ICICI Prudential AMC के CIO एस. नरेन ने चेतावनी दी है कि अमेरिकी बाजारों में संभावित गिरावट से वैश्विक स्तर पर भारी असर पड़ सकता है। इसमें भारत भी अछूता नहीं रहेगा। उन्होंने मौजूदा एआई स्टॉक्स बबल की तुलना 1999 के डॉट-कॉम क्रैश से की।
AI Stocks Risk: आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी के मुख्य निवेश अधिकारी एस. नरेन ने कहा है कि वर्तमान में एआई स्टॉक्स के अत्यधिक ओवरवैल्यूएशन से वैश्विक बाजार पर खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि अमेरिकी बाजारों में तेज गिरावट आती है तो भारत समेत कोई भी बाजार इससे बच नहीं पाएगा। नरेन ने मौजूदा स्थिति की तुलना 1999 से 2002 के डॉट-कॉम बबल से करते हुए कहा कि जोखिम एआई में नहीं बल्कि एआई स्टॉक्स के खराब प्रदर्शन में है।
अमेरिका से उठेगा भूचाल तो भारत पर भी पड़ेगा असर
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी के मुख्य निवेश अधिकारी एस. नरेन ने चेतावनी दी है कि अमेरिकी बाजारों में किसी भी बड़ी गिरावट का असर भारत सहित दुनिया के सभी प्रमुख बाजारों पर देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि अमेरिकी एआई स्टॉक्स में ओवरवैल्यूएशन फिलहाल वैश्विक वित्तीय प्रणाली के लिए सबसे बड़ा जोखिम है।
नरेन ने यह भी जोड़ा कि अमेरिका का वैश्विक इंडेक्स में 60 प्रतिशत हिस्सा है। इसलिए अगर वहां बाजार गिरता है तो यह उम्मीद करना अवास्तविक होगा कि भारत या कोई अन्य देश इससे अप्रभावित रहेगा। उन्होंने इस स्थिति की तुलना 1999 के डॉट-कॉम बबल से करते हुए कहा कि असली खतरा एआई से नहीं बल्कि एआई स्टॉक्स के संभावित गिरावट से है।
डॉट-कॉम बबल जैसी स्थिति। हर बाजार है महंगा

नरेन ने कहा कि मौजूदा माहौल में सभी प्रमुख इक्विटी बाजार महंगे स्तर पर हैं जिससे जोखिम बढ़ गया है। उनके मुताबिक अगर अमेरिकी बाजारों में 20 प्रतिशत की गिरावट आती है तो वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी दबाव दिखेगा।
उन्होंने 1999 से 2001 के दौर का उदाहरण देते हुए कहा कि उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत होने के बावजूद घरेलू बाजारों में गिरावट आई थी। आज भी हालात कुछ ऐसे ही हैं। मजबूत फंडामेंटल्स के बावजूद भारत को अमेरिकी बाजारों की दिशा से अलग नहीं किया जा सकता।
घरेलू निवेशकों पर बढ़ा दबाव। विदेशी फंडिंग की कमी
भारत में फिलहाल घरेलू निवेशकों पर पूरा भार है। नरेन ने बताया कि पहले एफआई निवेशक स्थानीय निवेशकों की तुलना में दोगुना योगदान करते थे। लेकिन अब यह प्रवृत्ति उलट गई है। प्रमोटर्स और प्राइवेट इक्विटी की ओर से लगातार बिकवाली के बीच घरेलू निवेशकों को ही संतुलन बनाए रखना पड़ रहा है।
उन्होंने माना कि एसआईपी इनफ्लो ने अब तक बाजार को स्थिर रखा है। लेकिन केवल तीन महीने तक सप्लाई में कमी और एसआईपी फ्लो के स्थिर रहने से ही बाजार में अस्थायी तेजी संभव होगी। हालांकि दीर्घकालिक वृद्धि के लिए विदेशी पूंजी की वापसी आवश्यक है।
एफआईआई की वापसी से खुलेगा अगला ग्रोथ चैप्टर
भविष्य को लेकर नरेन का मानना है कि अगले 12 महीनों में विदेशी संस्थागत निवेशक एक बार फिर नेट खरीदार बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा होता है तो भारत की इक्विटी फ्लो जीडीपी के करीब तीन प्रतिशत तक पहुंच सकती है जिससे बाजारों को नई दिशा मिलेगी।
हालांकि उन्होंने आगाह किया कि वैश्विक स्तर पर मौजूदा अनिश्चितता के बीच किसी भी आशावाद को सीमित रखना चाहिए। फिलहाल भारत का प्रदर्शन भले ही बाकी बाजारों से कमजोर दिखे लेकिन यही अंडरपरफॉर्मेंस आने वाले समय में भारत के लिए एक संभावित लाभ साबित हो सकता है।













