नवरात्रि भारत का प्रमुख शक्ति साधना पर्व है, जिसमें नौ दिनों तक मां दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। शास्त्रों के अनुसार इसका प्रारंभ राजा सूरथ और समाधि वैश्य से हुआ, जबकि शारदीय नवरात्रि की परंपरा भगवान श्रीराम ने शुरू की। आज यह पर्व शक्ति, विजय और आस्था का प्रतीक बन चुका है।
नवरात्रि महत्व: भारत में नवरात्रि केवल व्रत और उपवास का त्योहार नहीं है, बल्कि यह देवी दुर्गा की पूजा और उनके नौ स्वरूपों की साधना का प्रमुख अवसर है। प्राचीन काल में इसका आरंभ राजा सूरथ और समाधि वैश्य द्वारा किया गया था, जबकि शारदीय नवरात्रि की परंपरा भगवान श्रीराम ने युद्ध से पहले मां दुर्गा की आराधना के लिए स्थापित की। यह पर्व देशभर में शक्ति, विजय और आस्था के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है, जिससे लोगों में धार्मिक आस्था और आत्मशुद्धि की भावना जागृत होती है।
शारदीय नवरात्रि की परंपरा किसने शुरू की?
भारत के प्रमुख त्योहारों में शामिल नवरात्रि शक्ति साधना का पर्व माना जाता है। नौ दिनों तक मां दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। शास्त्रों और परंपराओं में इसके प्रारंभ का उल्लेख दो रूपों में मिलता है। मार्कंडेय पुराण में कहा गया है कि सर्वप्रथम नवरात्रि व्रत राजा सूरथ और समाधि वैश्य ने रखा, जबकि रामायण में वर्णन है कि शारदीय नवरात्रि की परंपरा भगवान श्रीराम ने स्थापित की।
राजा सूरथ और समाधि वैश्य की कथा
मार्कंडेय पुराण की देवी महात्म्य या दुर्गा सप्तशती में विस्तार से बताया गया है कि राजा सूरथ और समाधि वैश्य ने सबसे पहले नवरात्रि व्रत रखा। कथा के अनुसार, राजा सूरथ अपने शत्रुओं से हारकर राज्य से वंचित हो गए और वन में चले गए। वहीं समाधि नामक व्यापारी को भी परिवार ने त्याग दिया था। दोनों दुखी अवस्था में मेडा ऋषि के आश्रम पहुंचे और अपने दुखों का समाधान पूछा।
ऋषि ने उन्हें बताया कि सारी शक्तियां आदिशक्ति दुर्गा के अधीन हैं और यदि वे नवरात्र के नौ दिनों तक मां की उपासना करें, तो उनकी मनोकामनाएं पूरी होंगी। राजा सूरथ और समाधि ने पूरे नियम से नौ दिन उपवास और पूजा की। मां दुर्गा प्रसन्न हुईं और राजा को अगले जन्म में साम्राज्य तथा व्यापारी को मोक्ष का वरदान मिला। यही कारण है कि नवरात्रि व्रत का प्रारंभ राजा सूरथ और समाधि वैश्य से माना जाता है।
भगवान श्रीराम और शारदीय नवरात्र
रामायण और लोककथाओं में उल्लेख है कि जब श्रीराम रावण से युद्ध की तैयारी कर रहे थे, तब उन्होंने विजय की कामना से मां दुर्गा की पूजा का संकल्प लिया। उस समय शरद ऋतु थी, जबकि नवरात्रि पारंपरिक रूप से चैत्र मास में आता है। श्रीराम ने शास्त्रों से हटकर शरद ऋतु में देवी की आराधना की, जिसे आकाल बोधन कहा गया।
मां दुर्गा ने श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिया और इसके बाद रावण वध संभव हुआ। इसी घटना के बाद शारदीय नवरात्रि की परंपरा शुरू हुई, जो समय के साथ सबसे लोकप्रिय पर्व बन गई। शारदीय नवरात्रि आज पूरे भारत में शक्ति, विजय और देवी की कृपा का प्रतीक बन चुका है।
चैत्र और शारदीय नवरात्र
- चैत्र नवरात्रि: चैत्र नवरात्रि का उद्गम राजा सूरथ और समाधि वैश्य की साधना से जुड़ा है। यह पर्व वसंत ऋतु की शुरुआत और नए साल के आरंभ (हिंदू पंचांग के अनुसार) पर आता है। नौ दिनों तक मां दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है, और इसे आत्मशुद्धि, साधना और नए आरंभ का अवसर माना जाता है।
- शारदीय नवरात्रि: शारदीय नवरात्रि भगवान श्रीराम की पूजा और विजय की कथा से जुड़ा है। यह आश्विन मास में आता है और देशभर में सबसे धूमधाम से मनाया जाता है। शरद ऋतु में होने वाला यह पर्व शक्ति, विजय और देवी की कृपा का प्रतीक बन गया है।
दोनों पर्वों का मूल आधार आदिशक्ति मां दुर्गा की आराधना है। चैत्र नवरात्रि जहां साधना और आत्मशुद्धि का अवसर देती है, वहीं शारदीय नवरात्रि विजय और शक्ति का प्रतीक बनकर व्यापक रूप से लोकप्रिय हुई। यही वजह है कि आज शारदीय नवरात्रि को सबसे बड़े और महत्वपूर्ण शक्ति साधना पर्व के रूप में मनाया जाता है।