सुपरस्टार और राजनेता कमल हासन एक बार फिर भाषाई राजनीति के केंद्र में हैं। उनकी हालिया फिल्म ‘ठग लाइफ’ के प्रमोशन के दौरान दिया गया बयान अब विवादों की आग में घी का काम कर रहा है।
एंटरटेनमेंट: मशहूर अभिनेता और राजनेता कमल हासन एक बार फिर अपने बेबाक बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं। हाल ही में अपनी नई फिल्म ‘ठग लाइफ’ के प्रमोशन के दौरान उन्होंने हिंदी भाषा को लेकर बड़ा बयान दिया है। कमल हासन ने कहा कि गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी थोपना उचित नहीं है और यह भाषाई विविधता पर हमला है। उन्होंने भारत में भाषाई स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए कहा कि हर व्यक्ति को अपनी मातृभाषा के साथ-साथ किसी भी वैश्विक भाषा को सीखने का अधिकार होना चाहिए।
हिंदी थोपने के खिलाफ कमल हासन का स्पष्ट रुख
एक साक्षात्कार में कमल हासन ने पीटीआई से बातचीत में साफ कहा कि हिंदी को थोपना गलत है। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी सीखना ठीक है, लेकिन इसे अनिवार्य करना या दूसरों की भाषाओं पर थोपना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। उन्होंने कहा, मैं तमिलनाडु, कर्नाटक, पंजाब और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के साथ खड़ा हूं, जहां लोग अपनी भाषाओं को लेकर गंभीर हैं।
उन्होंने आगे कहा कि अंग्रेजी एक व्यावहारिक विकल्प है, क्योंकि उसका एक ऐतिहासिक शैक्षणिक आधार है। भारत के पास अंग्रेजी शिक्षा का 350 साल पुराना इतिहास है। हिंदी थोपना लोगों को अशिक्षा की ओर धकेल सकता है। हासन ने यह भी कहा कि, अगर रोजगार के लिए हिंदी अनिवार्य कर दी जाए तो गैर-हिंदी भाषी युवाओं को भारी नुकसान होगा।
कन्नड़ पर दिए बयान से और बढ़ा विवाद
प्रमोशनल इवेंट में हासन ने कहा था कि, कन्नड़ भाषा तमिल से निकली है, जिसके बाद कर्नाटक में भारी विरोध शुरू हो गया। इस बयान को कन्नड़ अस्मिता पर हमला माना गया। कर्नाटक फिल्म चैंबर ऑफ कॉमर्स (KFCC) ने फिल्म पर बैन लगाने की मांग की और कमल से माफी मांगने को कहा। हासन ने माफी मांगने से इनकार कर दिया, जिससे मामला और उलझ गया।
कोर्ट में भी फंसा मामला
कमल की प्रोडक्शन कंपनी राजकमल फिल्म्स इंटरनेशनल ने कर्नाटक हाई कोर्ट में फिल्म की रिलीज़ के लिए सुरक्षा की मांग की, लेकिन कोर्ट ने उनके बयान की आलोचना करते हुए कहा: आप कमल हासन हों या कोई और, किसी को भी लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अधिकार नहीं है। हासन ने जवाब में कहा कि उन्हें नहीं लगता कि उनका बयान गलत था, इसलिए माफी मांगने का सवाल नहीं उठता।
यह कोई नई बात नहीं है। 2019 में जब गृह मंत्री अमित शाह ने हिंदी को राष्ट्र भाषा के तौर पर बढ़ावा देने की बात कही थी, तब भी कमल हासन ने विरोध किया था। उन्होंने कहा था, कोई शाह, सुल्तान या सम्राट हमारी भाषा और संस्कृति को खत्म नहीं कर सकता। 2022 में कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उन्होंने फिर कहा था कि हिंदी का विकास अन्य भाषाओं की कीमत पर नहीं होना चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी थी कि अगर हिंदी थोपने की कोशिश की गई तो यह जल्लीकट्टू आंदोलन से भी बड़ा विरोध खड़ा करेगा।
दक्षिण भारत में गहराता भाषाई असंतोष
कमल हासन की टिप्पणी ने एक बार फिर यह मुद्दा उभार दिया है कि दक्षिण भारत के राज्यों में हिंदी के प्रति स्वीकृति कम क्यों है। यह केवल भाषाई अस्मिता नहीं बल्कि संवैधानिक अधिकारों और सांस्कृतिक संरक्षण की भी बात है। तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में लोग अपनी मातृभाषा को लेकर काफी सजग हैं।