कुछ सपने ऐसे होते हैं जो अपनी अलग चमक और मेहनत से दुनिया को बदल देते हैं। चेन्नई के एक छोटे से गांव के रहने वाले जलंधर ने भी ऐसा ही कुछ कर दिखाया।
नई दिल्ली: मेहनत और धैर्य जब साथ हों, तो कोई भी मामूली पौधा भी सफलता की कहानी बन सकता है। चेन्नई के एक छोटे से गांव के रहने वाले जलंधर ने यही कर दिखाया। जिस पौधे को लोग बेकार समझकर नजरअंदाज कर रहे थे, उसी को जलंधर ने अपनाया और उसका नाम आज पूरे देश में चर्चित कर दिया है, एडेनियम ओबेसम, जिसे आम भाषा में ‘रेगिस्तानी गुलाब’ कहा जाता है।
रेगिस्तानी गुलाब से शुरू हुआ सफर
जलंधर का ताल्लुक तमिलनाडु के तिरुवल्लूर जिले के ईसनम कुप्पम गांव से है। 1986 में जब उन्होंने पहली बार एडेनियम ओबेसम को देखा, तो बाकी लोगों ने इसे नाकारा समझा। लेकिन जलंधर को उस पौधे में एक अनोखी खूबसूरती और संभावनाएं नजर आईं। उन्होंने न केवल पौधे उगाने शुरू किए, बल्कि उसकी देखभाल के लिए दुनिया भर के गुर सीखने का फैसला किया। वे थाईलैंड, ताइवान और वियतनाम गए, जहां उन्होंने ग्राफ्टिंग और हाइब्रिडाइजेशन जैसी उन्नत तकनीकें सीखी। इन तकनीकों से वे पौधों की नई और अनोखी किस्में तैयार करने में सफल हुए।
मेहनत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मेल
जलंधर ने अपने 15 एकड़ के फार्म पर अब तक 450 से अधिक किस्मों के रेगिस्तानी गुलाब उगाए हैं। ये किस्में रंग, आकार और प्रकृति में एक-दूसरे से अलग हैं। इनमें से कई किस्मों में एक ही पौधे पर तीन अलग-अलग रंगों के फूल खिलते हैं, जो देखने में बेहद मनमोहक होते हैं।
जलंधर के मुताबिक, इस पौधे की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे ज्यादा देखभाल या खाद-पानी की जरूरत नहीं होती। बस रोजाना अच्छी धूप मिले और हफ्ते में दो बार पानी देना काफी होता है। इसकी मजबूत प्रकृति की वजह से यह पौधा रेगिस्तान जैसे सूखे और गर्म मौसम में भी आसानी से पनपता रहता है। इसी वजह से इसे ‘रेगिस्तानी गुलाब’ कहा जाता है।
कारोबार में बड़ा बदलाव
जलंधर के प्रयासों की सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके पौधों की कीमतें कुछ सौ रुपये से लेकर करोड़ों तक पहुंचती हैं। कुछ खास किस्मों की जड़ों की कीमत 12 लाख रुपये तक होती है। यह पौधे न सिर्फ भारत के अंदर, बल्कि दुबई, जमैका, मॉरीशस जैसे देशों तक निर्यात किए जाते हैं।
2015 में ही जलंधर ने दुबई को अकेले एक लाख से अधिक पौधे भेजे थे। उनकी मेहनत का नतीजा यह है कि आज उनका कारोबार करीब 60 लाख रुपये सालाना तक पहुंच चुका है।
सफलता की वजह – धैर्य और नया नजरिया
जलंधर की कहानी हमें ये सिखाती है कि सफलता सिर्फ संसाधनों पर नहीं, बल्कि सही सोच, धैर्य और कड़ी मेहनत पर निर्भर करती है। जहां कई लोग रेगिस्तानी गुलाब को बेकार समझते थे, वहीं जलंधर ने उसमें छुपी संभावनाओं को पहचान कर उसे नई बुलंदियों तक पहुंचा दिया। ग्राफ्टिंग और हाइब्रिडाइजेशन जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके, उन्होंने न केवल नई पौधों की किस्में तैयार कीं, बल्कि उनकी मजबूती और गुणवत्ता को भी बेहतर बनाया। उनकी मेहनत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने मिलकर उनके व्यवसाय की सफलता की नींव रखी।
समाज और पर्यावरण के लिए योगदान
रेगिस्तानी गुलाब की खेती न सिर्फ आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक है। यह पौधा कम पानी में भी बढ़ता है, जिससे जल संरक्षण में मदद मिलती है। इसके साथ ही यह सूखे क्षेत्रों में हरा-भरा माहौल बनाता है और मिट्टी की गुणवत्ता सुधारता है। जलंधर ने इस पौधे की खेती को बढ़ावा देकर न केवल अपने परिवार की जिंदगी बदली है, बल्कि अपने गांव और आसपास के इलाके में भी रोजगार के नए अवसर पैदा किए हैं। आज उनकी सफलता की कहानी छोटे किसानों और उद्यमियों के लिए प्रेरणा बन चुकी है।
जलंधर का लक्ष्य है कि वे अपनी किस्मों को और अधिक विकसित करें और नए बाजारों में अपनी पैठ बनाएं। इसके लिए वे लगातार नए शोध और तकनीकों को सीखने में लगे हुए हैं। उनका मानना है कि पौधों की विविधता और गुणवत्ता पर ध्यान देकर वे अपने कारोबार को और बड़ा कर सकते हैं। जलंधर का यह भी कहना है कि जो लोग खेती में लगे हैं, वे धैर्य और लगन से काम करें, क्योंकि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। मेहनत का फल जरूर मिलता है।