UP Crime News: नेमप्लेट विवाद पर यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने दिया झटका, फैसले में कहां - 'दुकान पर मालिकों को नाम लिखना जुरूरी नहीं हैं'

UP Crime News: नेमप्लेट विवाद पर यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने दिया झटका, फैसले में कहां - 'दुकान पर मालिकों को नाम लिखना जुरूरी नहीं हैं'
Last Updated: 22 जुलाई 2024

कांवड़ यात्रा मार्ग पर होटलों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद कोर्ट ने यूपी प्रशासन के फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या यह प्रेस स्टेटमेंट था या औपचारिक आदेश था कि इन्हें प्रदर्शित किया जाना चाहिए।

उत्तर प्रदेश: कांवड़ यात्रा मार्ग पर होटलों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद कोर्ट ने यूपी प्रशासन के फैसले पर रोक लगा दी है। मुजफ्फरनगर पुलिस द्वारा कांवड़ यात्रा मार्ग पर सभी भोजनालयों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देश के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने शुक्रवार को इसे पूरे राज्य में लागू कर दिया है। इस सप्ताह की शुरुआत में मुजफ्फरनगर पुलिस द्वारा आदेश जारी किया गया था कि कांवड़ यात्रा वाले मार्ग पर दुकानदार अपनी दुकान पर नाम प्लेट लगाएं ताकि कावड़ियों को पता चल सके कि दुकानदार का नाम क्या हैं।

कोर्ट ने सुनवाई के बाद तीन राज्यों को भेजा नोटिस

कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहां गया कि कसी भी दुकानदार को अपनी पहचान बताने की कोई जरुरत नहीं है। दुकान मालिकों को अपना नाम लिखना आवश्यक नहीं है। दुकानदारों के पास उपलब्ध खाने के प्रकार की जानकारी देने की आवश्यकता है। इसका मतलब है कि दुकान पर सिर्फ यह लिखा होना आवश्यक हैं कि यहां मांसाहारी खाना मिल रहा है या फिर शाकाहारी खाना। कोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस थमाया हैं।

कोर्ट ने एनजीओ एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी आदेश के खिलाफ याचिका दायर की है, जिसे अभी सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है। जस्टिस हृषिकेश राय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने मामले की सुनवाई की हैं।

आदेश मनवाने के लिए पुलिस ने की सख्ती

* सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पूछा कि क्या यह प्रेस स्टेटमेंट सही था या औपचारिक आदेश उन्होंने प्रदर्शित किया? याचिकाकर्ताओं के वकील ने इस बात का जवाब दिया कि पहले यह एक प्रेस स्टेटमेंट था, लेकिन फिर लोगों में आक्रोश का कारण बन गया था। वे कहते हैं कि यह स्वैच्छिक है, लेकिन इसे सख्ती से लागू करना गलत हैं।

* वकील ने कहां कि कोई औपचारिक आदेश नहीं है, बल्कि पुलिस सख्त कार्रवाई कर रही है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह एक छद्म आदेश हैं।

* एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू कुमार सिंह ने कहा, "अधिकांश लोग बहुत गरीब सब्जी और चाय की दुकान के मालिक हैं, और इस तरह के आर्थिक बहिष्कार के अधीन होने पर उनकी आर्थिक मृत्यु हो जाएगी। अनुपालन नहीं करने पर दुकानदारों को बुलडोजर कार्रवाई का सामना करना पड़ा हैं।"

*,सुप्रीम कोर्ट ने अभिषेक मनु सिंघवी से कहां कि हमें स्थिति को इस तरह से बयान नहीं करना चाहिए कि जमीन पर जो है, उसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाए। इन आदेशों में सुरक्षा और स्वच्छता के आयाम भी शामिल किए गए हैं।

* अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि कांवड़ यात्राएं दशकों से होती आ रही हैं और मुस्लिम, ईसाई और बौद्ध समेत सभी धर्मों के लोग उनके रास्ते में उनकी मदद करते हैं। अब आप किसी विशेष धर्म का बहिष्कार कर रहे हैं।

 

 

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