Maha Kumbh 2025: महाकुंभ में 5,000 से ज्यादा नागा साधुओं की होगी अखाड़ों में शमिल होने की प्रक्रिया, दीक्षा संस्कार हुआ शुरू

Maha Kumbh 2025: महाकुंभ में 5,000 से ज्यादा नागा साधुओं की होगी अखाड़ों में शमिल होने की प्रक्रिया, दीक्षा संस्कार हुआ शुरू
Last Updated: 4 घंटा पहले

Maha Kumbh 2025: महाकुंभ नगर में जन आस्था का केंद्र बने इन अखाड़ों के नागा संन्यासियों की फौज में नई भर्ती का सिलसिला शुरू हो गया है। इस बार महाकुंभ 2025 के अवसर पर, श्रद्धालुओं और भक्तों का ध्यान खींचने वाले नागा संन्यासियों की संख्या में और इजाफा होने जा रहा है। श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े ने शनिवार को नागा दीक्षा की शुरुआत की है, जिसमें 1500 से अधिक अवधूतों को नागा संन्यासी की दीक्षा दी जा रही हैं।

नागा संन्यासी की प्रक्रिया

नागा संन्यासी केवल कुंभ मेले में ही बनते हैं और उनकी दीक्षा भी यहीं होती है। यह दीक्षा विशेष रूप से एक लंबे और कठोर परंपरागत अभ्यास का हिस्सा है, जिसे प्रत्येक साधक को पूरी श्रद्धा और समर्पण से पार करना होता है। साधक को सबसे पहले ब्रह्मचारी के रूप में रहना पड़ता है और तीन साल तक गुरु की सेवा करते हुए अखाड़े के नियमों का पालन करना होता है। इस अवधि में उसे धर्म और कर्म की शिक्षा दी जाती है, और ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती हैं।

यदि साधक इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाता है, तो उसे दीक्षा देने की प्रक्रिया शुरू होती है। नागा संन्यासियों की यह प्रक्रिया महाकुंभ में होती है, जहां वह गंगा किनारे मुंडन कराते हैं और 108 बार महाकुंभ की पवित्र नदी में डुबकी लगाते हैं। इस प्रक्रिया का अंत दण्डी संस्कार और पिण्डदान के साथ होता हैं।

जूना अखाड़ा में नागा संन्यासियों की बढ़ती संख्या

श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा, जो महाकुंभ में सबसे अधिक नागा संन्यासियों वाला अखाड़ा है, में इन दिनों नागा संन्यासियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इस समय जूना अखाड़े में 5.3 लाख से अधिक नागा संन्यासी हैं। इस अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय मंत्री, श्री महंत चैतन्य पुरी ने बताया कि शनिवार को नागा दीक्षा की शुरुआत हो गई है, जिसमें पहले चरण में 1500 से अधिक अवधूतों को नागा संन्यासी की दीक्षा दी जा रही हैं।

राज, खूनी, बर्फानी और खिचड़िया नागा

महाकुंभ में दीक्षा लेने वाले नागा संन्यासियों को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जो उनकी दीक्षा प्रक्रिया की विशेषता को दर्शाते हैं। प्रयाग के महाकुंभ में दीक्षा लेने वाले नागा को "राज राजेश्वरी नागा", उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को "खूनी नागा", हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को "बर्फानी नागा" और नासिक में दीक्षा लेने वालों को "खिचड़िया नागा" कहा जाता है। यह नाम उनके दीक्षा स्थल की पहचान को प्रकट करते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने किस स्थान पर दीक्षा ली हैं।

गंगा तट पर दीक्षा का महत्व

महाकुंभ के दौरान, गंगा के तट पर इन नागा संन्यासियों की दीक्षा प्रक्रिया का महत्व बहुत अधिक होता है। इन संन्यासियों का मुंडन कराना, गंगा में डुबकी लगाना और पिण्डदान जैसे संस्कारों के साथ उनकी दीक्षा की जाती है। यह एक ऐसा अवसर होता है जब साधक और गुरु दोनों का संबंध और विश्वास दृढ़ होता है। नागा दीक्षा के दौरान, अखाड़े की धर्म ध्वजा के नीचे आचार्य महामंडलेश्वर नागा संन्यासियों को दीक्षा देते हैं, और यह संस्कार पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ संपन्न होता हैं।

महाकुंभ 2025 एक अवसर, एक अनुभव

महाकुंभ 2025 न केवल नागा संन्यासियों के लिए, बल्कि समस्त हिंदू धर्मावलंबियों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवसर है। गंगा के तट पर होने वाली इस दीक्षा प्रक्रिया के माध्यम से साधकों को न केवल आध्यात्मिक उन्नति मिलती है, बल्कि वे अपने जीवन के महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंचते हैं।

यह एक ऐसा महाकुंभ है, जहां परंपरा, श्रद्धा और आस्था का संगम होता है। महाकुंभ की धरती पर न केवल शरीर, बल्कि आत्मा भी शुद्ध होती है। नागा संन्यासियों की यह बढ़ती संख्या और उनकी दीक्षा प्रक्रिया महाकुंभ की महिमा को और भी बढ़ा देती हैं।

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