी है, जो लाखों लोगों को प्रभावित कर रही है। इसलिए यह जरूरी है कि हम अपने डिजिटल जीवन और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संतुलन बनाए रखें। जरूरत से ज्यादा सोशल मीडिया का इस्तेमाल न केवल हमारी उत्पादकता को प्रभावित करता है, बल्कि यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य को भी नष्ट कर सकता है।