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'ज्वेल थीफ: द हाइस्ट बिगिन्स' रिव्यू, सैफ अली खान और जयदीप की थ्रिलर में क्या है नया?

'ज्वेल थीफ: द हाइस्ट बिगिन्स' रिव्यू, सैफ अली खान और जयदीप की थ्रिलर में क्या है नया?
अंतिम अपडेट: 4 घंटा पहले

ज्वेल थीफ: द हाइस्ट बिगिन्स की कहानी, जैसा कि नाम से ही साफ है, एक हीरे की चोरी के इर्द-गिर्द घूमती है। लूट की कहानी को लेकर जब तक कोई नई ट्विस्ट या आकर्षक तत्व नहीं होता, तब तक यह विषय थोड़ी साधारण सी लग सकती है।

Jewel Thief Review: नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म 'ज्वेल थीफ: द हाइस्ट बिगिन्स' एक ऐसी फिल्म है जो हीरे की चोरी के इर्द-गिर्द घूमती है। यह फिल्म एक साधारण सी कहानी पर आधारित है, जो सिर्फ चोरी और उसे लेकर किए गए संघर्षों की साजिश में उलझी हुई दिखती है। फिल्म में सैफ अली खान, जयदीप अहलावत और निकिता दत्ता प्रमुख भूमिका में हैं, लेकिन क्या यह फिल्म अपने शीर्षक और कास्ट के हिसाब से दर्शकों को आकर्षित कर पाती है? क्या यह लूट की साधारण कहानी में कुछ नया रोमांच जोड़ पाई है? आइए जानते हैं इस फिल्म की समीक्षा।

कहानी का पंखा: किस्से की हवा कम, लेकिन अभिनय की गरमी बरकरार

'ज्वेल थीफ: द हाइस्ट बिगिन्स' एक ऐसी फिल्म है, जो एक साधारण हीरे की चोरी की कहानी को नया मोड़ देने की कोशिश करती है, लेकिन कई पहलुओं में यह उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती। फिल्म का प्लॉट मुंबई में सेट है, जहां गैंगस्टर और बिजनेसमैन राजन औलख (जयदीप अहलावत) एक कीमती हीरे की चोरी की योजना बनाता है। 

यह हीरा दक्षिण अफ्रीका से मुंबई प्रदर्शनी के लिए लाया जा रहा है, और राजन इसे हथियाने के लिए अपने पुराने साथी रेहान राय (सैफ अली खान) को बुलाता है। रेहान, जो अब बुडापेस्ट में रह रहा है, अपने पिता के साथ हुए एक हादसे के कारण मजबूर होकर इस चोरी में शामिल होता है। उसके लिए यह सिर्फ एक डील नहीं, बल्कि एक व्यक्तिगत प्रतिशोध का मामला बन जाता है। 

फिल्म में राजन की पत्नी फराह (निकिता दत्ता) के साथ उसकी बढ़ती नजदीकी भी एक अहम मोड़ बनती है, जो एक ओर ट्विस्ट का निर्माण करती है। फिल्म का मुख्य आकर्षण इसके लूट के सीन और ट्विस्ट एंड टर्न्स होने चाहिए थे, लेकिन फिल्म में इन दोनों ही पहलुओं की कमी महसूस होती है। कहानी में कहीं न कहीं वो कनेक्शन और रोमांच नहीं दिखता, जो ऐसी फिल्मों से दर्शकों की अपेक्षाएँ होती हैं।

अभिनय: सैफ अली खान और जयदीप अहलावत 

सैफ अली खान और जयदीप अहलावत दोनों ही मजबूत अभिनेता हैं, लेकिन इस फिल्म में इनकी भूमिकाएं कमजोर नजर आती हैं। सैफ अली खान का किरदार रेहान एक चतुर और चालाक चोर का है, जो खुद को एक हिम्मती और समझदार शख्स के रूप में प्रस्तुत करता है, लेकिन उनका अभिनय उतना प्रभावी नहीं हो पाता। कहीं न कहीं यह लगता है कि सैफ ने अपनी पुरानी फिल्मों के कुछ किरदारों का ही पुनर्निर्माण किया है, जो उन्हें इस रोल में एक नई पहचान नहीं दे पाता।

जयदीप अहलावत ने इस फिल्म में गैंगस्टर राजन का किरदार निभाया है, जो एक खौफनाक व्यक्ति के रूप में उभरता है। हालांकि उनका अभिनय अच्छा है, लेकिन फिल्म की स्क्रिप्ट और उनके किरदार की गहराई उन्हें पूरी तरह से प्रभावी होने से रोकती है। जयदीप का किरदार किसी और फिल्म में बहुत दमदार हो सकता था, लेकिन यहां पर वे बेमजा नजर आते हैं।

निकिता दत्ता का किरदार फराह काफी ग्लैमरस और आकर्षक है। वह अपने किरदार के साथ न्याय करती हैं, और फिल्म में उनकी उपस्थिति को अहम माना जा सकता है। उनका अभिनय और व्यक्तित्व फिल्म में एक ताजगी लाते हैं, हालांकि वह भी पूरी तरह से चमत्कारी प्रभाव नहीं छोड़ पातीं।

डायलॉग्स और निर्देशन

कूकी गुलाटी और राबी ग्रेवाल का निर्देशन इस फिल्म के प्रमुख कमियों में से एक है। जहां एक लूट की फिल्म में ताजगी, रोमांच और नयापन चाहिए होता है, वहीं इस फिल्म में सब कुछ काफी सामान्य और अपेक्षित तरीके से होता है। संवाद भी उबाऊ और अप्रभावी होते हैं, जो फिल्म को तेज गति से आगे बढ़ाने में नाकाम रहते हैं। एक्शन और चोरी के सीन भी ऐसे हैं, जो किसी गहरी धारा के बजाय एक साधारण सी लहर की तरह महसूस होते हैं।

फिल्म में पुलिस और चोर के बीच के खेल को प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है, लेकिन यह भी अपेक्षित स्तर पर रोमांचक नहीं बन पाया। पुलिस अधिकारी विक्रम पटेल (कुणाल कपूर) के किरदार में कोई खास गहराई या उत्साह नहीं है, और वह फिल्म में सिर्फ एक पारंपरिक पुलिस वाले के रूप में नजर आते हैं। यही हाल बाकी पात्रों का भी है, जो किसी प्रकार के संजीवनी तत्व की कमी महसूस कराते हैं।

संगीत और समापन: बिना किसी गंभीर प्रभाव के

फिल्म का संगीत भी बहुत साधारण है, और यह फिल्म की कहानी या किरदारों की भावनाओं के साथ जुड़ता नहीं है। गीतों और बैकग्राउंड म्यूजिक का प्रभाव कम है, जो फिल्म के रोमांचक पलों को ऊंचा कर सके। इसके अलावा, फिल्म के अंत में सीक्वल का संकेत दिया गया है, लेकिन यही अच्छा होता कि यह फिल्म पूर्ण रूप से खत्म होती और कोई भी अधूरापन महसूस नहीं होता।

अंतिम विचार: क्या देखें या न देखें?

'ज्वेल थीफ: द हाइस्ट बिगिन्स' एक ऐसी फिल्म है, जो अपने नाम के हिसाब से दर्शकों से ज्यादा उम्मीदें जगाती है, लेकिन इन उम्मीदों पर खरा उतरने में यह पूरी तरह से विफल रहती है। फिल्म का प्लॉट साधारण और पुराने बुनियादी फॉर्मूले पर आधारित है, जिसमें न तो कुछ नया रोमांच है, न ही संवादों में कोई गहराई है। 

सैफ अली खान और जयदीप अहलावत जैसे अभिनेता भी अपनी भूमिकाओं में ढलने में नाकाम रहते हैं। फिल्म का निर्देशन और संगीत भी कमजोर है, जो पूरी कहानी को प्रभावित करते हैं।

यदि आप पुराने घिसे-पिटे चोर और पुलिस के खेल की कहानी में कोई नया ट्विस्ट देखने की उम्मीद कर रहे हैं, तो यह फिल्म आपके लिए नहीं है। हालांकि, अगर आप बिना किसी ज्यादा उम्मीद के एक हल्की-फुल्की फिल्म देखना चाहते हैं, तो इसे देख सकते हैं, लेकिन बहुत कुछ नया नहीं मिलेगा।

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