बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) को लेकर राजनीतिक माहौल गरमा गया है। यह प्रक्रिया जहां चुनाव आयोग के अनुसार नियमित और पूर्व-निर्धारित है, वहीं विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' ने इस पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
पटना: बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर बड़ा राजनीतिक बवाल खड़ा हो गया है। जहां विपक्षी दल इस प्रक्रिया को सत्तारूढ़ एनडीए (NDA) के पक्ष में बताया जा रहा है, वहीं भारतीय जनता पार्टी (BJP) के आंतरिक सर्वेक्षण से संकेत मिले हैं कि यह मुद्दा पार्टी के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। कई मतदाता इस प्रक्रिया से नाखुश हैं और बीजेपी पर सीधे तौर पर आरोप लगा रहे हैं कि यह कवायद उनकी नागरिकता पर सवाल उठाने जैसा है।
SIR से क्यों बढ़ी बीजेपी की चिंता?
नई रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीजेपी की टेली-सर्वेक्षण टीम को राज्य भर में बड़ी संख्या में विरोध का सामना करना पड़ रहा है। जब सर्वेक्षणकर्ता मतदाताओं से पूछते हैं कि वे बीजेपी से क्या उम्मीद करते हैं, तो अधिकतर लोग सीधे SIR और बीजेपी के खिलाफ नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। हाजीपुर के रमेश कुमार ने एक मीडिया हाउस से बातचीत में बताया, हमारा परिवार पिछले 20 सालों से यहां वोट डाल रहा है, अब हमसे हमारी नागरिकता का सबूत मांगा जा रहा है। क्या अब हम पर ही शक किया जाएगा? रमेश को टेलीफोन पर बीजेपी सर्वे टीम ने कॉल किया था, लेकिन जवाब में उन्हें गुस्से का सामना करना पड़ा।
आंतरिक सर्वे टीमों की रिपोर्ट ने बढ़ाई चिंता
पार्टी सूत्रों के अनुसार, सर्वेक्षण से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, हमने जिन 10 लोगों से बात की, उनमें से कम से कम 6-7 लोगों ने इस प्रक्रिया को लेकर बीजेपी के प्रति नाराजगी जताई। यह चुनाव से पहले अच्छे संकेत नहीं हैं। यह प्रतिक्रिया इस तथ्य को भी उजागर करती है कि मतदाता खुद को इस प्रक्रिया में संदेह के घेरे में देख रहे हैं। जबकि वे वर्षों से वोट डालते आ रहे हैं, अब उनसे फिर से दस्तावेज मांगने को लेकर वे अपमानित महसूस कर रहे हैं।
क्या है विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR)?
24 जून 2025 को भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार में SIR प्रक्रिया की शुरुआत की, जिसके तहत राज्य के लगभग 8 करोड़ मतदाताओं का घर-घर जाकर सत्यापन किया जा रहा है। सभी नागरिकों को अपने नाम, पते, और फोटो की पुष्टि करनी है। साथ ही उन्हें पहचान प्रमाण और निवास प्रमाण जैसे दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे।
विशेष बात यह है कि जिन लोगों के नाम 2003 की मतदाता सूची में शामिल नहीं थे, उन्हें अतिरिक्त दस्तावेज जमा करने होंगे। यही शर्त सबसे ज्यादा विवाद की जड़ बन गई है।
विपक्ष क्यों है हमलावर?
विपक्षी गठबंधन INDIA, जिसमें राजद, कांग्रेस और वामपंथी दल शामिल हैं, इस प्रक्रिया को राजनीतिक हेरफेर बता रहे हैं। राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा, यह मतदाता सूची से ऐसे लोगों के नाम हटाने की साजिश है जो भाजपा को वोट नहीं देते। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी सवाल उठाया कि चुनाव आयोग आखिर 2003 की मतदाता सूची को आधार क्यों बना रहा है, जबकि देश की जनसंख्या, प्रवासन और सामाजिक संरचना में बड़ा बदलाव आया है। विपक्ष को संदेह है कि यह प्रयास बिहार में बीजेपी के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनाने के लिए किया जा रहा है।
निर्वाचन आयोग ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया है। आयोग का कहना है कि यह एक मानक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को अधिक पारदर्शी और सटीक बनाना है। हालांकि, मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है, और अदालत ने निर्वाचन आयोग से प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने को कहा है। कोर्ट इस बात की भी जांच कर रही है कि क्या यह पुनरीक्षण किसी खास वर्ग या समुदाय को निशाना बना रहा है।