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बद्रीनाथ धाम की दिव्यता: कैसे पड़ा इसका नाम और क्या है इसके पीछे की पौराणिक कथा

बद्रीनाथ धाम की दिव्यता: कैसे पड़ा इसका नाम और क्या है इसके पीछे की पौराणिक कथा
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उत्तराखंड की शांत और आध्यात्मिक ऊंचाइयों में बसा बद्रीनाथ धाम न केवल एक मंदिर है, बल्कि एक ऐसा स्थल है जहां आत्मा को ईश्वर से साक्षात्कार का अनुभव होता है। समुद्र तल से लगभग 10,300 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर चार धामों में से एक है और इसे भगवान विष्णु का निवास स्थल माना जाता है। भक्त इसे 'बद्रीविशाल' और 'बद्रीनारायण मंदिर' के नाम से भी पुकारते हैं।

आज हम आपको इस पवित्र तीर्थ की उस अनकही और अलौकिक कहानी से परिचित कराने जा रहे हैं, जिसके पीछे इसकी गहराई से जुड़ी एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता है। साथ ही जानेंगे कि “बद्रीनाथ” नाम क्यों और कैसे पड़ा?

कैसे पड़ा बद्रीनाथ नाम? एक दिव्य कथा

'बद्रीनाथ' शब्द दो हिस्सों से मिलकर बना है—'बदरी' और 'नाथ'। बदरी का अर्थ होता है 'जंगली बेर' और नाथ का अर्थ 'स्वामी' या 'पालक'। पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय भगवान विष्णु तपस्या के लिए हिमालय की पहाड़ियों पर गए। उस समय चारों ओर भीषण ठंड और धूप थी। जब देवी लक्ष्मी ने अपने स्वामी को इस कठिन तपस्या में देखा, तो उन्होंने स्वयं को एक बदरी यानी बेर के वृक्ष में परिवर्तित कर लिया, जिससे भगवान विष्णु को छाया और सुरक्षा मिल सके। इस तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु ने इस भूमि को पवित्र घोषित किया और तभी से इसे 'बद्रीनाथ' कहा जाने लगा, अर्थात वह स्थान जहां 'बदरी वृक्ष की छाया में तपस्या करने वाले भगवान' निवास करते हैं।

बद्रीनाथ धाम का इतिहास और स्थापत्य

बद्रीनाथ मंदिर का वर्तमान स्वरूप 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था। माना जाता है कि उन्होंने अलकनंदा नदी के पास तप्त कुंड क्षेत्र में एक गुफा में भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित की थी। यह मूर्ति शालिग्राम पत्थर से बनी है जो नेपाल की गंडकी नदी में पाया जाता है और इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है।

बद्रीनाथ मंदिर की स्थापत्य कला उत्तर भारतीय नागर शैली की मिसाल है। मंदिर की ऊंचाई लगभग 50 फीट है और इसका गर्भगृह स्वर्ण मंडित है। मुख्य द्वार को 'सिंह द्वार' कहा जाता है और अंदर भगवान बद्रीनारायण एक ध्यानमग्न मुद्रा में विराजमान हैं।

तप्त कुंड: पवित्रता का प्रतीक

बद्रीनाथ मंदिर के समीप ही एक गर्म जल का स्रोत है जिसे तप्त कुंड कहा जाता है। इस जल का तापमान अत्यधिक ठंड में भी गर्म बना रहता है और यह चमत्कारी माना जाता है। श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश से पहले इस कुंड में स्नान करते हैं, जिससे आत्मा और शरीर दोनों की शुद्धि मानी जाती है। मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से रोग और पाप दोनों का नाश होता है।

स्कंद, वामन और अन्य पुराणों में वर्णित महिमा

बद्रीनाथ धाम की महिमा स्कंद पुराण, वामन पुराण, विष्णु पुराण और महाभारत जैसी अनेक धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है। वामन पुराण के अनुसार, नर और नारायण ऋषि, जो भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं, यहीं बद्रीनाथ क्षेत्र में तपस्या करते थे। यह स्थान केवल एक मंदिर नहीं बल्कि ऋषियों और मुनियों की तपोभूमि भी रहा है।

यहां कपिल मुनि, कश्यप ऋषि, गौतम ऋषि जैसे महान संतों ने तपस्या की थी। इतना ही नहीं, नारद मुनि को भी यहीं पर मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।

महाभारत और पांडवों का संबंध

महाभारत के अनुसार, जब युद्ध समाप्त हुआ तो पांडव अपने जीवन के अंतिम चरण में स्वर्गारोहण के लिए हिमालय की ओर बढ़े। इस दौरान वे बद्रीनाथ क्षेत्र से भी गुजरे। बद्रीनाथ धाम उनकी यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव रहा, जिससे इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता और बढ़ जाती है।

छह माह का विश्राम स्थल: विष्णु जी का हिमालय वास

मान्यता है कि भगवान विष्णु वर्ष के छह माह (गर्मी के मौसम) बद्रीनाथ धाम में निवास करते हैं और शेष छह माह (सर्दी के दौरान) वे नारायण पर्वत पर विश्राम के लिए चले जाते हैं। यही कारण है कि सर्दियों में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और उनकी पूजा जोशीमठ में की जाती है।

कब खुलते हैं कपाट?

हर साल बद्रीनाथ मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के पावन दिन पर खोले जाते हैं, जो हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ माना जाता है। 2025 में यह विशेष अवसर 4 मई को पड़ेगा, जब देशभर से लाखों श्रद्धालु भगवान बद्रीनारायण के दर्शन के लिए बद्रीनाथ धाम पहुंचेंगे। कपाट खुलने की प्रक्रिया बेहद भव्य होती है, जिसमें वेद मंत्रों का उच्चारण, पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। इस दिन मंदिर को फूलों से सजाया जाता है और पूरा वातावरण भक्ति और उत्साह से भर जाता है।

आध्यात्मिक महत्व और आज का संदर्भ

बद्रीनाथ धाम सिर्फ एक तीर्थ यात्रा नहीं है, यह आत्म-चिंतन, साधना और ईश्वर से जुड़ने का एक सशक्त माध्यम है। बदलते दौर में भी यह धाम श्रद्धालुओं के मन में उसी भक्ति और श्रद्धा से बसा हुआ है। यहां की शांति, प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक ऊर्जा हर यात्री को भीतर तक झकझोर देती है।

बद्रीनाथ धाम एक ऐसा आध्यात्मिक स्थल है जो केवल भारत ही नहीं, बल्कि विश्व भर के सनातन धर्म को मानने वालों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसकी दिव्य कथा, प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्व इसे हर श्रद्धालु की जीवन यात्रा का अनिवार्य हिस्सा बना देते हैं। जब आप बद्रीनाथ की यात्रा पर जाएं, तो केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि एक ऐसी ऊर्जा का अनुभव करेंगे जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का माध्यम बन जाती है।

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