बंगाल की खाड़ी के उत्तर-पूर्वी भाग में मात्र 3 वर्ग किलोमीटर में फैला सेंट मार्टिन द्वीप बांग्लादेश में शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के तख्तापलट होने के बाद काफी ज्यादा चर्चा में आ गया हैं।
नई दिल्ली: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने शता छोड़ने के बाद आरोप लगाया कि यदि बंगाल की खाड़ी में स्थित सेंट मार्टिन द्वीप को संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार को सौंप दिया होता तो उनकी सत्ता का पतन नहीं होता। एक अग्रेंजी अखबार को इंटरव्यू देते हुए शेख हसीना ने कहां कि मेरी सरकार के पतन का कारण सेंट मार्टिन द्वीप हैं. क्या हैं यह सेंट मार्टिन द्वीप जिसे अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश भी बांग्लादेश से छीनना चाहता था जिसकी वजह से बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सरकार गवानी पड़ी। आइये जानते हैं इसके बारे में।
क्या हैं सेंट मार्टिन द्वीप?
सेंट मार्टिन द्वीप, जिसे नारिकेल जिंजीरा (नारियल द्वीप) या दारुचिनी द्वीप (दालचीनी द्वीप) के नाम से भी जाना जाता है। बंगाल की खाड़ी के उत्तरपूर्वी भाग में स्थित यह द्वीप मात्र 3 किमी वर्ग क्षेत्र में ही फैला हुआ है। बता दें यह कॉक्स बाजार-टैंकफ प्रायद्वीप के सिरे से लगभग 9 किमी दक्षिण में स्थित है। बांग्लादेश का एकमात्र प्रवाल द्वीप होने के कारण (यह अपनी मनमोहक प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है) जिसमें साफ नीला पानी और प्रवाल जैसे विविध समुद्री जीवन शामिल हैं।
जानिए सेंट मार्टिन द्वीप का इतिहास
इस द्वीप को बंगाली में 'नारिकेल जिंजीरा' या नारियल द्वीप के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है कि यहां नारियल के पेड़ों की बहुतायत है। इसे 'दारुचिनी द्वीप' या दालचीनी द्वीप के नाम से भी जाना जाता है। यह द्वीप कभी टेकनाफ प्रायद्वीप का हिस्सा था, लेकिन प्रायद्वीप का एक हिस्सा जलमग्न होने के कारण उससे अलग हो गया। हालांकि इसने प्रायद्वीप के सबसे दक्षिणी हिस्से को एक द्वीप में बदल दिया गया, जो अब बांग्लादेश की मुख्य भूमि से भिन्न हो गया।
कैसे पड़ा आइलैंड का नाम सेंट मार्टिन?
बता दें इस द्वीप का इतिहास बहुत समृद्ध है, जो अठारहवीं शताब्दी से शुरू होता है जब अरब व्यापारियों ने इसे पहली बार बसाया था, जिन्होंने इसका नाम 'जजीरा' रखा था। 1900 में एक ब्रिटिश भूमि सर्वेक्षण दल ने सेंट मार्टिन द्वीप को ब्रिटिश भारत के हिस्से के रूप में शामिल किया और इसका नाम सेंट मार्टिन नामक एक ईसाई पादरी के नाम पर रखा। हालांकि ऐसी रिपोर्टें हैं कि इस द्वीप का नाम चटगांव के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर मार्टिन के नाम पर रखा गया है।
* साल 1937 में म्यांमार के अलग होने के बाद यह द्वीप ब्रिटिश भारत का हिस्सा बना रहा।
* साल 1947 के विभाजन तक यह ऐसा ही रहा, जब यह पाकिस्तान के नियंत्रण में चला गया।
* साल 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद यह कोरल द्वीप बांग्लादेश का हिस्सा बन गया।
* साल 1974 में, बांग्लादेश और म्यांमार के बीच एक समझौता हुआ कि कोरल द्वीप बांग्लादेशी क्षेत्र का हिस्सा होगा।