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हिंदी अनिवार्यता पर महाराष्ट्र में विवाद, सुप्रिया सुले ने सरकार के फैसले को बताया 'साजिश'

हिंदी अनिवार्यता पर महाराष्ट्र में विवाद, सुप्रिया सुले ने सरकार के फैसले को बताया 'साजिश'
अंतिम अपडेट: 3 घंटा पहले

महाराष्ट्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के निर्णय ने राज्य में राजनीतिक और सामाजिक विवाद को जन्म दिया है। इस फैसले के खिलाफ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) की सांसद सुप्रिया सुले ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।​

नई दिल्ली: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एससीपी) की सांसद सुप्रिया सुले ने महाराष्ट्र सरकार के उस फैसले की तीखी आलोचना की है, जिसमें हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने की बात कही गई है। उन्होंने इस निर्णय को जल्दबाजी में उठाया गया कदम बताया और आरोप लगाया कि इसके पीछे एसएससी बोर्ड को कमजोर करने की साजिश छिपी हुई है।

सुले ने कहा, मराठी महाराष्ट्र की आत्मा है और हमेशा नंबर वन रहनी चाहिए। शिक्षा क्षेत्र में कई जरूरी सुधार करने की जरूरत है, लेकिन मराठी भाषा को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि राज्य सरकार को भाषा जैसे संवेदनशील विषय पर राजनीतिक लाभ के बजाय छात्रों और राज्य की सांस्कृतिक अस्मिता को ध्यान में रखकर निर्णय लेना चाहिए।

सुप्रिया सुले की प्रतिक्रिया

पुणे में पत्रकारों से बात करते हुए, बारामती की सांसद सुप्रिया सुले ने कहा, मराठी महाराष्ट्र की आत्मा है और इसे कमजोर करने का कोई भी प्रयास बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने सरकार के इस कदम को जल्दबाजी में लिया गया निर्णय बताया और कहा कि इससे राज्य की शिक्षा प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।​

सुले ने यह भी आरोप लगाया कि यह निर्णय एसएससी बोर्ड को समाप्त करने की दिशा में एक साजिश है। उन्होंने कहा, हमें पहले राज्य की शिक्षा व्यवस्था की बुनियादी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए, न कि इस तरह के निर्णयों से मराठी भाषा की स्थिति को कमजोर करना चाहिए।

सरकार का पक्ष

महाराष्ट्र सरकार ने 16 अप्रैल को एक सरकारी प्रस्ताव (Government Resolution) जारी किया, जिसके अनुसार राज्य के सभी मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य किया गया है। यह निर्णय NEP 2020 के तीन-भाषा सूत्र के तहत लिया गया है, जिसका उद्देश्य छात्रों को बहुभाषी बनाना है।​

राज्य के स्कूल शिक्षा विभाग के अनुसार, यह नई नीति 2025-26 शैक्षणिक वर्ष से लागू होगी और चरणबद्ध तरीके से अन्य कक्षाओं में विस्तारित की जाएगी। सरकार का कहना है कि यह कदम छात्रों के समग्र विकास के लिए उठाया गया है और इसका कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं है।​

विपक्ष का विरोध

सुप्रिया सुले के अलावा, कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने भी इस निर्णय की आलोचना की है। उन्होंने कहा, "अगर हिंदी को अनिवार्य किया जा रहा है, तो क्या हम मध्य प्रदेश या उत्तर प्रदेश में मराठी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य कर सकते हैं?" उन्होंने इसे मराठी अस्मिता पर हमला बताया।​

पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि मराठी भाषा की अनदेखी नहीं की जा सकती और सरकार को इस निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए।​

शिक्षा नीति और भाषा विवाद

NEP 2020 के तहत तीन-भाषा सूत्र की सिफारिश की गई है, जिसमें छात्रों को तीन भाषाएं सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। हालांकि, नीति में यह भी स्पष्ट किया गया है कि किसी भी भाषा को अनिवार्य नहीं किया जाएगा और राज्यों को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार निर्णय लेने की स्वतंत्रता होगी।​

महाराष्ट्र में पहले से ही मराठी और अंग्रेजी अनिवार्य भाषाएं हैं। अब हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में जोड़ने से भाषा संतुलन पर सवाल उठ रहे हैं, खासकर मराठी भाषा की स्थिति को लेकर।​ महाराष्ट्र सरकार द्वारा हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने का निर्णय राज्य में राजनीतिक और सामाजिक विवाद का कारण बन गया है। 

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