भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन को लेकर चर्चाएं तेज़ हो गई हैं। पार्टी के संविधान के अनुसार, अध्यक्ष वही बन सकता है जो कम से कम 15 वर्षों से सदस्य हो। चुनाव प्रक्रिया में प्राथमिक समिति से लेकर राष्ट्रीय परिषद तक चुनाव होते हैं।
न्यूज़ दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में इन दिनों नए राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर सियासी सरगर्मी तेज है। संगठनात्मक चुनाव प्रदेश स्तर पर चल रहे हैं और हर ओर यह चर्चा है कि पार्टी की कमान अब किसके हाथ जाएगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया कितनी लंबी और संगठनात्मक रूप से व्यवस्थित होती है?
यह सिर्फ नाम के प्रस्ताव भर से तय नहीं होता, बल्कि इसके पीछे एक पूरी संवैधानिक प्रक्रिया, आंतरिक लोकतंत्र और आरएसएस से मेल-जोल की कहानी भी होती है। आइए समझते हैं बीजेपी अध्यक्ष बनने की पूरी प्रणाली, पात्रता और परंपराएं:
कौन बन सकता है बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष?
बीजेपी के संविधान के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति कम से कम 15 वर्षों तक पार्टी का प्राथमिक सदस्य रहा हो और चार बार सक्रिय सदस्य की भूमिका निभा चुका हो। सक्रिय सदस्य वही माना जाता है जो कम से कम तीन साल से पार्टी में सक्रिय रूप से शामिल हो और जिसने पार्टी के कार्यक्रमों में भागीदारी की हो।
हालांकि, अपवाद स्वरूप पार्टी कुछ राज्यों में ऐसे नेताओं को भी प्रदेश अध्यक्ष बना चुकी है जो हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए थे। लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए नियम अधिक सख्त हैं।
कैसे होती है चुनावी प्रक्रिया की शुरुआत?
बीजेपी में सांगठनिक चुनाव की शुरुआत प्राथमिक समिति के चुनाव से होती है। इसके बाद क्रमशः मंडल, जिला और फिर प्रदेश स्तर पर चुनाव होते हैं।
जब कम से कम 50% राज्यों में संगठनात्मक चुनाव पूरे हो जाते हैं, तभी राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होती है। प्रत्याशी के नामांकन के लिए जरूरी है कि उनके नाम को कम से कम पांच राज्यों की राष्ट्रीय परिषद इकाइयों से प्रस्तावित किया गया हो। साथ ही, प्रत्याशी को अपनी सहमति भी देनी होती है।
राष्ट्रीय परिषद बनाती है अध्यक्ष
• राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव बीजेपी की राष्ट्रीय परिषद करती है, जिसमें देशभर की लोकसभा सीटों की संख्या के बराबर सदस्य होते हैं।
• यदि किसी विशेष वर्ग या महिला की प्रतिनिधित्व में कमी रह जाती है तो पार्टी उनका संवैधानिक समायोजन करती है।
• चुनाव की तारीख घोषित करने, नामांकन लेने और यदि ज़रूरत पड़े तो मतदान कराने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय चुनाव अधिकारी की होती है।
अब तक हमेशा निर्विरोध चुनाव
बीजेपी में अब तक कभी भी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए मतदान की नौबत नहीं आई है। सर्वसम्मति से ही नेता चुने जाते हैं, जो दिखाता है कि शीर्ष नेतृत्व और संगठन पहले ही एक नाम पर आम राय बना लेते हैं। चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह होती जरूर है—नामांकन, सहमति, तिथि की घोषणा—लेकिन अंततः नामांकन सिर्फ एक ही होता है और चुनाव निर्विरोध संपन्न होता है।
आरएसएस की भूमिका: पर्दे के पीछे की ताकत
बीजेपी के संविधान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भूमिका का कोई औपचारिक उल्लेख नहीं है, लेकिन वास्तविकता में आरएसएस का फीडबैक निर्णायक होता है। पार्टी अध्यक्ष के चयन से पहले आरएसएस से जुड़े संगठन मंत्रियों, प्रचारकों और वरिष्ठ पदाधिकारियों से लगातार चर्चा की जाती है। आरएसएस के पास संगठन निर्माण का विशाल अनुभव होता है और बीजेपी उसी नेटवर्क से अपने अध्यक्ष के लिए विकल्प तैयार करती है।
बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री भी आरएसएस से ही होते हैं और संगठनात्मक संतुलन के लिए अक्सर संघ के प्रशिक्षित लोगों को अहम जिम्मेदारियां दी जाती हैं।
कार्यकाल और सीमाएं
बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है और लगातार दो कार्यकाल तक ही कोई व्यक्ति इस पद पर रह सकता है। इसके बाद नए चेहरे की तलाश शुरू हो जाती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में, संगठन के भीतर कई नामों की चर्चा है—कुछ अनुभवी नेता, तो कुछ नए चेहरों पर भी विचार चल रहा है। हालांकि अगर बीजेपी अपने संविधान के अनुसार ही चले तो 15 साल की सदस्यता की शर्त कई चर्चित नामों को स्वतः बाहर कर देती है।