Gig Workers: कंपनियों को गिग वर्कर्स के लिए सोशल सिक्योरिटी और वेलफेयर फंड में हर तिमाही योगदान करने का निर्देश दिया जा सकता है। इस पर अगले हफ्ते निर्णय लिया जा सकता है।
नई दिल्ली: फूडटेक और ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियों ने लाखों लोगों को डिलिवरी पार्टनर के रूप में रोजगार प्रदान किया है, जिन्हें गिग वर्कर्स के नाम से जाना जाता है। इसमें स्विगी, जोमाटो, अमेजन, फ्लिपकार्ट, उबर, ओला और मीशो जैसी प्रमुख कंपनियां शामिल हैं। अब इन कंपनियों से गिग वर्कर्स के लिए वेलफेयर फीस वसूलने की योजना बनाई जा रही है। यदि यह फैसला लागू होता है, तो कंपनियां इस फीस का भार कस्टमर्स पर डाल सकती हैं।
इन प्लेटफॉर्म्स पर वेलफेयर फीस 1 से 2 फीसदी तक हो सकती है
कर्नाटक में गिग वर्कर्स के लिए वेलफेयर फीस की तैयारी की जा रही है। राज्य सरकार ने गिग वर्कर्स (सोशल सिक्योरिटी एंड वेलफेयर) बिल, 2024 का मसौदा तैयार किया है। सूत्रों के अनुसार, सरकार इन एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म्स पर 1 से 2 फीसदी की फीस लगाने की योजना बना रही है।
अगले हफ्ते होने वाली समिति की बैठक में इस पर निर्णय लिया जा सकता है। इस नियम का असर उन सभी कंपनियों पर पड़ेगा जहां गिग वर्कर्स काम करते हैं। अभी तक किसी भी कंपनी ने इस पर टिप्पणी नहीं की है।
गिग वर्कर्स के लिए बनाए जाएंगे विशेष फंड
गिग वर्कर्स के लिए कर्नाटक सरकार एक विशेष फंड बनाने की योजना बना रही है, जिसे "कर्नाटक गिग वर्कर्स सोशल सिक्योरिटी एंड वेलफेयर फंड" नाम दिया जाएगा।
इस फंड के लिए सभी एग्रीगेटर कंपनियों से वेलफेयर फीस वसूली जाएगी। ड्राफ्ट बिल के अनुसार, हर कंपनी को तिमाही के अंत में यह फीस सरकार को चुकानी होगी। यह कदम गिग वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में उठाया जा रहा है।
स्टार्टअप्स ने उठाई आपत्ति
विभिन्न स्टार्टअप और यूनिकॉर्न कंपनियों के एक समूह ने इस बिल के खिलाफ अपनी चिंताएँ व्यक्त की हैं। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि ऐसा कानून "ईज ऑफ डूइंग बिजनेस" की धारणा को प्रभावित करेगा और स्टार्टअप इकोनॉमी पर अनावश्यक दबाव डालेगा, जिससे आर्थिक बोझ बढ़ सकता है।
इस समूह ने अपने विरोध को औपचारिक रूप से सीआईआई (CII), नैसकॉम (Nasscom) और आईएएमएआई (IAMAI) के माध्यम से सरकार के समक्ष रखा है।