Mithun Chakraborty को राष्ट्रीय पुरस्कार और पद्म भूषण के बाद अब प्रतिष्ठित दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा जाने वाला है। उन्हें 8 अक्टूबर को इस अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। मिथुन ने अपने करियर में पांच दशकों तक फिल्मों में काम किया है और इस दौरान उन्होंने कई उतार-चढ़ाव का सामना किया। आइए, उनकी सिनेमैटिक जर्नी पर एक नजर डालते हैं कि वह फिल्मों की दुनिया में कैसे आए और उनकी सफलता की कहानी क्या रही।
नई दिल्ली: मिथुन चक्रवर्ती हिंदी सिनेमा का वो हीरा हैं जिन्हें तराशने में सालों लग गए। कभी रंग के चलते रिजेक्ट हुए, कभी साजिशों के जाल में फंसे, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अपनी प्रतिभा और लगन से उन्होंने खुद को साबित किया और इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाई। उनका सफर आसान नहीं था। शुरुआती दौर में कई बार उन्हें रिजेक्ट किया गया, उनकी त्वचा का रंग एक बाधा बन गया।
लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने अभिनय कौशल से सभी को प्रभावित किया। उनके असाधारण डांस मूव्स और एक्शन सीक्वेंस ने उन्हें एक स्टार बना दिया। मिथुन चक्रवर्ती सिर्फ एक अभिनेता नहीं हैं, बल्कि एक प्रेरणा हैं। उनकी सफलता का रहस्य उनकी दृढ़ता, लगन और हार न मानने की भावना है।
एक्टर बनने के बाद भी नक्सली का लेबल नहीं छोड़ा
मिथुन चक्रवर्ती: नक्सली अतीत का दाग मिथुन चक्रवर्ती ने एक हालिया साक्षात्कार में पत्रकार अली पीटर जॉन के साथ अपने नक्सली अतीत के बारे में खुलकर बात की। उन्होंने बताया कि कैसे इस पहचान ने उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। "कलकत्ता में नक्सली आंदोलन में मेरी भागीदारी और चारु मजूमदार के साथ मेरे रिश्ते के बारे में सब जानते थे।
" मिथुन ने कहा, "मेरे परिवार में एक दुखद घटना के बाद मैंने आंदोलन छोड़ दिया था, लेकिन नक्सली होने का लेबल मेरे साथ हर जगह रहा - पुणे में FTII में, और जब मैं सत्तर के दशक के अंत में बॉम्बे आया था।" माना जाता है कि मिथुन ने एक दुर्घटना में अपने भाई की मौत के बाद नक्सल ग्रुप छोड़ दिया और अभिनय की ओर रुख किया। हालांकि, उनके नक्सली अतीत का दाग उनके लिए हमेशा बना रहा, जिससे उन्हें इंडस्ट्री में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
पहली फिल्म से मिला राष्ट्रीय पुरस्कार
एक इंटरव्यू में मिथुन चक्रवर्ती ने यह खुलासा किया था कि उनके सांवले रंग के कारण लोग उन्हें ताने मारते थे और कहते थे कि वह हीरो नहीं बन सकते। हालांकि, इस अभिनेता ने लोगों के इस भ्रम को तोड़ते हुए पीरियड ड्रामा फिल्म 'मृगया' से अपने करियर की शुरुआत की। यह फिल्म सफल रही और मिथुन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके बाद उन्होंने फिल्मों में रील लाइफ नक्सली की भूमिका निभाई। नक्सलवाद पर आधारित पहली फिल्म 'द नक्सली' में मिथुन ने अद्भुत प्रदर्शन किया था।
क्या मिथुन के खिलाफ थी साजिश?
धीरे-धीरे मिथुन चक्रवर्ती का फिल्मी जगत पर राज जमाने लगा, लेकिन यह रास्ता आसान नहीं था। जब वह लोकप्रिय होने लगे, तब जलन से भरे बड़े-बड़े सितारों ने अभिनेत्रियों को धमकी दी कि अगर वे मिथुन के साथ काम करेंगी, तो वे उनके साथ काम करना बंद कर देंगे। एक बार खुद मिथुन ने 'सा रे गा मा पा' के मंच पर इस बात का खुलासा किया था। हालांकि, जीनत अमान वह अभिनेत्री थीं, जिन्होंने किसी की परवाह नहीं की और मिथुन के साथ 'तकदीर' फिल्म की। इसके बाद मिथुन का करियर नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया और वह बॉलीवुड के डिस्को डांसर के रूप में प्रसिद्ध हो गए।
मिथुन चक्रवर्ती को प्राप्त होगा दादा साहेब फाल्के पुरस्कार
लगभग पांच दशकों तक फिल्म इंडस्ट्री में अपने योगदान के बाद, आज मिथुन चक्रवर्ती को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से बताया कि मिथुन चक्रवर्ती को 70वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से नवाजा जाएगा, जो 8 अक्टूबर को दिल्ली में आयोजित किया जाएगा।