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मध्यप्रदेश को मिला चीतों का तीसरा नया घर: नौरादेही अभयारण्य में बसेंगे चीते, NTCA ने दी मंजूरी

मध्यप्रदेश को मिला चीतों का तीसरा नया घर: नौरादेही अभयारण्य में बसेंगे चीते, NTCA ने दी मंजूरी

कूनो और गांधीसागर के बाद अब मध्यप्रदेश में चीतों के लिए एक और संरक्षित घर तैयार हो रहा है। नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य, जो सागर, दमोह और नरसिंहपुर जिलों के बीच फैला हुआ है, को अब चीतों के पुनर्वास के लिए तीसरे वैकल्पिक केंद्र के रूप में चुना गया है। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) ने इस फैसले पर मुहर लगाई है और इसके लिए 30 वर्ग किलोमीटर का कोर एरिया भी तय कर दिया गया है।

नौरादेही क्यों?

नौरादेही अभयारण्य, जो लगभग 1200 वर्ग किलोमीटर में फैला है, में वन्यजीवों के लिए उपयुक्त पर्यावरण, खुला घास वाला इलाका, और जल स्रोत उपलब्ध हैं। यह इलाका प्राकृतिक रूप से बसा हुआ है, और यहां पहले से ही तेंदुए, जंगली सूअर, नीलगाय, चिंकारा जैसे शिकार प्रजातियों की भरमार है — जो चीतों के लिए ज़रूरी खाद्य श्रृंखला बनाते हैं।

इसके अलावा, नौरादेही की भौगोलिक स्थिति अपेक्षाकृत शांत है। यहाँ मानवीय हस्तक्षेप भी सीमित है, जिससे यह इलाका चीतों के लिए सुरक्षित और अनुकूल निवास बन सकता है।

चीतों के लिए तीसरा नया ठिकाना

एनटीसीए के विशेषज्ञों और मध्यप्रदेश वन विभाग की संयुक्त टीम ने हाल ही में इलाके का दौरा कर यहां चीतों के पुनर्वास की संभावनाओं का गहन आकलन किया। निरीक्षण के बाद तय किया गया कि पहले चरण में 30 वर्ग किमी को कोर एरिया के रूप में विकसित किया जाएगा, जहां चीतों को लाकर बसाया जाएगा। इस एरिया के चारों ओर बफर जोन भी बनेगा, ताकि उनके प्राकृतिक व्यवहार और शिकार के लिए पर्याप्त स्थान रहे।

अफ्रीकी क्षेत्रो से लाए थे चीते 

जैसा कि ज्ञात है, भारत में विलुप्त हो चुके चीतों को अफ्रीका के नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाकर दो चरणों में कूनो और गांधीसागर अभयारण्यों में बसाया गया। हालांकि कूनो में कुछ चीतों की मौत ने चिंता जरूर बढ़ाई थी, लेकिन गांधीसागर में अब तक चीतों की स्थिति संतोषजनक रही है। अब नौरादेही को तीसरे स्थान के रूप में विकसित करना इस पूरी परियोजना का महत्वपूर्ण रणनीतिक हिस्सा है। 

इससे यह सुनिश्चित होगा कि यदि किसी एक स्थान पर आबादी नियंत्रण से बाहर जाती है या अनुकूलन में कठिनाई आती है, तो दूसरे केंद्र उसे संभाल सकते हैं।

क्या होंगे अगले कदम?

  • पर्यावरणीय मूल्यांकन और स्थानीय जैव विविधता का अध्ययन।
  • वन्यजीव विशेषज्ञों की निगरानी में फेंसिंग और निगरानी तंत्र की स्थापना।
  • संभावित अफ्रीकी चीतों को वेटरनरी परीक्षण के बाद यहां शिफ्ट करना।
  • स्थानीय ग्रामीणों को परियोजना के प्रति संवेदनशील करना और समुदाय सहभागिता बढ़ाना।

स्थानीय विकास और पर्यावरण संरक्षण का संतुलन

इस परियोजना से न केवल वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि स्थानीय क्षेत्रों में पर्यटन और रोजगार के नए अवसर भी विकसित होंगे। चीतों की उपस्थिति से अभयारण्य को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलेगी और यह इलाका ‘वाइल्डलाइफ डेस्टिनेशन’ बन सकता है।

वन विशेषज्ञों का मानना है कि नौरादेही का चयन एक संतुलित और दूरदर्शी निर्णय है। इससे चीतों की पुनर्स्थापना में दीर्घकालिक सफलता मिल सकती है। यदि यहां की आबोहवा और पर्यावरण चीतों के लिए अनुकूल सिद्ध होता है, तो आने वाले वर्षों में यह केंद्र चीतों के प्रजनन और प्राकृतिक वास की दृष्टि से मील का पत्थर बन सकता है।

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