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रिटायरमेंट प्लानिंग में जागरूकता की भारी कमी: सर्वे में खुली चौंकाने वाली सच्चाई

रिटायरमेंट प्लानिंग में जागरूकता की भारी कमी: सर्वे में खुली चौंकाने वाली सच्चाई

भारत में अधिकांश लोग अब भी रिटायरमेंट की तैयारी में विविधता नहीं अपना रहे हैं। ग्रांट थॉर्नटन भारत के एक हालिया सर्वे में सामने आया है कि 83% लोग पारंपरिक योजनाओं जैसे EPF, ग्रेच्युटी और NPS पर निर्भर हैं। 

बिजनेस न्यूज़: भारत में रिटायरमेंट की योजना बनाना आज भी कई लोगों के लिए चुनौती बना हुआ है। वित्तीय सुरक्षा के लिए जरूरी कदम न उठाने के कारण न केवल भविष्य की अनिश्चितता बढ़ रही है, बल्कि आर्थिक दबाव भी बढ़ता जा रहा है। हाल ही में ग्रांट थॉर्नटन भारत द्वारा किए गए एक सर्वे ने यह तथ्य उजागर किया है कि देश में रिटायरमेंट प्लानिंग में भारी कमी है। 

सर्वे में पता चला कि 83% भारतीय अभी भी केवल पारंपरिक निवेश योजनाओं जैसे EPF, ग्रेच्युटी और NPS पर निर्भर हैं। वहीं, लगभग आधे से ज्यादा लोग ऐसी पेंशन की उम्मीद करते हैं जो उनकी वास्तविक आर्थिक जरूरतों को पूरा नहीं कर पाएगी।

पारंपरिक योजनाओं पर निर्भरता के कारण रिटायरमेंट की तैयारी अधूरी

ग्रांट थॉर्नटन के इस सर्वे में पाया गया कि भारत के अधिकांश कर्मचारी और आम जनता अपने रिटायरमेंट के लिए सिर्फ कुछ सीमित विकल्पों का ही सहारा ले रहे हैं। EPF, ग्रेच्युटी और NPS जैसी योजनाएं वित्तीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण तो हैं, लेकिन इन पर पूरी तरह निर्भर रहना जोखिम भरा भी हो सकता है। सर्वे में 83% प्रतिभागियों ने इन्हीं योजनाओं को अपना मुख्य निवेश विकल्प बताया।

विशेषज्ञों के अनुसार, निवेश की विविधता न होने के कारण दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता खतरे में पड़ सकती है। अगर केवल एक या दो स्रोतों पर निर्भरता बनी रहेगी, तो बाजार के उतार-चढ़ाव या नीतिगत बदलाव से आर्थिक सुरक्षा पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में रिटायरमेंट के लिए नई और विविध निवेश योजनाओं को अपनाना आवश्यक हो जाता है।

पेंशन की असंभव उम्मीदें और वित्तीय जागरूकता का अभाव

सर्वे में यह भी सामने आया कि 55% लोग यह मानते हैं कि रिटायरमेंट के बाद उन्हें हर महीने ₹1 लाख से अधिक पेंशन मिलेगी। हालांकि, इस लक्ष्य के अनुरूप निवेश कर पा रहे हैं सिर्फ 11% लोग ही। यह आंकड़ा साफ दर्शाता है कि अधिकतर लोगों के सपने और उनकी वित्तीय वास्तविकता के बीच एक बड़ा अंतर है।

वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि इस असंतुलन का मुख्य कारण सही वित्तीय योजना और जागरूकता का अभाव है। बिना सही योजना के पेंशन की उम्मीद रखना किसी धोखे से कम नहीं। इसी कारण लोगों को सलाह दी जाती है कि वे अपने रिटायरमेंट फंड को विभिन्न माध्यमों से बढ़ाएं और नियमित रूप से इसकी समीक्षा करते रहें।

निवेश में कम योगदान और बजट की चुनौतियां

सर्वे में यह तथ्य भी सामने आया कि लगभग 74% लोग अपनी मासिक आय का सिर्फ 1% से 15% तक ही रिटायरमेंट फंड में निवेश कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि अधिकांश लोग अपनी बचत को प्राथमिकता नहीं दे पा रहे हैं। आर्थिक प्रतिबंध, दैनिक खर्च और वित्तीय प्राथमिकताएं इस कमी के मुख्य कारण हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, रिटायरमेंट फंड में कम योगदान से भविष्य में गंभीर आर्थिक संकट हो सकता है, खासकर तब जब जीवन प्रत्याशा बढ़ रही हो और मेडिकल खर्चे भी महंगे हो रहे हों। इसलिए जितना जल्दी हो सके निवेश की शुरुआत करनी चाहिए और हर साल अपनी बचत बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए।

युवाओं में निवेश के प्रति बदलता नजरिया

सर्वे में यह भी पाया गया कि युवाओं के बीच निवेश के प्रति सोच बदल रही है। 25 साल से कम उम्र के लगभग 31% युवा अधिक जोखिम वाले निवेश विकल्पों को अपनाने के लिए तैयार हैं, ताकि वे उच्च रिटर्न पा सकें। यह एक सकारात्मक संकेत है क्योंकि युवा वर्ग अब लंबे समय तक सुरक्षित और लाभकारी निवेश करना चाहता है।

साथ ही, युवाओं की नई सोच यह भी दर्शाती है कि वे वर्क-लाइफ बैलेंस और जल्दी रिटायरमेंट को अधिक महत्व दे रहे हैं। सर्वे के अनुसार, 43% युवा 45 से 55 वर्ष की उम्र में रिटायर होना चाहते हैं, जबकि कुल मिलाकर 56% लोग 55 से 65 वर्ष के बीच रिटायरमेंट की योजना बना रहे हैं।

पेंशन कैलकुलेशन को लेकर जागरूकता का अभाव

सर्वे ने यह भी उजागर किया कि पेंशन की गणना और उसके फॉर्मूले को लेकर लोगों में जागरूकता कम है। 52% प्रतिभागियों को पेंशन कैलकुलेशन की आंशिक जानकारी है, जबकि 30% लोगों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। यह स्पष्ट करता है कि न केवल निवेश की दिशा में बल्कि पेंशन योजना की समझ को भी बेहतर करने की जरूरत है।

विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

वित्तीय सलाहकारों का कहना है कि रिटायरमेंट प्लानिंग में विविधता लाना जरूरी है। केवल EPF, ग्रेच्युटी और NPS पर निर्भर रहना सही रणनीति नहीं। म्यूचुअल फंड, शेयर बाजार, पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF), रियल एस्टेट, और अन्य वैकल्पिक निवेश माध्यमों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

साथ ही, नियमित वित्तीय शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों से आम जनता को सही निवेश के बारे में मार्गदर्शन मिलना चाहिए, ताकि वे अपने वित्तीय लक्ष्य को सही ढंग से समझकर उसका पूरा लाभ उठा सकें।

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