ताज महोत्सव में देश की पहली महिला ट्रांसजेंडर नृत्यांगना देविका देवेंद्र ने मुक्ताकाशीय मंच पर कत्थक की प्रस्तुति दी। जिसे देखकर हर कोई उनकी प्रतिभा का दीवाना हो गया। दर्शकों ने तालियां बजाईं। दर्शकों का प्यार और उत्साहवर्धन पाकर देविका भी सुनहरी यादें संजोकर ले गईं।
हालांकि, देविका की प्रतिभा की तारीफ करने वाले लोगों में से कम लोगों को ही पता होगा कि उनको ट्रांसजेंडर नृत्यांगना बनने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। देविका ने बताया कि कैसे वह इस मुकाम तक पहुंची।
आइए जानते हैं देविका के पूरे सफर की कहानी, उन्हीं की जुबानी...
कत्थक सीखने के लिए घर छोड़ा
देविका ने बताया कि वह मूल रूप से राजस्थान के धौलपुर की रहने वाली हैं। वर्तमान में देश की पहली महिला ट्रांसजेंडर कथक नृत्यांगना हैं। साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार में ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड की सदस्य भी हैं। वह कहती हैं कि जन्म के समय ट्रांसजेंडर की पहचान नहीं हो पाती है। इसके लिए 14 साल तक का समय लगता है। तब आप अपने जेंडर को पहचान पाते हैं, शरीर को जान पाते हैं। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
घर में उनकी मां नृत्य जानती थीं। जब उन्हें पता चला कि देविका एक ट्रांसजेंडर हैं। पुरुष के शरीर में एक महिला हैं। तब उन्हें कई सामाजिक बुराइयों का सामना करना पड़ा। उनकी बचपन से ही नृत्य में गहरी रुचि थी, लेकिन घरवालों की शर्त थी कि वह अपनी आइडेंटिटी को छुपा कर रखेंगी।
ये शर्त देविका को बिल्कुल भी मंजूर नहीं थी
मगर, यह शर्त देविका को बिल्कुल भी मंजूर नहीं थी। इसके बाद उन्होंने घर छोड़ दिया और दिल्ली पहुंची गईं। वहां पर कोई भी परिचित नहीं था। दिल्ली में कई रात सड़कों पर बितानी पड़ी। इतना ही नहीं, पेट भरने के लिए भीख भी मांगनी पड़ी। एक समय तो ऐसा भी आया, जब उन्हें वेश्यावृत्ति तक के बारे में सोचना पड़ा।
वह बहुत मुश्किल समय था। मगर, धीरे-धीरे समय बीत गया। उन्होंने खुद को पहचाना। तय किया कि उनका जन्म भीख मांग कर खाने के लिए नहीं हुआ है। उन्होंने पढ़-लिखकर अपना मुकाम हासिल करने की ठानी।
ऐसे शुरू हुआ कत्थक का सफर
देविका ने दिल्ली के फ्लोरेंस नाइटेंगल स्कूल में दाखिला लिया। स्कूल में ही एक बार कत्थक की कार्यशाला हुई। इसमें उन्होंने हिस्सा लिया। वहां से उनका कत्थक का सफर शुरू हुआ। दिल्ली में रहते-रहते उनका काफी वक्त बीत गया था।
एक दिन जब वह सड़कों पर कत्थक की मुद्राएं भीख मांगने के दौरान कर रही थी, तब उन पर लखनऊ घराने के पंडित लच्छू महाराज के शिष्य कत्थक गुरु कपिला राज की नजर पड़ी। कपिला राज ने उन्हें लखनऊ आने का न्योता दिया। इसके बाद देविका कपिला राजगुरु के पास लखनऊ पहुंचीं और कत्थक की बारीकियां सीखीं। अब वह पहली ट्रांसजेंडर कथक नृत्यांगना हैं।
बस ट्रांसजेंडर को लोग इंसान समझें
देविका एलजीबीटी, ट्रांसजेंडर और किन्नर समुदाय से जुड़े मिथकों को दूर करने का प्रयास कर रही हैं। उनका कहना है कि समाज में ज्यादा कुछ नहीं चाहिए। केवल और केवल ट्रांसजेंडर को लोग इंसान के रूप में अपना लें। लोग आज भी ट्रांसजेंडर और एलजीबीटी समुदाय को अछूत के रूप में देखते हैं। उन्हें शारीरिक तौर से विकलांग समझते हैं। उन्हें उनके अधिकार नहीं दिए जाते हैं।
मजबूरन भिक्षावृत्ति और वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है। समाज की एक सोच बनी हुई है कि किन्नर समाज के लोग चौराहों पर ताली पीटते और पैसा ऐंठते हैं। लेकिन, ऐसा नहीं है। हम भी इंसान हैं और हमें भी समाज में रहने का अधिकार है। हमें भी मौका मिलना चाहिए।
उन्होंने प्रदेश सरकार का भी धन्यवाद दिया कि पहली बार किसी सरकार ने ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड की स्थापना की है और वह उस बोर्ड की सदस्य हैं। समाज में धीरे-धीरे ही सही, लेकिन परिवर्तन जरूर आएगा।