भारत ने दिखाई नई राह, स्कूलों में छात्रों को स्मार्टफोन ले जाने की मिली मंजूरी

भारत ने दिखाई नई राह, स्कूलों में छात्रों को स्मार्टफोन ले जाने की मिली मंजूरी
अंतिम अपडेट: 5 घंटा पहले

दुनिया के कई देशों में जहां स्कूलों में स्मार्टफोन बैन हैं, वहीं भारत इस मामले में अलग राह पकड़ता नजर आ रहा है। दिल्ली हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि स्कूलों में छात्रों के स्मार्टफोन इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई जा सकती। कोर्ट ने यह भी माना कि स्मार्टफोन छात्रों और परिजनों के बीच कॉर्डिनेशन बनाए रखने के साथ-साथ उनकी सुरक्षा के लिए भी अहम भूमिका निभाता है।
 
स्कूल में स्मार्टफोन पर पूरी तरह बैन नहीं लगाया जा सकता – कोर्ट
 
दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि नीतिगत तौर पर छात्रों को स्कूलों में स्मार्टफोन ले जाने से रोका नहीं जा सकता। हालांकि, इसके उपयोग को लेकर नियम बनाए जा सकते हैं।
 
कोर्ट के फैसले की मुख्य बातें
 
• क्लासरूम में अनुशासन बनाए रखने के लिए फोन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध जरूरी।
• छात्रों को स्मार्टफोन एक सुरक्षित जगह पर रखने की अनुमति दी जा सकती है, जिसे वे घर जाते समय वापस ले सकते हैं।
• कॉमन एरिया और स्कूल वाहनों में कैमरा और रिकॉर्डिंग फीचर के इस्तेमाल पर रोक होनी चाहिए।
• छात्रों को सिखाया जाए स्मार्टफोन का नैतिक उपयोग
• हाई कोर्ट ने स्कूलों को छात्रों को जिम्मेदार ऑनलाइन व्यवहार सिखाने पर जोर देने की बात कही है।
 
क्या कहा कोर्ट ने?
 
• छात्रों को डिजिटल एथिक्स और ऑनलाइन मैनर्स के बारे में जागरूक किया जाए।
• स्क्रीन टाइम कम करने, साइबर बुलिंग से बचने और डिजिटल लत से दूर रहने के लिए काउंसलिंग दी जाए।
 
दुनिया से अलग भारत का फैसला
 
जहां भारत ने स्कूलों में स्मार्टफोन के उपयोग को पूरी तरह बैन करने के बजाय नियंत्रित निगरानी का रास्ता चुना है, वहीं दुनिया के कई देशों में इस पर सख्त पाबंदी है।
 
दुनिया में स्मार्टफोन बैन के नियम
 
• स्वीडन में 2 साल से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन के इस्तेमाल की अनुमति नहीं है, और किशोरों को भी सीमित समय तक ही स्क्रीन यूज करने की छूट है।
• अमेरिका में भी स्कूलों में फोन के उपयोग पर सख्त नियम बनाने पर विचार किया जा रहा है।
• इटली में माध्यमिक स्कूल तक के छात्रों के लिए फोन बैन है।
• फ्रांस में 2018 से ही स्कूलों में मोबाइल फोन पूरी तरह प्रतिबंधित हैं।
 
भारत का यह फैसला छात्रों की सुरक्षा और टेक्नोलॉजी के संतुलित उपयोग को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। अब देखना यह होगा कि यह नीति कितना सफल साबित होती है और स्कूल इसे लागू करने के लिए किस तरह के कदम उठाते हैं।

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